भोजपुर: ठंड बढ़ने के साथ तिलकुट बनाने का कारोबार परवान पर है. अनुमंडल मुख्यालय में इसको बनाने के लिए एक दर्जन दुकानों में मिस्त्री और मजदुर दिन रात काम कर रहे हैं. पीरो की बनी तिलकुट जिले के विभिन्न इलाकों सहित रोहतास और बक्सर जिले में भी बिक्री की जाती है.
लागत की अपेक्षा मुनाफा कम
जिले के छोटे दुकानदार यहां से तिलकुट की खरीदारी करते हैं. कारोबार की शुरुआत नवम्बर माह से ही हो जाती है और अंत 14 जनवरी को होती है. इस साल तिलकुट का कारोबार 1 करोड़ रुपया से अधिक का हुआ है. फिर भी दुकानदारों के अनुसार लागत की अपेक्षा मुनाफा कम मिला रहा है.
तिलकुट के बाजार से सजा शहर
तिलकुट बनाने के साथ इसकी बिक्री के लिए अनुमंडल मुख्यालय सहित आसपास के बाजारों, अगिआंव बाजार, जितौरा, हसनबाजार में अनगिनत दुकानें सजी है. दुकानदारों के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति के साथ तिलकुट बनाने और बिक्री का कारोबार बंद हो जाता है. इस व्यवसाय को आगे बढ़ाने वाले मजदूर दूसरे जिले से आते हैं. जो दो से ढ़ाई माह के ठेके पर आते हैं.
तिलकुट बनाने में होता है प्रयोग-
तिल, चीनी, गुड़, मैदा, चुल्हा जलाने के लिए कोयला अथवा रसोई गैस आदि.
सामानों का बाजार भाव-
तिल-160 से 200 रुपये किलो
चिनी-37 रुपये किलो
गुड़-36 रुपये किलो
कोयला-750 रुपये प्रति 40 किलो
दैनिक मजदूरी के अनुसार सामान्य मजदूर की एक दिन की मजदूरी-500 रुपया और खाना तथा रहने की व्यवस्था,
कारीगर-1000 रुपया, खाना और रहने की व्यवस्था
तिलकुट बिक्री का भाव-
चीनी का तिलकुट-140 रुपये से 200 रूपये प्रति किलो
गुड़ का तिलकुट-120 रुपये से 200 रूपये प्रति किलोग्राम है
अगल-बगल के बाजारों में होती है बिक्री
अनुमंडल मुख्यालय में जो तिलकुट बनता है उसकी बिक्री अगल-बगल के बाजारो में होती है. अगिआंव बाजार,जितौरा, हसनबाजार, नगरी, चरपोखरी, फतेहपुर, मोपती तक यहां से थोक भाव में तिलकुट का कारोबार होता है.
क्या कहते हैं मजदूर-
इस कारोबार में जुटे मजदूर कैमूर से आए मजदूर रामकुमार ने बताया कि वे इस कारोबार में 25 सालों से जुटे हैं. महंगाई बढ़ रही है लेकिन मजदूरी उस हिसाब से नहीं बढ़ रहा है. यह सिजनली कारोबार है जिसका इंतजार पूरे साल रहता है. जिसके बाद घर का कार्य और अन्य मजदूरी कर पेट पालते हैं.
क्या कहते हैं व्यवसायी-
स्थानीय अनुमंडल मुख्यालय में तिलकुट बनाने के कार्य और व्यवसाय से जुड़े व्यवसायी दीपू प्रसाद ने बताया कि लागत और मेहनत के अनुसार इस व्सवसाय में मुनाफा नहीं है. फिर भी इस कार्य को ग्राहकों पर पकड़ के लिए करना पड़ता है. तिलकुट के बाद पेठा बनाने, फल बिक्री का कार्य भी करते हैं. जिससे थोक बिक्री वाले ग्राहक इनसे पूरे साल जुड़े रहते है। दुकानदारों के अनुसार एक व्यवसाय में घाटा होता है तो ग्राहको की जुड़ाव के कारण दूसरे व्यवसाय में मुनाफा मिल जाता है जिससे घाटा नुकासान की भरपाई हो जाती है.