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भोजपुरः पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर कुम्हार समुदाय - मिट्टी के बर्तन

दीपावली आते ही मिट्टी के दिए बनाने वाले कुम्हारों की चाक तेजी से चलने लगती है. वहीं कुम्हारों का पूरा परिवार मिट्टी के दीपक और खिलौने बनाने में लगे हुए है. तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है

कुम्हार समुदाय
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Published : Oct 26, 2019, 7:10 AM IST

भोजपुरः दीपावली के मौके पर दूसरों के घर को रौशन करने वालों की बदहाली से अंजान लोग चाईनीज सामानों को खरीदने में व्यस्त हैं. लेकिन दिन रात की कड़ी मेहनत से कच्ची मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हारों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है. लोग चाईनीज सामान के आगे दीया और अन्य मिट्टी के सामान को नहीं खरीदते. जिससे सबसे ज्यादा दिक्कतें इन कुम्हारों को होती है. जिस कारण अब कुम्हार समुदाय पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं.

पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर कुम्हार
दीपावली आते ही मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हारों की चाक तेजी से चलने लगती है. वहीं कुम्हारों का पूरा परिवार मिट्टी के दीपक और खिलौने बनाने में लगे हुए हैं. तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है.

लागत और मेहनत के अनुसार नहीं मिलता रुपया

कुम्हार बताते हैं दीया और खिलौने बनाने के लिए काफी दूर से मिट्टी लाना पड़ता है. यहां तक की एक टेलर मिट्टी की कीमत 1 हजार रुपए तक होती है और हम गरीब 1 हजार रुपए नहीं दे पाते हैं. इसलिए मिट्टी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लाकर ही हम दीये और खिलौने बनाते हैं. दीया बनाकर धूप में सुखाना और फिर उस पर रंग चढ़ाने में काफी मेहनत होती है लेकिन ग्राहक उस हिसाब से पैसे नहीं देते हैं, जितनी हम मेहनत करते है.

पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर कुम्हार समुदाय

राज मिस्त्री का काम कर रहे कुम्हार
वीरेंद्र पंडित बताते है कि अब वो मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कम करते हैं और राज मिस्त्री का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं क्योंकि इन्हें इस काम से ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे. जिससे उन्हें परिवार को चलाने में परेशानी होती थी. वो बताते है कि पूरे दीपावली में वो 4 हजार रुपये मिट्टी के बर्तन बेंच के कमाते है, जो बहुत कम है.

भोजपुरः दीपावली के मौके पर दूसरों के घर को रौशन करने वालों की बदहाली से अंजान लोग चाईनीज सामानों को खरीदने में व्यस्त हैं. लेकिन दिन रात की कड़ी मेहनत से कच्ची मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हारों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है. लोग चाईनीज सामान के आगे दीया और अन्य मिट्टी के सामान को नहीं खरीदते. जिससे सबसे ज्यादा दिक्कतें इन कुम्हारों को होती है. जिस कारण अब कुम्हार समुदाय पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं.

पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर कुम्हार
दीपावली आते ही मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हारों की चाक तेजी से चलने लगती है. वहीं कुम्हारों का पूरा परिवार मिट्टी के दीपक और खिलौने बनाने में लगे हुए हैं. तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है.

लागत और मेहनत के अनुसार नहीं मिलता रुपया

कुम्हार बताते हैं दीया और खिलौने बनाने के लिए काफी दूर से मिट्टी लाना पड़ता है. यहां तक की एक टेलर मिट्टी की कीमत 1 हजार रुपए तक होती है और हम गरीब 1 हजार रुपए नहीं दे पाते हैं. इसलिए मिट्टी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लाकर ही हम दीये और खिलौने बनाते हैं. दीया बनाकर धूप में सुखाना और फिर उस पर रंग चढ़ाने में काफी मेहनत होती है लेकिन ग्राहक उस हिसाब से पैसे नहीं देते हैं, जितनी हम मेहनत करते है.

पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर कुम्हार समुदाय

राज मिस्त्री का काम कर रहे कुम्हार
वीरेंद्र पंडित बताते है कि अब वो मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कम करते हैं और राज मिस्त्री का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं क्योंकि इन्हें इस काम से ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे. जिससे उन्हें परिवार को चलाने में परेशानी होती थी. वो बताते है कि पूरे दीपावली में वो 4 हजार रुपये मिट्टी के बर्तन बेंच के कमाते है, जो बहुत कम है.

Intro:पुस्तैनी काम छोड़ने को मजबूर कुम्हार समुदाय


भोजपुर।

"बनाकर दीये मिट्टी के जरा सी आस पाली है, मेरी मेहनत खरीदो लोगो मेरे घर मे भी दिवाली है."दीपावली आते ही मिट्टी के दिए बनाने वाले कुम्हारों की चाक अब तेजी से चलने लगी है. कुम्हारों का पूरा परिवार मिट्टी के दीपक और खिलौने बनाने में लगे हुए हैं.तेजी से बढ़ती इस महंगाई ने कुम्हारों का जीना दुश्वार कर दिया है. कुम्हार बताते हैं दीया और खिलौने बनाने के लिए काफी दूर से मिट्टी लाना पड़ता है यहां तक की एक टेलर मिट्टी की कीमत ₹1000 तक होती है हम गरीब ₹1000 नहीं दे पाते हैं इसलिए मिट्टी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लाकर ही हम दीया और खिलौने बनाते हैं.


Body:दीया बनाकर धूप में सुखाना और फिर उस पर रंग चढ़ाने में काफी मेहनत होता है लेकिन ग्राहक उस हिसाब से पैसे नहीं देते हैं जितनी हम मेहनत करते हैं. वीरेंद्र पंडित बताते हैं की अब वो मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कम करते हैं और राज मिस्त्री का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं क्योंकि इन्हें इस काम से ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे जिससे उन्हें परिवार को चलाने में परेशानी होती थी.वो बताते हैं कि पूरे दीपावली में वो 4000 रुपये मिट्टी कर बर्तन बेंच के कमाते हैं जो बहुत कम है.

बाइट-अजित कु० पंडित
बाइट-वीरेंद्र पंडित


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