औरंगाबाद: पढ़ाई समाप्त करने के बाद आज के युवा जहां सरकारी नौकरी के पीछे भागते हैं. वहीं, जिले के नवीनगर प्रखंड के करमडीह गांव निवासी अमरेश कुमार सिंह ने खेती में ही कुछ अलग करने की ठानी. गांव में उनके पास अच्छी खासी जमीन थी. जिसमें उन्होंने परम्परागत खेती की बजाय नकदी खेती की ओर कदम बढ़ाया और जिले में सुगंधित पौधों और जड़ी-बूटियों की खेती करने वाले एकमात्र किसान बन गए.
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सुगंधित पौधों और जड़ी-बूटी की खेती करने वाले किसान के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले अमरेश कुमार सिंह ने संत कोलंबस कॉलेज हजारीबाग से शिक्षा पूरी की है. इसके बाद वे सीएसआईआर केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान लखनऊ से ट्रेनिंग ली है. जहां, उन्हें जड़ी-बूटियों की विभिन्न किस्मों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली. इसके बाद से लगातार वे अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों में मेंथा और तमाम तरह की जड़ी-बूटियों की खेती शुरू की. इतना ही नहीं उन्होंने मेंथा से तेल निकालने के लिए प्लांट भी लगाया. प्लांट का प्रयोग आसपास के छोटे किसानों के मेंथा से तेल निकालने में भी किया जाता है.
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ऑर्गेनिक है पूरा सिस्टम
अमरेश सिंह यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने काले चावल और काले गेहूं की खेती भी शुरू की है. काले रंग के धान और गेंहू में आम फसलों से ज्यादा पोषक तत्व होते हैं. अमरेश सिंह के खेती की खासियत यह है कि उन्होंने अपने पूरी खेती को ऑर्गेनिक बना रखा है. केमिकल के बजाय जड़ी-बूटियों, गोबर की खाद और हर्बल कीटनाशक तैयार करते हैं और उसी का प्रयोग खेतों में करते हैं. अमरेश सिंह बताते हैं कि सरकार से उन्हें अब तक किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली है. राज्य और केंद्र सरकार की ओर से तमाम तरह की योजनाएं किसानों के हित में बनती तो हैं, लेकिन असली हकदार तक पहुंच नहीं पाती है.
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बेचने में परेशानी आई तो खड़ा कर लिया खुद का कारोबार
अमरेश सिंह को जड़ी-बूटी की खेती करने के बाद उनको बेचने में परेशानी हुई तो अपना खुद का ब्रांड खड़ा कर लिया. इस ब्रांड के माध्यम से वे आयुर्वेदिक चाय का निर्माण करते हैं. जिसमें वो जड़ी-बूटी यहां तक कि चीनी के बदले भी औषधीय पत्तों का इस्तेमाल करते हैं. यह सारा कुछ हर्बल है. विभिन्न जड़ी-बूटियों को मिलाकर ऐसा मिश्रण तैयार करते हैं कि उसमें चीनी डालने की भी जरूरत नहीं होती है. औरंगाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी राहुल रंजन महिवाल ने उनके इस प्रोडक्ट को लॉन्च किया था. साथ ही तत्कालीन जिलाधिकारी राहुल रंजन महिवाल ने उनकी जड़ी-बूटी खेती की तारीफ भी की थी. बता दें कि अमरेश की लगन देखकर जिलाधिकारी इतने प्रभावित हुए थे कि उनकी हर्बल टी को खुद अपने कार्यालय से लांच किया था.
'औषधीय गुणों से भरपूर काला गेंहू'
गौरतलब है कि काला गेंहू कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है. कृषि विज्ञान केंद्र सिरिस में पदस्थापित कृषि वैज्ञानिक डॉ. संगीता मेहता बताती हैं कि काले गेंहू में कई तरह के चिकित्सकीय गुण होते हैं. जिसमें प्रमुख रूप से तनाव, हृदयाघात, मधुमेह, मोटापा, कैंसर और कई अन्य बीमारियों से निजात मिलता है. इसमें जिंक और आयरन समेत अन्य पोषक तत्व बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं. इसका उपयोग कई दृष्टिकोण से लाभदायक है. जड़ी-बूटी की खेती में अपना अलग मुकाम बनाने वाले अमरेश सिंह के पास जिले के किसान जड़ी-बूटी की खेती सीखने आने लगे हैं. उनकी मेहनत रंग लाई है. इस बार उत्पादित काले गेंहू को लोग अपने खेतों में लगाने के लिए अभी से ही लेकर जा हैं. हम आशा कर सकते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब औरंगाबाद जिले के किसान भी नकदी फसल के कारोबार में पूरी तरह से जुड़ जाएंगे.