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पक्षी प्रेम की अनूठी मिसाल, 'अतिथि के संदेशवाहक' कौओं को बचाने की मुहिम में जुटा है ये शख्स - पक्षी

राधेश्याम प्रसाद औरंगाबाद जिले के कसेरा टोली में रहते हैं. वे पिछले 15 वर्षों से पक्षी प्रेम की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. हर सुबह उनकी एक आवाज पर सैकड़ों की संख्या में कौवे दाना चुगने के लिए आते हैं.

कौवे
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Published : Jun 6, 2019, 3:02 PM IST

औरंगाबादः ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सुबह किसी के मुंडेर पर कौवा बोलता है तो इसे किसी अतिथि के आने का संकेत समझा जाता है. लेकिन गांवों में अब कौवे बहुत कम दिखने लगे हैं. इनकी घटती आबादी को देख राधेश्याम कौवों को बचाने की अनोखी पहल कर रहे हैं. वह पिछले 15 वर्षों से कौवे को खाना खिला रहे हैं. उनकी एक आवाज पर दाना चुगने सैकड़ों कौए आ जाते हैं.

राधेश्याम प्रसाद औरंगाबाद जिले के कसेरा टोली में रहते हैं. वे पिछले 15 वर्षों से पक्षी प्रेम की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. हर सुबह उनकी एक आवाज पर सैकड़ों की संख्या में कौवे दाना चुगने के लिए आते हैं. स्थानीय लोगों में राधेश्याम का पक्षी प्रेम चर्चा का विषय है.

15 सालों से कौओं को खिला रहे दा

भारत में हैं कौवे की 8 प्रजातियां
कौआ कोविडी परिवार का पक्षी है. यह भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार के साथ ही विश्व के अनेक देशों में पाया जाता है. भारत में इसकी 8 प्रजातियां देखने को मिलती हैं. इसमें पहाड़ी कौवे, जंगली कौवे और घरेलू कौआ प्रमुख है. पहाड़ी कौवे आकार में सबसे छोटे होते हैं. इसकी लंबाई लगभग 10 इंच होती है और शरीर का रंग चमकीला काला होता है. पहाड़ी कौवे के गले में भूरे रंग की एक पट्टी होती है जिसकी सहायता से सरलता से पहचाना जा सकता है.

लगातार घट रही है कौवों की संख्या
पक्षी विशेषज्ञ डॉ चन्दन कुमार बताते हैं कि भारतीय जनमानस में कौवा का गहरा प्रभाव है. यह एक समझदार पक्षी और प्रशिक्षण देने पर मनुष्य की नकल कर सकता है. अब पीपल, बरगद, नीम, पाकड़ आदि जैसे पेड़ समाप्त हो रहे हैं. ऊंची इमारतों की छत पर लगे टीवी एंटीना के कोने पर अब कौवे नहीं बैठते. मोबाइल टावर, इनसे निकलने वाली तरंगे भी कौवे के जीवन को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा जहर देकर मारे गए चूहे खाने से भी कौवों की संख्या समाप्त हो रही है.

औरंगाबादः ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सुबह किसी के मुंडेर पर कौवा बोलता है तो इसे किसी अतिथि के आने का संकेत समझा जाता है. लेकिन गांवों में अब कौवे बहुत कम दिखने लगे हैं. इनकी घटती आबादी को देख राधेश्याम कौवों को बचाने की अनोखी पहल कर रहे हैं. वह पिछले 15 वर्षों से कौवे को खाना खिला रहे हैं. उनकी एक आवाज पर दाना चुगने सैकड़ों कौए आ जाते हैं.

राधेश्याम प्रसाद औरंगाबाद जिले के कसेरा टोली में रहते हैं. वे पिछले 15 वर्षों से पक्षी प्रेम की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. हर सुबह उनकी एक आवाज पर सैकड़ों की संख्या में कौवे दाना चुगने के लिए आते हैं. स्थानीय लोगों में राधेश्याम का पक्षी प्रेम चर्चा का विषय है.

