ETV Bharat / state

बिहार के इस साइंटिस्ट ने कभी आइंस्टीन को दी थी चुनौती, अब मुफलिसी में बीत रही जिंदगी

बिहार के आरा जिले में रहने वाले महान गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपनी काबिलियत का लोहा अमेरीका तक को मनवाया है. लेकिन आज न तो उनकी सेहत साथ दे रही है और न ही सरकार.

अपने परिवार के साथ डॉ वशिष्ठ नारायण
author img

By

Published : Mar 22, 2019, 3:01 PM IST

आरा: पूरा प्रदेश बिहार दिवस मना रहा है. इस मौके पर आपको बिहार के उस सपूत की जिंदगी से रूबरू करा रहे हैं. जिन्होंने अपनी विद्वता और काबिलियत का लोहा न सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका जैसे देश को भी मनवाया है. लेकिन कुछ वजहों से आज काबिलियत का सूर्य गुमनामी के गर्त में डूबता जा रहा है. कहानी आरा के वसंतपुर गांव के निवासी महान गणितज्ञ वशिष्ट नारायण सिंह का है.

बचपन से ही हैं प्रतिभा के धनी
2 अप्रैल 1942 को जन्मे वशिष्ट नारायण सिंह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. इनकी विद्वता के बारे में यह कहा जाता है कि जब वे पटना साइंस कॉलेज में पढ़ रहे थे तभी अपने शिक्षकों को गलत पढ़ाने को लेकर बहस कर लेते थे. कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई. जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए.साथ ही उनकी प्रतिभा का सम्मान भी किया.


दोस्त करते हैं मदद
वहीं उनके मित्र कहते हैं कि वशिष्ट नारायण को पुराने साथियों से मदद मिल रही है. उनकी बीमारी का इलाज भी उनके मित्रों की सहायता से हो रही है. लोग उनको पागल कहते हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. उन्होंने देश का नाम रौशन किया है. जटिल गणितिय सवालों को पल भर में हल कर देते थे.


आइंस्टीन को दी थी चुनौती
वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी. उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था. यह उनके लिए बहुत बड़ी कामयाबी थी.


सरकार ने उठाया फायदा
परिवार वालों का कहना है कि सरकार ने सिर्फ उनके नाम का फायदा उठाया है. जिस प्रकार की उपलब्धियां उनके पास है, सरकार को उन्हें बिहार रत्न से नवाजा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लालू की सरकार में डॉ नारायण के बारे में कम से कम बातचीत हुआ करती थी. लेकिन नीतीश कुमार की सरकार में उन्हें कोई पूछता तक नहीं है.

काबिलियत को किया गया नजरअंदाज
वहीं उनके भाई का कहना है कि सरकार उनकी काबिलियत को नजरअंदाजल कर रही है. उनको आज तक पदम् श्र, पदम् विभूषण, पदम् भूषण सरीखे का कोई भी सम्मान नहीं दिया गया है. लोग इन्हें आज भी अल्बर्ट आइंस्टीन से भी ज्यादा विद्वान मानते हैं. आज भी अमेरिका में इनके शोध किये हुए विषयों को पढ़ाया जाता है.

देश के लिए अमेरीका को ठुकराया
यह काफी दु:खद है कि जो इंसान अमेरिका के नासा द्वारा गाड़ी,बंगला और एक अच्छी सैलरी के प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा दिया कि मैं देश के लिए सेवा करूंगा. उस शख्सियत को भूला दिया गया है.

आरा: पूरा प्रदेश बिहार दिवस मना रहा है. इस मौके पर आपको बिहार के उस सपूत की जिंदगी से रूबरू करा रहे हैं. जिन्होंने अपनी विद्वता और काबिलियत का लोहा न सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका जैसे देश को भी मनवाया है. लेकिन कुछ वजहों से आज काबिलियत का सूर्य गुमनामी के गर्त में डूबता जा रहा है. कहानी आरा के वसंतपुर गांव के निवासी महान गणितज्ञ वशिष्ट नारायण सिंह का है.

बचपन से ही हैं प्रतिभा के धनी
2 अप्रैल 1942 को जन्मे वशिष्ट नारायण सिंह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. इनकी विद्वता के बारे में यह कहा जाता है कि जब वे पटना साइंस कॉलेज में पढ़ रहे थे तभी अपने शिक्षकों को गलत पढ़ाने को लेकर बहस कर लेते थे. कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई. जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए.साथ ही उनकी प्रतिभा का सम्मान भी किया.


