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तेलंगाना जातीय जनगणना मॉडल क्या है, ये कैसे बिहार सर्वेक्षण से अलग है, जानें - BIHAR CASTE CENSUS

राहुल गांधी ने तेलंगाना के जातिगत सर्वेक्षण को बिहार के कास्ट सेंसस से बेहतर क्यों बताया है. पटना से डॉ रंजीत की रिपोर्ट

Bihar Caste Census
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 6, 2025, 7:49 PM IST

Updated : Feb 6, 2025, 7:56 PM IST

पटना: बिहार पहला राज्य बना था जिसने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सबसे पहले प्रकाशित की थी. साल 2022 में महागठबंधन की सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित की थी. 2025 आते-आते जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस सवाल उठाने लगी और अब तेलंगाना की रिपोर्ट की तारीफ में कसीदे कढ़े जा रहे हैं. इसके कारण आरजेडी की चिंता बढ़ गई है क्योंकि इस सर्वे को कराने का पूरा क्रेडिट लालू यादव और तेजस्वी यादव लेते रहते हैं.

जातिगत जनगणना की पिच पर खेलेंगे राहुल!: जातिगत जनगणना देश के अंदर सियासी मुद्दा बन चुका है. 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार में जातिगत जनगणना के पिच पर बैटिंग करना चाहते हैं. राहुल ने बिहार की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को खारिज कर तेलंगाना की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को तवज्जो दी है.

2025 में जातिगत जनगणना की पिच पर खेलेंगे राहुल गांधी (ETV Bharat)

राहुल गांधी का नया सियासी दांव: बता दें कि साल 2022 में बिहार ने जातिगत जनगणना कराई थी और बिहार सबसे पहला राज्य बना था, जिसने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित किया था. 2025 में एक और राज्य तेलंगाना में भी जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित किया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को लेकर सियासी दांव खेला है.

बिहार में दिया गया था 65% आरक्षण: बिहार ने जातिगत जनगणना में आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का डाटा इकट्ठा किया है. किस जाति की कितनी आबादी है, यह भी आंकड़ों के जरिए स्थापित किया गया है. बिहार ने कई छोटी जातियों की आबादी का पता भी लगाया है जो लंबे समय से उपेक्षित रही है. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर बिहार ने 65% आरक्षण की सीमा को बढ़ाया था, लेकिन मामला न्यायालय में जाने के चलते आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं की जा सकी.

बिहार में जाति आधारित आबादी: इसके अलावा मुसलमान की आबादी का आकलन भी किया गया है. राज्य के अंदर 17.7% मुसलमान हैं तो सामान्य वर्ग की आबादी 15% से ज्यादा सामने आई है. बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01% और अन्य पिछड़ा वर्ग 27.12% है. वहीं अनुसूचित जाति 19.65% है.

Bihar Caste Census
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तेलंगाना मॉडल की खासियत: तेलंगाना राज्य ने भी जातिगत जनगणना कराया और रिपोर्ट प्रकाशित हुई. 2025 में तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट पेश की है. तेलंगाना के अंदर अनुसूचित जाति कोटे में 59 उपजातियां को चिह्नित किया गया. प्रत्येक जाति को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा.

अनुसूचित जातियों के तीन स्लैब: इसके लिए अनुसूचित जातियों के तीन स्लैब बनाए गए. कुल आरक्षण अनुसूचित जाति को 15% दिया जाएगा. एक ग्रुप को एक प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, दूसरे ग्रुप को 9% आरक्षण दिया जाएगा, तीसरे को 5% आरक्षण दिया जाएगा. सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर यह बंटवारा किया गया है.

अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर बाहर नहीं: कुछ राजनीतिक दल तेलंगाना में उप वर्गीकरण की मुखालफत कर रहे हैं. आपको बता दें कि 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों के भीतर उप वर्गीकरण को मंजूरी दी थी. जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को अपने शासित राज्यों में लागू करने को लेकर विमर्श किया. कांग्रेस पार्टी ने यह भी फैसला लिया कि अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर को बाहर नहीं रखा जाएगा.

