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भोजपुर: धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी मांग, जोर शोर से जुटे कारीगर - सरकार की ओर से मिल रही मदद

धनतेरस के मौके पर यहां निर्मित बर्तनों की मांग अधिक है. इस आधुनिक युग में भी परेव के पीतल के बर्तनों की चमक कम नहीं हुई है. फूल, पीतल, जर्मन सिल्वर के सुनहरे बर्तन बाजार की शोभा बढ़ाते हैं.

धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी मांग
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Published : Oct 19, 2019, 9:29 AM IST

Updated : Oct 21, 2019, 7:21 PM IST

भोजपुर: कोईलवर पुल के पूर्वी छोर के पास आबाद बस्ती परेव पीतल के बर्तन उद्योग के लिए प्रख्यात है. शताब्दी पूर्व से परेव में पीतल के बर्तनों का निर्माण होता आ रहा है. धनतेरस को लेकर यहां रौनक बढ़ गई है. कारीगर जोर शोर से काम में जुटे हुए हैं.

धनतेरस के मौके पर यहां निर्मित बर्तनों की मांग अधिक है. इस आधुनिक युग में भी परेव के पीतल के बर्तनों की चमक कम नहीं हुई है. फूल, पीतल, जर्मन सिल्वर के सुनहरे बर्तन बाजार की शोभा बढ़ाते हैं. यहां की फूल की थाली, लोटा, कटोरा, ग्लास और डिश आदि की मांग बहुत है.

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काम में जोर शोर से जुटे कारीगर

धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी चमक
स्थानीय बाजारों के अलावा भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर आदि शहरों के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल और आसाम में भी इनकी मांग है. नेपाल तक यहां का निर्मित सामान जाता है. परेव जैसी छोटी बस्ती में बर्तन उद्योग के कारण चार-पांच दशक पूर्व एक राष्ट्रीयकृत केनारा बैंक स्थापित किया गया है. अब यहां के लोग उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं.

पेश है एक रिपोर्ट

सरकार की ओर से मिल रही मदद
सोन तट की लस्सेदार मिट्टी शुरू से ही बर्तनों के सांचा निर्माण में मददगार रही है. इसी ने कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित किया. कसेरा जाति के लोगों ने कुटीर उद्योग के रूप में अपनाकर इसे लघु उद्योग तक पहुंचाया. आज सरकार की ओर से काफी मदद मिल रही है.

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धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी मांग

कई राज्य के मजदूर यहां काम करते हैं
कई तरह की मशीनें सरकार की ओर से मुहैया कराई गई हैं. आधा दर्जन बेलन मशीन और तीस-चालीस भट्ठियों की स्थापना तक मामला पहुंचा है. इस इलाके के अधिकतर लोग इसी रोजगार पर आश्रित हैं. स्थानीय लोगों के अलावा कई मिर्जापुर आदि के कारीगर-मजदूर भी यहां काम करते हैं.

भोजपुर: कोईलवर पुल के पूर्वी छोर के पास आबाद बस्ती परेव पीतल के बर्तन उद्योग के लिए प्रख्यात है. शताब्दी पूर्व से परेव में पीतल के बर्तनों का निर्माण होता आ रहा है. धनतेरस को लेकर यहां रौनक बढ़ गई है. कारीगर जोर शोर से काम में जुटे हुए हैं.

धनतेरस के मौके पर यहां निर्मित बर्तनों की मांग अधिक है. इस आधुनिक युग में भी परेव के पीतल के बर्तनों की चमक कम नहीं हुई है. फूल, पीतल, जर्मन सिल्वर के सुनहरे बर्तन बाजार की शोभा बढ़ाते हैं. यहां की फूल की थाली, लोटा, कटोरा, ग्लास और डिश आदि की मांग बहुत है.

