भोजपुर: स्वतंत्रता संग्राम में भोजपुर के सपूतों का नाम गर्व से लिया जाता है. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरित होकर लसाढ़ी, चासी, ढकनी सहित दर्जनों गांव के स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी शासन की खिलाफत करने की योजना बनाई थी. लेकिन आज इन जवानों की शहादत सरकारी अनदेखी का दंश झेलती नजर आ रही है.
![bhojpur](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-ara-03-sahidspecial-pkg-7205029_13082020175211_1308f_02220_271.jpg)
दरअसल, इन स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों की ओर से जलमार्ग के रूप में उपयोग की जाने वाली बड़ी नहर को अवरुद्ध कर 10 सितंबर की अगले सुबह अगियांव स्थित डाकबंगला पर धावा बोल दिया गया था. अचानक हुए हमले से बौखलाए अंग्रेजी सिपाही भाग खड़े हुए. इसके बाद स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी खजाने को लूट कर डाकबंगला को आग के हवाले कर अंग्रेजी कागजातों को नष्ट कर दिया था.
घंटों चला था अंग्रेजों से संघर्ष
घटना से बौखलाए अंग्रेजी शासन ने 14 सितंबर की रात में लसाढ़ी गांव को चारों तरफ से घेर लिया और बंदूकें चलाने लगे. कई गांवों से स्वतंत्रता सेनानियों ने जुटकर देश की आजादी के लिए पारंपरिक हथियार उठाए और अंग्रेजी सिपाहियों की गोली का जवाब देने लगे. घंटों चले संघर्ष में 12 स्वतंत्रा सेनानी शहीद हो गए. उनमें एक महिला अकली देवी भी शामिल थी. दर्जनों लोग इस जंग में घायल हो गए थे.
![bhojpur](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-ara-03-sahidspecial-pkg-7205029_13082020175211_1308f_02220_258.jpg)
धूल खाती नजर आ रही प्रतिमाएं
आजादी के लिए शहीद हुए इन वीर योद्धाओं के प्रतिमाएं शेड के अभाव में धूल चाटती नजर आती हैं. हालांकि 15 सितंबर को हर वर्ष जिले का कोई अधिकारी आकर यह पुष्प अर्पित कर जाता है. वह भी इसलिए क्योंकि नीतीश सरकार ने हर साल 15 सितंबर को राजकीय सम्मान घोषित कर दिया था. लेकिन 15 सितंबर के बाद इन्हें कोई पूछने वाला दिखाई नहीं पड़ता है.
स्थानीय लोगों में गुस्सा
वहीं स्थानीय लोगों की ओर से लगातार यह मांग उठती रही कि बिहार के पाठ्यक्रम में भारत छोड़ो आंदोलन में शहीद हुए यहां के स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र किया जाए. ताकि बच्चे आजादी को लेकर लड़ी गई लड़ाई में यहां के शूरवीरों का योगदान जान सके और उसे पढ़कर प्रेरणा ले सकें. लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण ये शहीद अब तक इतिहास के पन्नों में गुमनाम बने हुए हैं.