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तेलंगाना में ओबीसी आबादी 46% से अधिक: रिपोर्ट के मुताबिक तेलंगाना राज्य में गैर मुस्लिम ओबीसी की आबादी 46.25% है जबकि मुस्लिम ओबीसी की आबादी 10.08% है. तेलंगाना की सरकार ने मुस्लिम आबादी को चार प्रतिशत का आरक्षण भी दिया हुआ है. तेलंगाना राज्य में अनुसूचित जाति 17.43 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति 10.45 प्रतिशत है.

तेलंगाना ने जातियों को उप वर्ग में बांटा: दरअसल तेलंगाना ने बिहार की जातिगत जनगणना से अलग कुछ डाटा सामने लाए हैं जिसमें कि जमीन से जुड़े आंकड़े हैं. इसके अलावा राजनीति सरकारी नौकरी न्यायपालिका या फिर व्यवसाय में किस जाति की कितनी भागीदारी है इसका भी आंकड़ा इकट्ठा किया गया है. आंकड़ों के आधार पर जाति के अंदर तेलंगाना की सरकार ने उप वर्गीकरण का फैसला लिया है.

तेलंगाना और बिहार मॉडल में अंतर: अनुसूचित जाति को जहां तीन उप वर्ग में बांटा गया है, वहीं ओबीसी को पांच उप वर्ग में बांटा गया है. तेलंगाना की सरकार ने अनुसूचित जाति और ओबीसी को उप वर्ग में बताकर आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने का फैसला लिया है. बिहार ने जातियों को उप वर्ग में बताकर आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं की है.

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सुप्रीम कोर्ट ने वर्गीकरण पर दिया था फैसला: 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उप वर्गीकरण पर सुनवाई की थी और सात जजों की पीठ ने मामले की सुनवाई की थी. मुख्य न्यायाधीश भी बेंच में शामिल थे. 6 जजों ने बहुमत के आधार पर फैसला दिया था कि सरकार अगर चाहे तो कल्याणकारी योजनाओं में लाभ देने के लिए जातियों को उप वर्गीकृत कर सकती है. इसी आधार पर तेलंगाना की सरकार ने वर्गीकृत करने का काम किया.

अर्थशास्त्री की राय: अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का मानना है कि बिहार और तेलंगाना दोनों राज्य के द्वारा जातिगत जनगणना कराया गया है. बिहार ने कई इंडेक्स पर गणना की है. बिहार के द्वारा भूमि से जुड़े आंकड़े स्पष्ट नहीं है जबकि तेलंगाना के द्वारा आंकड़ों को थोड़ा विस्तारित किया गया है.

"तेलंगाना की सरकार ने जातियों का उप वर्गीकरण किया है और इस आधार पर आरक्षण और भागीदारी देने का निर्णय लिया है. इस तरीके के आंकड़ों से फायदा यह होगा कि ओबीसी या अनुसूचित जाति में जिन जातियों का विकास नहीं हो पाया है उन्हें लाभ दिया जा सकेगा."-डॉक्टर विद्यार्थी, अर्थशास्त्री

'OBC वोट बैंक को लेकर होगी सियासत': समाजशास्त्र के प्राध्यापक डॉ बीएन प्रसाद का मानना है कि "ओबीसी वोट बैंक को लेकर सियासत होने वाली है. तेलंगाना में 46% से अधिक आबादी ओबीसी के सामने आई है. राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 52% से भी अधिक है. बिहार में ओबीसी और ओबीसी की 128 उपजातियां हैं. यहां उप वर्गीकरण नहीं किया जा सका है. जिसके चलते लंबे समय से एक ही जाति के लोग योजना और आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं."

