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लाखों की नौकरी छोड़ मछली पालन कर रहे भोजपुर के इंजीनियर, बायोफ्लॉक विधि से कमा रहे मोटा मुनाफा

बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन में इस बात का ध्यान रखना होता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा होना चाहिए. साथ ही मछलियों को भरपूर मात्रा में भोजन और ऑक्सीजन मिलने के लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी. इंडोनेशिया में इस तकनीक को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है.

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बायोफ्लॉक विधि से हो रहा मछली का पालन
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Published : Dec 12, 2019, 2:24 PM IST

भोजपुर: जिले के कोइलवर प्रखण्ड क्षेत्र अंतर्गत सकड्डी-जमालपुर पथ के बालक ब्रह्मबाबा के पास दो दोस्तों ने मिलकर मिसाल पेश की है. दरअसल ये दोनों युवक मल्टीनेशनल कंपनी के लाखों का पैकेज छोड़कर गांव में मछली पालन कर रहे हैं. वो एक ऐसी विधि से मछली पालन कर रहे हैं, जिसमें तालाब की जरुरत नहीं है. क्षेत्र के लोगों में इस पद्धति को देखने व जानने के लिए उत्सुकता है.

भोजपुर जिला के रहने वाले यशवंत कुमार व नीरज कुमार त्रिपाठी पेशे से इंजीनियर और एमबीए होल्डर हैं. दोनों ने काफी कम जगह में बिना तालाब के, सिर्फ टैंक की मदद से मछली पालन कर मिसाल पेश की है. इन्होंने टंकी में मछली पालन के लिए बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल किया है. इन टैंकों में मछली पालन करने से आर्थिक रूप से काफी मुनाफा है.

जानकारी देते मछली पालक

बायोफ्लॉक विधि से हो रहा मछली का पालन
इन टैंकों में कैट फिशेज प्रजाति की मछलियां जैसे मांगूर, पंगेशियस, सिंगी आदि का उत्पादन किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इन टैंकों में साल में 2 बार मछलियों का उत्पादन किया जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए दोनों ने बताया कि बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन करने की सबसे खास बात यह है कि इसमें तालाबों में मछली पालन से 75% कम खर्च आता है. यानी तालाब जितनी लागत में आप औसतन 4 टैंक में मछली पालन कर 3 लाख से ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं.

bhojpur
मछली को दाना खिलाते मछली पालक

विदेशों में भी अपनाई जा रही यह तकनीक
एक 10 हजार लीटर के टैंक में एक बार में 5 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. इस टैंक के निर्माण में 25 हजार रुपये का खर्च आता है. मछली पालन का यह एक ऑर्गेनिक तरीका है. इजरायल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया में इसी तरह मछली पालन किया जाता है. इंडोनेशिया में इस तकनीक को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है.

इन बातों का रखें ध्यान
मछली पालन की इस विधि में इस बात का ध्यान रखना होता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा होना चाहिए. साथ ही मछलियों को भरपूर मात्रा में भोजन और ऑक्सीजन मिलने के लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी. हालांकि आधे से एक घंटे तक बिजली की कटौती होने पर मछलियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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बायोफ्लॉक विधि से हो रहा मछली का पालन

ये भी पढ़ें- मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले पर आज नहीं आएगा फैसला, छुट्टी पर हैं जज सौरभ कुलश्रेष्ठ

पानी की होगी बचत
इस तकनीक की तारीफ करते हुए क्षेत्र के बुद्धजीवी लोगों ने जिले के किसान और मछली पालकों को पारंपरिक तरीके के साथ-साथ इस नई तकनीक को भी अपनाने का आग्रह किया है. लोगों ने इसे जल-जीवन-हरियाली मिशन से जोड़ते हुए कहा कि बायोफ्लॉक विधि से किसान कम पानी और कम जगह में ज्यादा मछली का पालन कर सकते हैं.

भोजपुर: जिले के कोइलवर प्रखण्ड क्षेत्र अंतर्गत सकड्डी-जमालपुर पथ के बालक ब्रह्मबाबा के पास दो दोस्तों ने मिलकर मिसाल पेश की है. दरअसल ये दोनों युवक मल्टीनेशनल कंपनी के लाखों का पैकेज छोड़कर गांव में मछली पालन कर रहे हैं. वो एक ऐसी विधि से मछली पालन कर रहे हैं, जिसमें तालाब की जरुरत नहीं है. क्षेत्र के लोगों में इस पद्धति को देखने व जानने के लिए उत्सुकता है.

भोजपुर जिला के रहने वाले यशवंत कुमार व नीरज कुमार त्रिपाठी पेशे से इंजीनियर और एमबीए होल्डर हैं. दोनों ने काफी कम जगह में बिना तालाब के, सिर्फ टैंक की मदद से मछली पालन कर मिसाल पेश की है. इन्होंने टंकी में मछली पालन के लिए बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल किया है. इन टैंकों में मछली पालन करने से आर्थिक रूप से काफी मुनाफा है.