15 सालों से कौओं को खिला रहे दा

भारत में हैं कौवे की 8 प्रजातियां
कौआ कोविडी परिवार का पक्षी है. यह भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार के साथ ही विश्व के अनेक देशों में पाया जाता है. भारत में इसकी 8 प्रजातियां देखने को मिलती हैं. इसमें पहाड़ी कौवे, जंगली कौवे और घरेलू कौआ प्रमुख है. पहाड़ी कौवे आकार में सबसे छोटे होते हैं. इसकी लंबाई लगभग 10 इंच होती है और शरीर का रंग चमकीला काला होता है. पहाड़ी कौवे के गले में भूरे रंग की एक पट्टी होती है जिसकी सहायता से सरलता से पहचाना जा सकता है.

लगातार घट रही है कौवों की संख्या
पक्षी विशेषज्ञ डॉ चन्दन कुमार बताते हैं कि भारतीय जनमानस में कौवा का गहरा प्रभाव है. यह एक समझदार पक्षी और प्रशिक्षण देने पर मनुष्य की नकल कर सकता है. अब पीपल, बरगद, नीम, पाकड़ आदि जैसे पेड़ समाप्त हो रहे हैं. ऊंची इमारतों की छत पर लगे टीवी एंटीना के कोने पर अब कौवे नहीं बैठते. मोबाइल टावर, इनसे निकलने वाली तरंगे भी कौवे के जीवन को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा जहर देकर मारे गए चूहे खाने से भी कौवों की संख्या समाप्त हो रही है.

Intro:BH_AUR_RAJESH_RANJAN_KAUVO_KA_MASIHA_PKG औरंगाबाद- कौवा एक समझदार पक्षी है। कौवा का भारतीय जनमानस में गहरा प्रभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सुबह सुबह अगर किसी के मुंडेर पर कौवा बोलता है तो अंदाजा लगाते हैं कि शायद कोई रिश्तेदार आने वाला है । लेकिन अब लेकिन अब कौवे बहुत ही कम दिख रहे हैं । इनकी घटती आबादी को मात दे रहे हैं दाउदनगर के कसेरा टोला के राधेश्याम । जो कि पिछले 15 वर्षों से हर दिन सुबह कौवा को दाना खिलाते हैं और उनके दाना खाने हजारों की संख्या में कोई भी जुटते हैं । पेश है एक रिपोर्ट-


