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औरंगाबाद: लॉकडाउन के कारण इस साल नहीं हो रही है देव मंदिर में चैत्र छठ पूजा

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Published : Mar 28, 2020, 7:54 PM IST

कोरोना को लेकर इस बार पूरे देश को लॉकडाउन किया गया है. चैत्र नवरात्र की शुरूआत हो चुकी है. लेकिन इस साल औरंगाबाद के अति प्रचीन मंदिर में लॉक डाउन के कारण पूजा-पाठ बंद है.

देव मंदिर में चैत्र छठ पूजा
देव मंदिर में चैत्र छठ पूजा

औरंगाबाद: कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दहशत के बीच चैत्र छठ पूजा की शुरूआत हो चुकी है. इस वायरस के कारण पीएम मोदी ने पूरे देश में एहतियात को तौर पर लॉक डाउन जारी करने का आदेश दिया है. जिस वजह से इसबार जिले के देव मंदिर में पूजा की रौनक पूर्व साल की तरह नहीं होगी. मंदिर समिति और जिला प्रशासन ने लोगों से सहयोग की अपील की है. बता दें कि चैती छठ पूजा की शुरूआत शनिवार 28 मार्च से नहायखाय के साथ शुरू हुई. 29 मार्च रविवार को खरना होगी. 30 मार्च को सोमवार को पहला अर्घ्य और 31 मार्च मंगलवार को दूसरा अर्घ्य के साथ इस पर्व का निस्तार होगा.

'कुष्ठ निवारक तालाब है सूरजकुंड'
इसको लेकर देव सूरजकुंड के पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि यह मंदिर अति प्रचीन है. यहां पर हर साल चैती छठ में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती थी. लेकिन इस बार मंदिर परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ है. उन्होंने बताया कि मंदिर की पूजा समिति आंतरिक पूजा-पाठ कर रही है. लेकिन, लॉक डाउन के कारण आम लोगों के प्रवेश पर मंदिर में रोक लगा दी गई है. सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि देव सूर्य मंदिर से थोड़ी दूरी पर देव सूर्य मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित है. इसे कुष्ठ निवारक तालाब के नाम से जाना जाता है. इस तालाब में स्नान करने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. इसी तालाब में चैत्र एवं कार्तिक मास श्रद्धालु छठ व्रत करने के लिए आते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अति प्राचीन है कुंड
गौरतलब है कि देव मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए जाना जाता है. पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है. इतिहासकारों की माने तो इस मंदिर का निर्माण छठी - आठवीं सदी के मध्य में हुआ था. मंदिर को लेकर कई अलग-अलग पौराणिक मान्यताएं भी है. धर्म के जानकारों का कहना है कि यह मंदिर ता युगीन या फिर द्वापर युग के मध्यकाल में बनी थी.

मंदिर की पौराणिक कथा
धर्म के जानकारों की मानें तो भगवान कृष्ण के पुत्र सांब ने पूरे देश में 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था. देव सूर्य मंदिर भी उन्ही मेंं से एक है. इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अलावे यहां देव माता अदिति ने भी पूजा-अर्चना की थी. एक लोक कथा के अनुसार देव और असुर संग्राम में जब जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे. तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए इसी मंदिर में पूजा की थी. जिसके बाद प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. सके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी.

देव सूरजकुंड तलाब
देव सूरजकुंड तलाब

एक और अन्य लोककथा के मुताबिक राजा इला के पुत्र राजा एल को किसी ऋषी ने श्राप दिया था. ऋृषी के श्राप से राज एल कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए थे. एक बार वे शिकार करते हुए भटक कर घने जंगल में फंस गए. जहां उनको जोर की प्यास लगी. पानी की तलाश में भटकते हुए वे एक छोटे से सरोवर के पास पहुंचे. जहां जल के संपर्क में आने से उनका कुष्ट रोग ठीक हो गया. जिसके बाद उन्होंने वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया.

गौरतलब है कि मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर श्रद्धालु पूजा के लिए आते रहते हैं. यहां पर बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश से भी काफी संख्या में भक्त छठ व्रत करने के लिए आते हैं. यहां लगभग प्रत्येक दिन श्रद्धालु के भीड़ का जमावड़ा लगा होता है. लेकिन रविवार को यहां पर दूर दूर से हवन और पूजन करने के लिए श्रद्धालु आते रहते हैं. मान्यता है कि यहा पर आज तक इस मंदिर से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटा है. मनोवांछित फल की प्राप्ति के बाद भक्त यहा पर कार्तिक या चैत्र छठ पूजा कर भगवान भास्कर की आराधना करते हैं.