"जातिगत जनगणना के मसले पर राजनीति हो रही है और 2025 में चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी है. बिहार में कांग्रेस की सरकार थी तभी जातिगत जनगणना कराई गई थी, लेकिन अब उस रिपोर्ट को राहुल गांधी खारिज कर रहे हैं और तेलंगाना की रिपोर्ट की तारीफ कर रहे हैं. अगर कांग्रेस पार्टी को रिपोर्ट पर इतना भरोसा है तो ओबीसी को उनकी जनसंख्या के अनुपात में वहां लोकल बॉडी के चुनाव में आरक्षण क्यों नहीं दे रही है."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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पटना: बिहार पहला राज्य बना था जिसने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सबसे पहले प्रकाशित की थी. साल 2022 में महागठबंधन की सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित की थी. 2025 आते-आते जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस सवाल उठाने लगी और अब तेलंगाना की रिपोर्ट की तारीफ में कसीदे कढ़े जा रहे हैं. इसके कारण आरजेडी की चिंता बढ़ गई है क्योंकि इस सर्वे को कराने का पूरा क्रेडिट लालू यादव और तेजस्वी यादव लेते रहते हैं.

जातिगत जनगणना की पिच पर खेलेंगे राहुल!: जातिगत जनगणना देश के अंदर सियासी मुद्दा बन चुका है. 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार में जातिगत जनगणना के पिच पर बैटिंग करना चाहते हैं. राहुल ने बिहार की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को खारिज कर तेलंगाना की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को तवज्जो दी है.

2025 में जातिगत जनगणना की पिच पर खेलेंगे राहुल गांधी (ETV Bharat)

राहुल गांधी का नया सियासी दांव: बता दें कि साल 2022 में बिहार ने जातिगत जनगणना कराई थी और बिहार सबसे पहला राज्य बना था, जिसने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित किया था. 2025 में एक और राज्य तेलंगाना में भी जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित किया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को लेकर सियासी दांव खेला है.

बिहार में दिया गया था 65% आरक्षण: बिहार ने जातिगत जनगणना में आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का डाटा इकट्ठा किया है. किस जाति की कितनी आबादी है, यह भी आंकड़ों के जरिए स्थापित किया गया है. बिहार ने कई छोटी जातियों की आबादी का पता भी लगाया है जो लंबे समय से उपेक्षित रही है. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर बिहार ने 65% आरक्षण की सीमा को बढ़ाया था, लेकिन मामला न्यायालय में जाने के चलते आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं की जा सकी.

बिहार में जाति आधारित आबादी: इसके अलावा मुसलमान की आबादी का आकलन भी किया गया है. राज्य के अंदर 17.7% मुसलमान हैं तो सामान्य वर्ग की आबादी 15% से ज्यादा सामने आई है. बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01% और अन्य पिछड़ा वर्ग 27.12% है. वहीं अनुसूचित जाति 19.65% है.

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तेलंगाना मॉडल की खासियत: तेलंगाना राज्य ने भी जातिगत जनगणना कराया और रिपोर्ट प्रकाशित हुई. 2025 में तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट पेश की है. तेलंगाना के अंदर अनुसूचित जाति कोटे में 59 उपजातियां को चिह्नित किया गया. प्रत्येक जाति को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा.

अनुसूचित जातियों के तीन स्लैब: इसके लिए अनुसूचित जातियों के तीन स्लैब बनाए गए. कुल आरक्षण अनुसूचित जाति को 15% दिया जाएगा. एक ग्रुप को एक प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, दूसरे ग्रुप को 9% आरक्षण दिया जाएगा, तीसरे को 5% आरक्षण दिया जाएगा. सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर यह बंटवारा किया गया है.

अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर बाहर नहीं: कुछ राजनीतिक दल तेलंगाना में उप वर्गीकरण की मुखालफत कर रहे हैं. आपको बता दें कि 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों के भीतर उप वर्गीकरण को मंजूरी दी थी. जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को अपने शासित राज्यों में लागू करने को लेकर विमर्श किया. कांग्रेस पार्टी ने यह भी फैसला लिया कि अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर को बाहर नहीं रखा जाएगा.

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तेलंगाना में ओबीसी आबादी 46% से अधिक: रिपोर्ट के मुताबिक तेलंगाना राज्य में गैर मुस्लिम ओबीसी की आबादी 46.25% है जबकि मुस्लिम ओबीसी की आबादी 10.08% है. तेलंगाना की सरकार ने मुस्लिम आबादी को चार प्रतिशत का आरक्षण भी दिया हुआ है. तेलंगाना राज्य में अनुसूचित जाति 17.43 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति 10.45 प्रतिशत है.