Body:पक्षी हमारे जीवन का एक हिस्सा है। आज हम अपने व्यस्त जीवन शैली में भले ही पशु पक्षियों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं लेकिन ऐसे अभी भी सैकड़ों लोग हैं जो पशु पक्षियों से प्यार करते हैं और अपनी दिनचर्या को बंद नहीं होने देते हैं। ऐसे ही एक शख्स का नाम है राधेश्याम प्रसाद। जो कि औरंगाबाद जिले के दाउदनगर शहर के कसेरा टोली वार्ड संख्या 12 पर रहते हैं। राधेश्याम पिछले 15 वर्षों से पक्षी प्रेम की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। उनकी एक आवाज पर हजारों की संख्या में कौवे दाना चुगने के लिए आते हैं । राधेश्याम की प्यार भरी आवाज पर सुबह 6:00 बजे कौवों की टोली उनके आसपास मंडराने लगते हैं और उनके डाले गाने को मनभर खाकर उड़ जाते है। पिछले 15 वर्षों से कर रहे हैं यह पुण्य का कार्य इस संबंध में जब हमने राधेश्याम प्रसाद से बात की तो उन्होंने बताया कि वह पिछले 15 वर्षों से नगर परिषद के पास की अपने दुकान के सामने कौवा को दाना खिला रहे हैं । हर सुबह कौवे उनकी आवाज सुनकर दाना चुगने चले आते हैं । स्थानीय निवासी और समाजसेवी संतोष कुमार बताते हैं कि राधेश्याम का पक्षी प्रेम चर्चा का विषय है। दाउदनगर में अगर आप किसी से पूछेंगे तो लोग बता देंगे कि वही राधेश्याम जो का कौवों को दाना डालते हैं ? संतोष बताते हैं कि आज पक्षियों की संख्या लगातार घट रही है और ऐसे में इन करना हम सबका दायित्व है और समाज में राधेश्याम जैसे लोग हैं जो अपना काम बखूबी कर रहे हैं। आज हमें भी अपने छतों पर पानी और दाना रखना चाहिए जिससे कि पक्षियों को गर्मी में दाने और पानी के अभाव में मरना ना पड़े। लगातार घट रही है कौवों की संख्या कौवा कोविडी परिवार का पक्षी है । यह भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, वर्मा आदि देशों के साथ ही विश्व के अनेक देशों में पाया जाता है । भारत में इस की 8 प्रजातियां देखने को मिलती हैं । इसमें पहाड़ी कौवे, जंगली कौवे, तथा घरेलू कौआ प्रमुख हैं । पहाड़ी कौवे आकार में सबसे छोटा होते हैं। इसकी लंबाई लगभग 10 इंच होती है तथा शरीर का रंग चमकीला काला होता है। पहाड़ी कौवे के गले में भूरे रंग की एक पट्टी होती है जिसकी सहायता से सरलता से पहचाना जा सकता है। एशिया के पश्चिमी भागों में पाया जाता है । सर्दियों में पहाड़ी कौवों के झुंड जम्मू, पंजाब तथा हरियाणा के अनेक भागों देखे जा सकते हैं। कौवा एक समझदार पक्षी और प्रशिक्षण देने पर मनुष्य की नकल कर सकता है। आधी से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर केएसवाई कॉलेज औरंगाबाद के प्रोफेसर और पक्षी विशेषज्ञ डॉ चन्दन कुमार बताते हैं कि मनुष्यों की बस्ती के पास बड़े बड़े पेड़ों में कौवे घोसला लगाते हैं। अब ऊंचे ऊंचे पेड़ जैसे पीपल, बरगद, नीम, पांकड़ आदि पेड़ समाप्त हो रहे हैं। ऊंची ऊंची इमारतों की छत पर लगे टीवी एंटीना के कोने पर अब कौवे नहीं बैठते । चाहे टीवी का एंटीना हो या मोबाइल टावर , इनसे निकलने वाली तरंगे कौवे के जीवन को प्रभावित करती हैं। इसके अलावा जहर देकर मारे गए चूहे खाने से भी कौवों की संख्या समाप्त हो रही है। एक समय था जब कौवे सभी जगह पर आसानी से दिखाई दे जाते थे । किंतु आज इनकी तेजी से घटती संख्या के कारण ही अब इनकी गणना एक दुर्लभ पक्षी के रूप में की जा रही है। इसे प्रकृति की मार कहें या पर्यावरण में आया बदलाव मगर आज कौवे की आधी से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है, शेष बची प्रजातियों में से करीब 20% के जंगलों में जाकर बस गए हैं । आज शहरी वातावरण में कौवे बहुत ही कम पाए जा रहे हैं। लेकिन आज भी राधेश्याम प्रसाद जैसे इंसान बचे हुए हैं जो प्रतिदिन सुबह सुबह कौओं को दाना खिलाते हैं जिसके कारण ये दाउदनगर में हुए बहुतायत में पाए जा रहे हैं।


Conclusion:BH_AUR_RAJESH_RANJAN_KAUVO_KA_MASIHA_RADHESHYAM_BYTE BH_AUR_RAJESH_RANJAN_KAUVO_KA_MASIHA_SANTOSH_BYTE BH_AUR_RAJESH_RANJAN_KAUVO_KA_MASIHA_DR_CHANDAN_KUMAR_PAKSHI_VISHESHAGYA_BYTE BH_AUR_RAJESH_RANJAN_KAUVO_KA_MASIHA_VISUAL
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