औरंगाबाद: कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दहशत के बीच चैत्र छठ पूजा की शुरूआत हो चुकी है. इस वायरस के कारण पीएम मोदी ने पूरे देश में एहतियात को तौर पर लॉक डाउन जारी करने का आदेश दिया है. जिस वजह से इसबार जिले के देव मंदिर में पूजा की रौनक पूर्व साल की तरह नहीं होगी. मंदिर समिति और जिला प्रशासन ने लोगों से सहयोग की अपील की है. बता दें कि चैती छठ पूजा की शुरूआत शनिवार 28 मार्च से नहायखाय के साथ शुरू हुई. 29 मार्च रविवार को खरना होगी. 30 मार्च को सोमवार को पहला अर्घ्य और 31 मार्च मंगलवार को दूसरा अर्घ्य के साथ इस पर्व का निस्तार होगा.

'कुष्ठ निवारक तालाब है सूरजकुंड'
इसको लेकर देव सूरजकुंड के पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि यह मंदिर अति प्रचीन है. यहां पर हर साल चैती छठ में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती थी. लेकिन इस बार मंदिर परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ है. उन्होंने बताया कि मंदिर की पूजा समिति आंतरिक पूजा-पाठ कर रही है. लेकिन, लॉक डाउन के कारण आम लोगों के प्रवेश पर मंदिर में रोक लगा दी गई है. सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि देव सूर्य मंदिर से थोड़ी दूरी पर देव सूर्य मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित है. इसे कुष्ठ निवारक तालाब के नाम से जाना जाता है. इस तालाब में स्नान करने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. इसी तालाब में चैत्र एवं कार्तिक मास श्रद्धालु छठ व्रत करने के लिए आते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अति प्राचीन है कुंड
गौरतलब है कि देव मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए जाना जाता है. पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है. इतिहासकारों की माने तो इस मंदिर का निर्माण छठी - आठवीं सदी के मध्य में हुआ था. मंदिर को लेकर कई अलग-अलग पौराणिक मान्यताएं भी है. धर्म के जानकारों का कहना है कि यह मंदिर ता युगीन या फिर द्वापर युग के मध्यकाल में बनी थी.

मंदिर की पौराणिक कथा
धर्म के जानकारों की मानें तो भगवान कृष्ण के पुत्र सांब ने पूरे देश में 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था. देव सूर्य मंदिर भी उन्ही मेंं से एक है. इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अलावे यहां देव माता अदिति ने भी पूजा-अर्चना की थी. एक लोक कथा के अनुसार देव और असुर संग्राम में जब जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे. तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए इसी मंदिर में पूजा की थी. जिसके बाद प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. सके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी.

देव सूरजकुंड तलाब
देव सूरजकुंड तलाब

एक और अन्य लोककथा के मुताबिक राजा इला के पुत्र राजा एल को किसी ऋषी ने श्राप दिया था. ऋृषी के श्राप से राज एल कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए थे. एक बार वे शिकार करते हुए भटक कर घने जंगल में फंस गए. जहां उनको जोर की प्यास लगी. पानी की तलाश में भटकते हुए वे एक छोटे से सरोवर के पास पहुंचे. जहां जल के संपर्क में आने से उनका कुष्ट रोग ठीक हो गया. जिसके बाद उन्होंने वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया.

गौरतलब है कि मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर श्रद्धालु पूजा के लिए आते रहते हैं. यहां पर बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश से भी काफी संख्या में भक्त छठ व्रत करने के लिए आते हैं. यहां लगभग प्रत्येक दिन श्रद्धालु के भीड़ का जमावड़ा लगा होता है. लेकिन रविवार को यहां पर दूर दूर से हवन और पूजन करने के लिए श्रद्धालु आते रहते हैं. मान्यता है कि यहा पर आज तक इस मंदिर से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटा है. मनोवांछित फल की प्राप्ति के बाद भक्त यहा पर कार्तिक या चैत्र छठ पूजा कर भगवान भास्कर की आराधना करते हैं.

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