औरंगाबाद: भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है. यहां अलग-अलग सभ्यता, धर्म और संस्कृति से जुड़े लोग रहते हैं. इसी कारण यहां सालों भर विभिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं. सूबे में दशहरा संपन्न होने के बाद लोग अब आने वाले पर्व दीवाली और छठ पूजा की तैयारियों में जुट गए हैं. वहीं, जिले के ऐतिहासिक और पौराणिक देव सूर्य मंदिर में आने वाले पर्व छठ को लेकर जिला प्रशासन अभी से ही तैयारियों में जुट गई है.
डीएम ने लिया सुरक्षा जायजा
भगवान सूर्य की नगरी कहे जाने वाले इस मंदिर में छठ व्रतियों के स्वागत के लिए जिले के डीएम और एसपी कई तैयारियों और सुरक्षा का जायजा लिया. व्रतियों की भारी भीड़ की संभावना को देखते हुए डीएम और एसपी ने खुद इसकी कमान संभाल रखी है. इस मसले पर जिले के डीएम राहुल रंजन महिवाल ने बताया कि यहां हर साल लगभग 12 से 15 लाख लोग आस्था के इस महाकुंभ में आते हैं. इसको लेकर जिला प्रशासन अभी से ही आवश्यक तैयारियां में जुट गई है. सुरक्षा को लेकर कार्तिक छठ 2019 के पदाधिकारी और जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक किया जा रहा है.
छठ में देव मंदिर में लगता है विशाल मेला
बिहार के लोगों की छठ पर्व में विशेष आस्था होती है. इस दौरान जिले के एतिहासिक देव मंदिर में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है. इस अवसर पर यहां विशाल मेला लगता है. पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन के प्रयास से हर साल 'सूर्य अचला सप्तमी' को महोत्सव का भी आयोजन होता है. कार्तिक छठ करने कई राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है. बताया जाता है कि इस मंदिर के सूर्यकुंड तालाब का विशेष महत्व है. छठ मेले के समय देव का कस्बा लघु कुंभ बन जाता है. छठ गीतों से देव गुंजायमान हो उठता है.
छठ में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत है कि इस त्योहार में समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है. इस सूप-डाले को सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं. इस त्योहार को बिहार का सबसे बड़ा त्योहार भी कहा जाता है. हालांकि अब यह पर्व बिहार के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर भी मनाया जाने लगा है. इस पर्व में सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्ठी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. जिले के प्रसिद्ध देव सूर्य मंदिर में सालों भर दूर-दूर से लोग मनोकामनाओं को लेकर और दर्शन करने आते हैं. कार्तिक और चैत महीने में छठ के दौरान व्रत करने वालों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है.
सौ फीट ऊंचा है सूर्य मंदिर
जानकारी के अनुसार यह मंदिर अति प्राचीन और अनोखा है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने सिर्फ एक रात में की थी. यह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है. मंदिर करीब डेढ़ लाख साल पुराना बताया जाता है. मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में मंदिर के बाहर ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ एक शिलालेख मौजूद है. यह मंदिर लगभग 100 फीट ऊंचा बताया जाता है. इस मंदिर में सात रथों के साथ भगवान भास्कर की तीन रूपों की प्रतिमा मौजूद है. पहला रूप उदयाचल सूर्य यानी सुबह का रूप, दूसरा मध्याचल यानी दोपहर का रूप और तीसरा अस्ताचल अर्थात शाम का अस्त रूप मौजूद है.
मंदिर का पौराणिक महत्व
दंतकथाओं के अनुसार क्षेत्र के राजा 'ऐल' एक बार जंगल में शिकार खेलने गए थे. इस दौरान उन्हें काफी जोर का प्यास लगी. जिसके बाद उन्होंने अपने सेवादार को पानी लाने को कहा. सेवादार पानी की तलाश करते हुए एक जलकुंड के पास पहुंचा. जिसके बाद उसने राजा पीने के लिए जल दिया. राजा को कुष्ठ रोग था. राजा ने कुंड में स्नान किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. जिसके बाद राजा के स्वप्न में स्वयं भगवान भास्कर आए और कुंड से तीन मूर्तियों को निकालकर मंदिर बनाने का आदेश दिया. जिसके बाद राजा ने वहां पर एक भव्य मंदिर बनवाया.