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काम में जोर शोर से जुटे कारीगर

धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी चमक
स्थानीय बाजारों के अलावा भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर आदि शहरों के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल और आसाम में भी इनकी मांग है. नेपाल तक यहां का निर्मित सामान जाता है. परेव जैसी छोटी बस्ती में बर्तन उद्योग के कारण चार-पांच दशक पूर्व एक राष्ट्रीयकृत केनारा बैंक स्थापित किया गया है. अब यहां के लोग उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं.

पेश है एक रिपोर्ट

सरकार की ओर से मिल रही मदद
सोन तट की लस्सेदार मिट्टी शुरू से ही बर्तनों के सांचा निर्माण में मददगार रही है. इसी ने कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित किया. कसेरा जाति के लोगों ने कुटीर उद्योग के रूप में अपनाकर इसे लघु उद्योग तक पहुंचाया. आज सरकार की ओर से काफी मदद मिल रही है.

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धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी मांग

कई राज्य के मजदूर यहां काम करते हैं
कई तरह की मशीनें सरकार की ओर से मुहैया कराई गई हैं. आधा दर्जन बेलन मशीन और तीस-चालीस भट्ठियों की स्थापना तक मामला पहुंचा है. इस इलाके के अधिकतर लोग इसी रोजगार पर आश्रित हैं. स्थानीय लोगों के अलावा कई मिर्जापुर आदि के कारीगर-मजदूर भी यहां काम करते हैं.

Intro:धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी चमक

भोजपुर :
कोईलवर पुल के पूर्वी छोर के पास आबाद बस्ती परेव पीतल के बर्तन उद्योग और हर हाथ को काम देने के लिए प्रख्यात है. सोन के पूर्वी तट पर स्थित औद्योगिक बस्ती का भोजपुर जिला के कोईलवर से काफी गहरा संबंध है. शताब्दी पूर्व से परेव में पीतल के बर्तनों का निर्माण होता आया है. सोन तट की लसदार मिट्टी प्रारंभ में बर्तनों के सांचा निर्माण में मददगार रही. इसी ने कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित किया.Body:कसेरा जाति के लोगों ने कुटीर उद्योग के रूप में अपनाकर इसे लघु उद्योग तक पहुंचाया. मशीनीकरण से पूर्व हर हाथ को यहां काम हुआ करता था. आज भी अधिकतर लोग इस रोजगार पर आश्रित हैं. कुछ परिवार में संपन्नता आई है. आधा दर्जन बेलन मशीन और तीस-चालीस भट्ठियों की स्थापना तक मामला पहुंचा है. स्थानीय लोगों के अलावा कई मिर्जापुर आदि के कारीगर-मजदूर भी यहां काम करते हैं. फिलवक्त धनतेरस के मौके पर यहां निर्मित बर्तनों की मांग अधिक है. इस आधुनिक युग में भी परेव के पीतल के बर्तनों की चमक कम नहीं हुई है. फूल, पीतल, जर्मन सिलवर के सुनहरे बर्तन बाजार की शोभा बढ़ाते हैं. यहां की फूल की थाली, लोटा, कटोरा, ग्लास एवं डिश आदि की मांग बहुत हैं. स्थानीय बाजारों के अलावे भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर आदि राज्य के शहरों के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद व मिर्जापुर में भी इनकी मांग है. नेपाल तक यहां का निर्मित समान जाता है.Conclusion:इस उद्योग व्यवसाय से जुड़े कई लोगों का कहना है कि यदि सरकार व प्रशासन का समुचित सहयोग मिले तो परेव पीतल के बर्तन उद्योग में मिर्जापुर-मुरादाबाद को पीछे छोड़ देगा. परेव जैसी छोटी बस्ती में बर्तन उद्योग के कारण चार-पांच दशक पूर्व एक राष्ट्रीयकृत केनारा बैंक स्थापित किया गया है. अब यहां के लोग उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं.

बाइट :- स्थानीय व्यवसायी
Last Updated : Oct 21, 2019, 7:21 PM IST
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