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देव का सूर्यमन्दिर जहां छठ करने आते हैं लाखों श्रद्धालु, रातों रात बदल गई थी मंदिर के मुख्य द्वार की दिशा - छठ पूजा कब शुरू हुआ

Chhath Puja in Dev Surya Temple देव का ऐतिहासिक सूर्यमन्दिर. मान्यता है कि यहां से ही छठ पूजा की शुरुआत हुई है. हर साल 20 लाख से अधिक लोग छठ के मौके पर पहुंचते हैं. चार दिन तक यहां मेला लगा रहता है. घाट सजकर तैयार हो गया है. लॉ एंड ऑर्डर के लिए पुलिस-प्रशासन मौजूद है. यहां छठ पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचिलत हैं. आइये हम बताते हैं क्या है यहां छठ करने की मान्यता.

देव का सूर्यमन्दिर
देव का सूर्यमन्दिर
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 18, 2023, 6:12 AM IST

Updated : Nov 18, 2023, 6:32 AM IST

देव का सूर्यमन्दिर.

औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित सूर्यमंदिर ऐतिहासिक विरासत समेटे हुए है. यह सूर्य मंदिर पश्चिमोन्मुखी है. यहां हर वर्ष कार्तिक और चैत महीने में छठ पूजा का आयोजन होता है. अनुमान के मुताबिक कार्तिक छठ पूजा में लगभग 20 लाख श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. मंदिर की स्थापत्य कला छठी और सातवीं शताब्दी की बतायी जाती है. ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत यहीं से हुई थी.

शुक्रवार की शाम आरती कार्यक्रम का आयोजन हुआ
आरती कार्यक्रम में जुटे श्रद्धालु.
कैसे शुरू हुई छठ पूजाः
जनश्रुतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सम्ब के पुत्र राजा एल को कुष्ठ रोग हो गया था. तब वह जंगल में भटक रहे थे. देव स्थित तालाब जो उस समय गड्ढा मात्र था, उसमें स्नान करने से उनकी यह बीमारी ठीक हो गयी थी. तब उन्होंने उस तालाब की खुदाई कराई, जिसमें से भगवान सूर्य की तीन अवस्था में उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल की मूर्ति निकली. राजा एल ने उस स्थान पर भगवान सूर्य मंदिर का निर्माण कराया और मूर्ति को स्थापित किया.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.
देव माता अदिति ने छठ पूजा की थीः एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहां देव माता अदिति ने पहली बार छठ पूजा की थी. एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप में आदित्य भगवान ने जन्म लिया, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन शुरू हुआ.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.


उड़ीसा के कोणार्क मंदिर से मिलता जुलताः देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है. पहला गर्भगृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है. दूसरा भाग मुखमंडप है, जिसके ऊपर पिरामिड जैसी छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तम्भ है. ऐसा नियोजन नागर शैली की प्रमुख विशिष्टता है. उड़ीसा के मंदिरों में अधिकांश शिल्प कला इसी प्रकार की है. मंदिर की सबसे ऊंची गुम्बज पर सोने की 3 कलश स्थापित की गई है.

देव का सूर्यमन्दिर
देव का सूर्यमन्दिर.
विश्वकर्मा ने मंदिर का निर्माण किया थाः जनश्रुतियों के अनुसार औरंगाबाद जिले में देव, देवकुंड और उमगा में नागर शैली में बनी मंदिर है. इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर छठी शताब्दी में बनाई गई लगती है. हालांकि, लोगों का मानना है कि यह मंदिर त्रेता युगीन है. इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. किंवदंतियों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में जिले के देव, देवकुंड और उमगा में मंदिरों का निर्माण किया था.
देव सूर्यमन्दिर में आरती.
देव सूर्यमन्दिर में आरती.

पश्चिम की ओर दरवाजा की ये है मान्यताः इस मंदिर की खासियत यह है कि इसका मुख्य दरवाजा पश्चिम की ओर है. बताया जाता है कि औरंगज़ेब के सेनापति जब विभिन्न मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचे थे तो देव के पुजारी ने उन्हें मंदिर नहीं तोड़ने का अनुरोध किया था, तब औरंगजेब के सेनापति ने इस शर्त पर मंदिर सही सलामत छोड़ने का वादा किया था कि अगर इसका दरवाजा पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाए तो वह नहीं तोड़ेगा. सुबह आश्चर्यजनक रूप से मंदिर का दरवाजा पूर्व से पश्चिम की ओर हो गया था.


चैत्र और कार्तिक में लगता 4 दिवसीय मेलाः औरंगाबाद जिले के देव में स्थित विश्व विख्यात सूर्य मंदिर के प्रांगण में साल में दो बार छठ मेले का आयोजन किया जाता है. यह छठ पर्व चैत्र महीना और कार्तिक महीने में आयोजित होता है. इस मेले में चैत्र में लगभग 15 लाख और कार्तिक महीने में लगभग 20 लाख श्रद्धालु हर वर्ष पहुंचते हैं. छठ पर्व का त्योहार चार दिवसीय होता है. जिसमें नहाए खाए, डूबते सूर्य को अर्घ्य के साथ उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त होता है.

