औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित सूर्यमंदिर ऐतिहासिक विरासत समेटे हुए है. यह सूर्य मंदिर पश्चिमोन्मुखी है. यहां हर वर्ष कार्तिक और चैत महीने में छठ पूजा का आयोजन होता है. अनुमान के मुताबिक कार्तिक छठ पूजा में लगभग 20 लाख श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. मंदिर की स्थापत्य कला छठी और सातवीं शताब्दी की बतायी जाती है. ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत यहीं से हुई थी.
उड़ीसा के कोणार्क मंदिर से मिलता जुलताः देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है. पहला गर्भगृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है. दूसरा भाग मुखमंडप है, जिसके ऊपर पिरामिड जैसी छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तम्भ है. ऐसा नियोजन नागर शैली की प्रमुख विशिष्टता है. उड़ीसा के मंदिरों में अधिकांश शिल्प कला इसी प्रकार की है. मंदिर की सबसे ऊंची गुम्बज पर सोने की 3 कलश स्थापित की गई है.
पश्चिम की ओर दरवाजा की ये है मान्यताः इस मंदिर की खासियत यह है कि इसका मुख्य दरवाजा पश्चिम की ओर है. बताया जाता है कि औरंगज़ेब के सेनापति जब विभिन्न मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचे थे तो देव के पुजारी ने उन्हें मंदिर नहीं तोड़ने का अनुरोध किया था, तब औरंगजेब के सेनापति ने इस शर्त पर मंदिर सही सलामत छोड़ने का वादा किया था कि अगर इसका दरवाजा पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाए तो वह नहीं तोड़ेगा. सुबह आश्चर्यजनक रूप से मंदिर का दरवाजा पूर्व से पश्चिम की ओर हो गया था.
चैत्र और कार्तिक में लगता 4 दिवसीय मेलाः औरंगाबाद जिले के देव में स्थित विश्व विख्यात सूर्य मंदिर के प्रांगण में साल में दो बार छठ मेले का आयोजन किया जाता है. यह छठ पर्व चैत्र महीना और कार्तिक महीने में आयोजित होता है. इस मेले में चैत्र में लगभग 15 लाख और कार्तिक महीने में लगभग 20 लाख श्रद्धालु हर वर्ष पहुंचते हैं. छठ पर्व का त्योहार चार दिवसीय होता है. जिसमें नहाए खाए, डूबते सूर्य को अर्घ्य के साथ उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त होता है.
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