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मनरेगा में प्रथम आए औरंगाबाद जिले में नहीं मिल रहा प्रवासी मजदूरों को रोजगार, सरकार से लगी है आस

मनरेगा में काम देने के मामले में बिहार में पहला स्थान प्राप्त करने वाला औरंगाबाद जिले में कई गांव ऐसे भी हैं. जहां बाहर से लौटे मजदूरों को अब तक कोई काम नहीं मिला है.

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Published : Jun 20, 2020, 10:22 AM IST

औरंगाबाद
औरंगाबाद

औरंगाबादः एक तरफ औरंगाबाद जिले को बिहार में मनरेगा में अच्छा काम करने के लिए पहला स्थान मिला है. वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे भी मामले हैं, जहां बाहर से लौटे मजदूरों को मनरेगा योजना में काम तक नहीं मिल रहा है. वह खाली हाथ बैठे हैं. यहां तक कि उन्हें राशन भी नहीं मिला है.

मनरेगा में काम देने को लेकर जिले ने अच्छी पहल की है. जिले ने मनरेगा में काम देने का नया रिकॉर्ड कायम किया और बिहार में पहला स्थान प्राप्त किया. लेकिन जिले में कुछ पंचायत ऐसे भी हैं, जहां बाहर से लौटे मजदूरों को मनरेगा के तहत अब तक कोई काम नहीं मिला है. मामला बारुण प्रखंड के कई गांव का है. जब मामले की जांच करने ईटीवी भारत की टीम ने पंचायतों में जाकर बात की तो पता चला कि प्रवासी मजदूरों को कोई काम नहीं मिला है. ना ही किसी ने अप्रोच किया है.

बाहर से आए मजदूर
बाहर से आए मजदूर

सरकारी स्तर पर नहीं मिला कोई लाभ
बारुण प्रखंड के ग्राम पंचायत पिपरा में बाहर से लौटे मजदूरों से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि उन्हें लौटे हुए एक महीने हो गए हैं. अभी तक उन्हें कोई काम सरकारी स्तर पर नहीं मिला है. ना ही सरकारी स्तर पर कोई अन्य सहायता ही मिला है.मजदूरों ने बताया कि वह मनरेगा के तहत में काम करने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला रहा है. इन लोगों से ना तो रोजगार सेवक ने संपर्क किया और ना ही मुखिया या वार्ड सदस्य ने.

अंशुल कुमार, डीडीसी
अंशुल कुमार, डीडीसी

'हर जगह से हाथ लगी निराशा'
इतना ही नहीं इन मजदूरों को अब तक मुफ्त राशन भी नहीं मिला है. ग्राम पिपरा के मजदूर वीरेंद्र राम, राजेन्द्र राम, अमित गुप्ता, सहजानन्द ने बताया कि वे लोग बाहर के राज्यों में काम करते थे. लॉक डाउन की वजह से काम बंद होने पर वापस गांव लौट आए. गांव लौटे और क्वारेंटाइन से निकले लगभग एक महीने हो गए हैं. लेकिन उन्हें ना तो रोजगार मिला ना ही मुफ़्त का राशन. लोगों का कहना है कि रोजगार के लिए मुखिया से लेकर रोजगार सेवक तक संपर्क किया. राशन के लिए जन वितरण प्रणाली के दुकानदार पर गए. लेकिन उन्हें सब जगह से निराशा हाथ लगी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ये भी पढ़ेंः भारत में घर, नेपाल में खेत खलिहान, आखिर क्या करे किसान

'मामले की कराई जाएगी जांच'
इस संबंध में डीडीसी अंशुल कुमार ने बताया कि जिले में मनरेगा का परफॉर्मेंस बहुत अच्छा है. फिर भी बारुण प्रखंड के परफॉर्मेंस की जांच कराई जाएगी. अगर इस तरह की शिकायत सही पाई गई तो उचित कार्रवाई की जाएगी. मजदूरों को हर हाल में रोजगार देने के लिए सरकार कृत संकल्पित है. उन्होंने बताया कि इस वर्ष 16 लाख मानव दिवस कार्य उपलब्ध कराया गया है. जिनमें से हाल में ही 1.8 मानव दिवस कार्य को पूर्ण कराया गया है. जहां तक बात है बाहर से आये मजदूरों की तो अभी तक 4011 जॉब कार्ड बनवा दिए गए हैं और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है.

