भोजपुर: सरस्वती पूजा में अब महज चंद दिन बाकी रह गए हैं. ऐसे में मूर्तिकार अपनी मूर्तियों को बेहतर रूप देने में लगे हुए हैं. लेकिन इस प्रतिस्पर्धा के पीछे इनकी जो स्थिति है वह काफी हैरान कर देने वाली है.
आज पुस्तैनी परंपरा ढो रहे मूर्तिकारों की स्थिति बद से बदतर हो गई है. इस संदर्भ में जब उनसे बात की गई तो उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने की परम्परा वर्षों से चली आ रही है लेकिन आज इस महंगाई के समय में मूर्ति बनाकर पेट पालना कठिन काम बन गया है.
अच्छी कमाई नहीं होती है मूर्ति निर्माण में
इस बाबत मूर्तिकार धीरज कुमार ने बताया कि काली पूजा के बाद से ही मूर्ति निर्माण कार्य शुरू हो जाता है, लेकिन इस काम में जितना समय और पैसा खर्च होता है उस हिसाब से उनकी कमाई नहीं हो पाती है. यहां तक कि कभी-कभी लागत भी नहीं निकल पाती.
इन सामग्रियों से होता है मूर्ति निर्माण
मूर्तिकार धीरज बताते हैं कि मूर्तियों के निर्माण में मिट्टी, बांस, सुतली, बोरा, जूट, लेबारी, धान की भूंसी, कील सहित अन्य समानों का इस्तेमाल होता है. सहायक मूर्ति निर्माण के बाद मूर्तियों में रंग भरा जाता है, जो मूर्ति निर्माण का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण काम होता है. रंग भरने के बाद मूर्ति में जान आ जाती है. मूर्ति को अंतिम रूप देना सबसे ज्यादा मेहनत का काम है. मूर्तिकार धीरज ने बताया कि मूर्ति में रंग भरने में खल्ली, चपड़ा, डीडीआर, साबुदाना, इमली पाउडर सहित अन्य सामानों का इस्तेमाल किया जाता है.
नहीं बिक पाती हैं सारी मूर्तियां
मूर्ति निर्माण से जुड़े कारीगरों ने बताया कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार महंगाई काफी बढ़ गई है. जिस वजह से मूर्ति बनाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन घर चलाने के लिये मूर्ति बनाना मजबूरी है. आलम ये है कि मूर्तियों का बयाना लेने के बाद भी पूरी बिक्री नहीं हो पाती. मजबूरन लोगों को फ्री में मूर्तियां बांटनी पड़ती हैं. पिछले वर्ष भी 6-7 मूर्तियां बच गई थी. जिसे मोहल्लेवालों को मुफ्त में देना पड़ गया था.