जानकारी देते मछली पालक

बायोफ्लॉक विधि से हो रहा मछली का पालन
इन टैंकों में कैट फिशेज प्रजाति की मछलियां जैसे मांगूर, पंगेशियस, सिंगी आदि का उत्पादन किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इन टैंकों में साल में 2 बार मछलियों का उत्पादन किया जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए दोनों ने बताया कि बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन करने की सबसे खास बात यह है कि इसमें तालाबों में मछली पालन से 75% कम खर्च आता है. यानी तालाब जितनी लागत में आप औसतन 4 टैंक में मछली पालन कर 3 लाख से ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं.

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मछली को दाना खिलाते मछली पालक

विदेशों में भी अपनाई जा रही यह तकनीक
एक 10 हजार लीटर के टैंक में एक बार में 5 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. इस टैंक के निर्माण में 25 हजार रुपये का खर्च आता है. मछली पालन का यह एक ऑर्गेनिक तरीका है. इजरायल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया में इसी तरह मछली पालन किया जाता है. इंडोनेशिया में इस तकनीक को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है.

इन बातों का रखें ध्यान
मछली पालन की इस विधि में इस बात का ध्यान रखना होता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा होना चाहिए. साथ ही मछलियों को भरपूर मात्रा में भोजन और ऑक्सीजन मिलने के लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी. हालांकि आधे से एक घंटे तक बिजली की कटौती होने पर मछलियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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बायोफ्लॉक विधि से हो रहा मछली का पालन

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पानी की होगी बचत
इस तकनीक की तारीफ करते हुए क्षेत्र के बुद्धजीवी लोगों ने जिले के किसान और मछली पालकों को पारंपरिक तरीके के साथ-साथ इस नई तकनीक को भी अपनाने का आग्रह किया है. लोगों ने इसे जल-जीवन-हरियाली मिशन से जोड़ते हुए कहा कि बायोफ्लॉक विधि से किसान कम पानी और कम जगह में ज्यादा मछली का पालन कर सकते हैं.

Intro:भोजपुर के 2 दोस्तों ने मिलकर अपने ग्रामीण क्षेत्र में मछली पालन शुरू कर मिसाल पेश की है. दरअसल, वे एक ऐसी विधि से मछली पालन कर रहे हैं, जिसमें तालाब की जरुरत नहीं है. क्षेत्र के लोगो में इस पद्धति को देखने व जानने के लिए उत्सुकता है.

भोजपुर: जिले के कोइलवर प्रखण्ड क्षेत्र अंतर्गत सकड्डी-जमालपुर पथ के बालक ब्रह्मबाबा के पास 2 दोस्तों ने इंजीनियरिंग व एमबीए कर मल्टीनेशनल कंपनी के लाखों के पैकेज को छोड़कर गांव में मछली पालन की शुरुआत की है. बायोफ्लॉक विधि से दोनों दोस्तों के मछली पालन को देखने के लिए लोगों में उत्सुकता देखने को मिल रही है. मछली पालन की यह विधि जल-जीवन-हरियाली योजना से भी जोड़ी जा सकती है.
यह कहानी भोजपुर जिला के रहने वाले 2 दोस्त यशवंत कुमार व नीरज कुमार त्रिपाठी की है. काफी कम जगह में बिना तालाब के, सिर्फ टैंक की मदद से गांव में ही रहते हुए मछली पालन कर दोनों दोस्तों ने मिसाल पेश की है. उन्होंने टंकी में मछली पालन के लिए बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल किया है. इन टैंकों में मछली पालन करने से आर्थिक रूप से काफी मुनाफा है. इन टैंकों में कैट फिशेज प्रजाति की मछलियां मांगूर, पंगेशियस, सिंगी आदि का उत्पादन किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इन टैंकों में साल में 2 बार मछलियों का उत्पादन किया जाता है.Body:बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन करने की सबसे खास बात यह है कि इसमें तालाबों में मछली पालन से 75% कम खर्च आता है. यानी तालाब जितनी लागत में औसतन 4 टैंक में मछली पालन कर 3 लाख से ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं. एक 10 हजार लीटर के टैंक में एक बार में 5 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. इस टैंक के निर्माण में 25 हजार रुपये का खर्च आता है. मछली पालन का यह एक ऑर्गेनिक तरीका है. इजरायल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया में इसी तरह मछली पालन किया जाता है. इंडोनेशिया में इस तकनीक को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है.

मछली पालन की इस विधि में इस बात का ध्यान रखना होता है कि मछली का बीज थोड़ा बड़ा होना चाहिए. साथ ही मछलियों को पूरी मात्रा में भोजन और ऑक्सीजन मिलने के लिए 24 घंटे बिजली की जरूरत होगी. हालांकि आधे से एक घंटे तक बिजली की कटौती होने पर मछलियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा.Conclusion:इस तकनीक की तारीफ करते हुए क्षेत्र के बुद्धजीवी लोगों ने जिला के किसान और मछली पालकों को पारंपरिक तरीके के साथ-साथ इस नई तकनीक को भी अपनाने का आग्रह किया. लोगों ने इसे जल-जीवन-हरियाली मिशन से जोड़ते हुए कहा कि बायोफ्लॉक विधि से किसान कम पानी और कम जगह में ज्यादा मछली का पालन कर सकते हैं.
बाइट :- मछली पालन केन्द्र के संचालन यशवंत कुमार व नीरज कुमार त्रिपाठी
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