इसे भी पढ़ेंः छठ महापर्व पर सुरक्षा की तैयारी, सभी घाटों और चौक चौराहे पर पुलिस बल के साथ दंडाधिकारी रहेंगे तैनात

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देव का सूर्यमन्दिर.

औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित सूर्यमंदिर ऐतिहासिक विरासत समेटे हुए है. यह सूर्य मंदिर पश्चिमोन्मुखी है. यहां हर वर्ष कार्तिक और चैत महीने में छठ पूजा का आयोजन होता है. अनुमान के मुताबिक कार्तिक छठ पूजा में लगभग 20 लाख श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. मंदिर की स्थापत्य कला छठी और सातवीं शताब्दी की बतायी जाती है. ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत यहीं से हुई थी.

शुक्रवार की शाम आरती कार्यक्रम का आयोजन हुआ
आरती कार्यक्रम में जुटे श्रद्धालु.
कैसे शुरू हुई छठ पूजाः जनश्रुतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सम्ब के पुत्र राजा एल को कुष्ठ रोग हो गया था. तब वह जंगल में भटक रहे थे. देव स्थित तालाब जो उस समय गड्ढा मात्र था, उसमें स्नान करने से उनकी यह बीमारी ठीक हो गयी थी. तब उन्होंने उस तालाब की खुदाई कराई, जिसमें से भगवान सूर्य की तीन अवस्था में उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल की मूर्ति निकली. राजा एल ने उस स्थान पर भगवान सूर्य मंदिर का निर्माण कराया और मूर्ति को स्थापित किया.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.
देव माता अदिति ने छठ पूजा की थीः एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहां देव माता अदिति ने पहली बार छठ पूजा की थी. एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप में आदित्य भगवान ने जन्म लिया, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन शुरू हुआ.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.
आरती कार्यक्रम का आयोजन.


उड़ीसा के कोणार्क मंदिर से मिलता जुलताः देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है. पहला गर्भगृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है. दूसरा भाग मुखमंडप है, जिसके ऊपर पिरामिड जैसी छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तम्भ है. ऐसा नियोजन नागर शैली की प्रमुख विशिष्टता है. उड़ीसा के मंदिरों में अधिकांश शिल्प कला इसी प्रकार की है. मंदिर की सबसे ऊंची गुम्बज पर सोने की 3 कलश स्थापित की गई है.

देव का सूर्यमन्दिर
देव का सूर्यमन्दिर.
विश्वकर्मा ने मंदिर का निर्माण किया थाः जनश्रुतियों के अनुसार औरंगाबाद जिले में देव, देवकुंड और उमगा में नागर शैली में बनी मंदिर है. इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर छठी शताब्दी में बनाई गई लगती है. हालांकि, लोगों का मानना है कि यह मंदिर त्रेता युगीन है. इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. किंवदंतियों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में जिले के देव, देवकुंड और उमगा में मंदिरों का निर्माण किया था.
देव सूर्यमन्दिर में आरती.
देव सूर्यमन्दिर में आरती.

पश्चिम की ओर दरवाजा की ये है मान्यताः इस मंदिर की खासियत यह है कि इसका मुख्य दरवाजा पश्चिम की ओर है. बताया जाता है कि औरंगज़ेब के सेनापति जब विभिन्न मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचे थे तो देव के पुजारी ने उन्हें मंदिर नहीं तोड़ने का अनुरोध किया था, तब औरंगजेब के सेनापति ने इस शर्त पर मंदिर सही सलामत छोड़ने का वादा किया था कि अगर इसका दरवाजा पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाए तो वह नहीं तोड़ेगा. सुबह आश्चर्यजनक रूप से मंदिर का दरवाजा पूर्व से पश्चिम की ओर हो गया था.


चैत्र और कार्तिक में लगता 4 दिवसीय मेलाः औरंगाबाद जिले के देव में स्थित विश्व विख्यात सूर्य मंदिर के प्रांगण में साल में दो बार छठ मेले का आयोजन किया जाता है. यह छठ पर्व चैत्र महीना और कार्तिक महीने में आयोजित होता है. इस मेले में चैत्र में लगभग 15 लाख और कार्तिक महीने में लगभग 20 लाख श्रद्धालु हर वर्ष पहुंचते हैं. छठ पर्व का त्योहार चार दिवसीय होता है. जिसमें नहाए खाए, डूबते सूर्य को अर्घ्य के साथ उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त होता है.

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Last Updated : Nov 18, 2023, 6:32 AM IST
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