तेलंगाना ने जातियों को उप वर्ग में बांटा: दरअसल तेलंगाना ने बिहार की जातिगत जनगणना से अलग कुछ डाटा सामने लाए हैं जिसमें कि जमीन से जुड़े आंकड़े हैं. इसके अलावा राजनीति सरकारी नौकरी न्यायपालिका या फिर व्यवसाय में किस जाति की कितनी भागीदारी है इसका भी आंकड़ा इकट्ठा किया गया है. आंकड़ों के आधार पर जाति के अंदर तेलंगाना की सरकार ने उप वर्गीकरण का फैसला लिया है.

तेलंगाना और बिहार मॉडल में अंतर: अनुसूचित जाति को जहां तीन उप वर्ग में बांटा गया है, वहीं ओबीसी को पांच उप वर्ग में बांटा गया है. तेलंगाना की सरकार ने अनुसूचित जाति और ओबीसी को उप वर्ग में बताकर आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने का फैसला लिया है. बिहार ने जातियों को उप वर्ग में बताकर आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं की है.

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सुप्रीम कोर्ट ने वर्गीकरण पर दिया था फैसला: 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उप वर्गीकरण पर सुनवाई की थी और सात जजों की पीठ ने मामले की सुनवाई की थी. मुख्य न्यायाधीश भी बेंच में शामिल थे. 6 जजों ने बहुमत के आधार पर फैसला दिया था कि सरकार अगर चाहे तो कल्याणकारी योजनाओं में लाभ देने के लिए जातियों को उप वर्गीकृत कर सकती है. इसी आधार पर तेलंगाना की सरकार ने वर्गीकृत करने का काम किया.

अर्थशास्त्री की राय: अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का मानना है कि बिहार और तेलंगाना दोनों राज्य के द्वारा जातिगत जनगणना कराया गया है. बिहार ने कई इंडेक्स पर गणना की है. बिहार के द्वारा भूमि से जुड़े आंकड़े स्पष्ट नहीं है जबकि तेलंगाना के द्वारा आंकड़ों को थोड़ा विस्तारित किया गया है.

"तेलंगाना की सरकार ने जातियों का उप वर्गीकरण किया है और इस आधार पर आरक्षण और भागीदारी देने का निर्णय लिया है. इस तरीके के आंकड़ों से फायदा यह होगा कि ओबीसी या अनुसूचित जाति में जिन जातियों का विकास नहीं हो पाया है उन्हें लाभ दिया जा सकेगा."-डॉक्टर विद्यार्थी, अर्थशास्त्री

'OBC वोट बैंक को लेकर होगी सियासत': समाजशास्त्र के प्राध्यापक डॉ बीएन प्रसाद का मानना है कि "ओबीसी वोट बैंक को लेकर सियासत होने वाली है. तेलंगाना में 46% से अधिक आबादी ओबीसी के सामने आई है. राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 52% से भी अधिक है. बिहार में ओबीसी और ओबीसी की 128 उपजातियां हैं. यहां उप वर्गीकरण नहीं किया जा सका है. जिसके चलते लंबे समय से एक ही जाति के लोग योजना और आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं."

"जातिगत जनगणना के मसले पर राजनीति हो रही है और 2025 में चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी है. बिहार में कांग्रेस की सरकार थी तभी जातिगत जनगणना कराई गई थी, लेकिन अब उस रिपोर्ट को राहुल गांधी खारिज कर रहे हैं और तेलंगाना की रिपोर्ट की तारीफ कर रहे हैं. अगर कांग्रेस पार्टी को रिपोर्ट पर इतना भरोसा है तो ओबीसी को उनकी जनसंख्या के अनुपात में वहां लोकल बॉडी के चुनाव में आरक्षण क्यों नहीं दे रही है."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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Last Updated : Feb 6, 2025, 7:56 PM IST
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