दोस्त करते हैं मदद
वहीं उनके मित्र कहते हैं कि वशिष्ट नारायण को पुराने साथियों से मदद मिल रही है. उनकी बीमारी का इलाज भी उनके मित्रों की सहायता से हो रही है. लोग उनको पागल कहते हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. उन्होंने देश का नाम रौशन किया है. जटिल गणितिय सवालों को पल भर में हल कर देते थे.


आइंस्टीन को दी थी चुनौती
वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी. उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था. यह उनके लिए बहुत बड़ी कामयाबी थी.


सरकार ने उठाया फायदा
परिवार वालों का कहना है कि सरकार ने सिर्फ उनके नाम का फायदा उठाया है. जिस प्रकार की उपलब्धियां उनके पास है, सरकार को उन्हें बिहार रत्न से नवाजा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लालू की सरकार में डॉ नारायण के बारे में कम से कम बातचीत हुआ करती थी. लेकिन नीतीश कुमार की सरकार में उन्हें कोई पूछता तक नहीं है.

काबिलियत को किया गया नजरअंदाज
वहीं उनके भाई का कहना है कि सरकार उनकी काबिलियत को नजरअंदाजल कर रही है. उनको आज तक पदम् श्र, पदम् विभूषण, पदम् भूषण सरीखे का कोई भी सम्मान नहीं दिया गया है. लोग इन्हें आज भी अल्बर्ट आइंस्टीन से भी ज्यादा विद्वान मानते हैं. आज भी अमेरिका में इनके शोध किये हुए विषयों को पढ़ाया जाता है.

देश के लिए अमेरीका को ठुकराया
यह काफी दु:खद है कि जो इंसान अमेरिका के नासा द्वारा गाड़ी,बंगला और एक अच्छी सैलरी के प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा दिया कि मैं देश के लिए सेवा करूंगा. उस शख्सियत को भूला दिया गया है.

Intro:एक साधारण जिंदगी कामयाबी के पंख से उड़ान भरने के बाद राजनीतिक कुचक्र की वजह से अचानक औंधे मुँह गिर जाए तो तकलीफ होना लाजमी है। जी हाँ कुछ ऐसी ही कहानी है बिहार के उस सपूत की जिन्होंने अपनी विद्वता और काबिलियत का लोहा न सिर्फ भारत मे बल्कि अमेरिका जैसे देश को भी मनवाया लेकिन कुछ वजहों से आज काबिलियत का सूर्य गुमनामी के गर्त में डूब रहा है। जी हाँ वो विभूति हैं भोजपुर के वसंतपुर निवासी वशिष्ट नारायण सिंह जिनका नाम दुनिया के महान गणितज्ञों में एक है।


Body:2 अप्रैल 1942 में जन्मे वशिष्ट नारायण सिंह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इनकी विद्वता के बारे में यह कहा जाता है कि जब वे पटना साइंस कॉलेज में पढ़ा रहे थे तभी अपने शिक्षकों को गलत पढ़ाने के कारण उन्हें टोक दिए।
परिजन सरकार के लापरवाही से हैं नाराज-इस बावत उनके परिजनों ने सरकार की व्यवस्था पर आरोप लगाते हुए कहा कि जिस शख्स ने अपनी प्रतिभा का लोहा भारत से अमेरिका तक को मनवाया वहीं आज ये सरकार की अनदेखी का शिकार हो रहे हैं।
पुराने मित्र कर रहे हैं मदद- परिजनों ने बताया कि उनके नेतरहाट के कुछ मित्र जिनका एक ग्रुप है(नोवा) उन्हें अब तक हर तरह से मदद कर रहा है बिना किसी को कुछ बताए।वे लोग ही अब तक गुप्त रूप से इनका इलाज करा रहे हैं लेकिन सरकार से इतना भी नही बन पाया कि इस विभूति को सम्मान दे सके।
सम्मान मिलना चाहिए- परिजनो का कहना है कि सरकार इन्हें पदम् श्री,पदम् विभूषण,पदम् भूषण सरीखे कोई भी सम्मान अब तक नही दे पाई।क्या वे इस काबिल नही जो इन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया जाय?। लोग इन्हें आज भी अल्बर्ट आइंस्टीन से भी ज्यादा विद्वान मानते हैं।विदित हो कि आज भी अमेरिका में इनके शोध किये हुए विषयों को पढ़ाया जाता है।


Conclusion:यह काफी दुखद है जो अमेरिका नासा के द्वारा गाड़ी,बंगला और एक अच्छी सैलरी के प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा दिया कि मैं देश के लिए सेवा करूँगा और देश ऐसा कि इनकी कद्र न सका
देश के कर्णधारों ने इन्हें सिर्फ इस्तेमाल कर गुमनामी की गहराई में फेंक दिया।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.