भोजपुर: कोईलवर पुल के पूर्वी छोर के पास आबाद बस्ती परेव पीतल के बर्तन उद्योग के लिए प्रख्यात है. शताब्दी पूर्व से परेव में पीतल के बर्तनों का निर्माण होता आ रहा है. धनतेरस को लेकर यहां रौनक बढ़ गई है. कारीगर जोर शोर से काम में जुटे हुए हैं.
धनतेरस के मौके पर यहां निर्मित बर्तनों की मांग अधिक है. इस आधुनिक युग में भी परेव के पीतल के बर्तनों की चमक कम नहीं हुई है. फूल, पीतल, जर्मन सिल्वर के सुनहरे बर्तन बाजार की शोभा बढ़ाते हैं. यहां की फूल की थाली, लोटा, कटोरा, ग्लास और डिश आदि की मांग बहुत है.
धनतेरस पर परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी चमक
स्थानीय बाजारों के अलावा भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर आदि शहरों के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल और आसाम में भी इनकी मांग है. नेपाल तक यहां का निर्मित सामान जाता है. परेव जैसी छोटी बस्ती में बर्तन उद्योग के कारण चार-पांच दशक पूर्व एक राष्ट्रीयकृत केनारा बैंक स्थापित किया गया है. अब यहां के लोग उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं.
सरकार की ओर से मिल रही मदद
सोन तट की लस्सेदार मिट्टी शुरू से ही बर्तनों के सांचा निर्माण में मददगार रही है. इसी ने कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित किया. कसेरा जाति के लोगों ने कुटीर उद्योग के रूप में अपनाकर इसे लघु उद्योग तक पहुंचाया. आज सरकार की ओर से काफी मदद मिल रही है.
कई राज्य के मजदूर यहां काम करते हैं
कई तरह की मशीनें सरकार की ओर से मुहैया कराई गई हैं. आधा दर्जन बेलन मशीन और तीस-चालीस भट्ठियों की स्थापना तक मामला पहुंचा है. इस इलाके के अधिकतर लोग इसी रोजगार पर आश्रित हैं. स्थानीय लोगों के अलावा कई मिर्जापुर आदि के कारीगर-मजदूर भी यहां काम करते हैं.