औरंगाबादः एक तरफ औरंगाबाद जिले को बिहार में मनरेगा में अच्छा काम करने के लिए पहला स्थान मिला है. वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे भी मामले हैं, जहां बाहर से लौटे मजदूरों को मनरेगा योजना में काम तक नहीं मिल रहा है. वह खाली हाथ बैठे हैं. यहां तक कि उन्हें राशन भी नहीं मिला है.

मनरेगा में काम देने को लेकर जिले ने अच्छी पहल की है. जिले ने मनरेगा में काम देने का नया रिकॉर्ड कायम किया और बिहार में पहला स्थान प्राप्त किया. लेकिन जिले में कुछ पंचायत ऐसे भी हैं, जहां बाहर से लौटे मजदूरों को मनरेगा के तहत अब तक कोई काम नहीं मिला है. मामला बारुण प्रखंड के कई गांव का है. जब मामले की जांच करने ईटीवी भारत की टीम ने पंचायतों में जाकर बात की तो पता चला कि प्रवासी मजदूरों को कोई काम नहीं मिला है. ना ही किसी ने अप्रोच किया है.

बाहर से आए मजदूर
बाहर से आए मजदूर

सरकारी स्तर पर नहीं मिला कोई लाभ
बारुण प्रखंड के ग्राम पंचायत पिपरा में बाहर से लौटे मजदूरों से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि उन्हें लौटे हुए एक महीने हो गए हैं. अभी तक उन्हें कोई काम सरकारी स्तर पर नहीं मिला है. ना ही सरकारी स्तर पर कोई अन्य सहायता ही मिला है.मजदूरों ने बताया कि वह मनरेगा के तहत में काम करने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला रहा है. इन लोगों से ना तो रोजगार सेवक ने संपर्क किया और ना ही मुखिया या वार्ड सदस्य ने.

अंशुल कुमार, डीडीसी
अंशुल कुमार, डीडीसी

'हर जगह से हाथ लगी निराशा'
इतना ही नहीं इन मजदूरों को अब तक मुफ्त राशन भी नहीं मिला है. ग्राम पिपरा के मजदूर वीरेंद्र राम, राजेन्द्र राम, अमित गुप्ता, सहजानन्द ने बताया कि वे लोग बाहर के राज्यों में काम करते थे. लॉक डाउन की वजह से काम बंद होने पर वापस गांव लौट आए. गांव लौटे और क्वारेंटाइन से निकले लगभग एक महीने हो गए हैं. लेकिन उन्हें ना तो रोजगार मिला ना ही मुफ़्त का राशन. लोगों का कहना है कि रोजगार के लिए मुखिया से लेकर रोजगार सेवक तक संपर्क किया. राशन के लिए जन वितरण प्रणाली के दुकानदार पर गए. लेकिन उन्हें सब जगह से निराशा हाथ लगी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

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'मामले की कराई जाएगी जांच'
इस संबंध में डीडीसी अंशुल कुमार ने बताया कि जिले में मनरेगा का परफॉर्मेंस बहुत अच्छा है. फिर भी बारुण प्रखंड के परफॉर्मेंस की जांच कराई जाएगी. अगर इस तरह की शिकायत सही पाई गई तो उचित कार्रवाई की जाएगी. मजदूरों को हर हाल में रोजगार देने के लिए सरकार कृत संकल्पित है. उन्होंने बताया कि इस वर्ष 16 लाख मानव दिवस कार्य उपलब्ध कराया गया है. जिनमें से हाल में ही 1.8 मानव दिवस कार्य को पूर्ण कराया गया है. जहां तक बात है बाहर से आये मजदूरों की तो अभी तक 4011 जॉब कार्ड बनवा दिए गए हैं और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है.

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