आराः साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है. इसलिए सरकारी विद्यालयों में ड्रेस, मिड डे मिल, फ्री किताब समेत अंडे और फल आदि के वितरण की योजनाएं बनाई गई. ताकि विद्यालयों में बच्चों की संख्या में वृद्धि हो सके. इसके बावजूद सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या 80 फ़ीसदी भी नहीं हो पा रही है. इसकी मुख्य वजह विद्यालय प्रबंधन के जरिए योजनाओं में मची लूट खसोट है.
साल में दो दिन आते हैं प्रिंसिपल
कुछ ऐसी ही स्थिति है भोजपुर जिला के गड़हनी प्रखंड स्थित प्राथमिक विद्यालय मरसिया मठिया विद्यालय की. जहां कहने के लिए तो नामांकित बच्चों की संख्या 49 है. और बच्चों की उपस्थिति 30 से 35 दिखाई जाती है. जबकि सच्चाई कुछ और है. ग्रामीणों का कहना है कि इस विद्यालय में प्रधानाध्यापक सहित कुल 3 शिक्षक हैं. जिसमें प्रधानाध्यापक अरुण कुमार साल में मात्र दो ही दिन दिखाई पड़ते हैं. 15 अगस्त और 26 जनवरी को. बाकी के दिनों में क्रमशः सरिता कुमारी और राजन सिंह ही विद्यालय की देख रेख करते हैं.
कार्यालय में रखे रहते हैं गोइठे
ग्रामीणों का आरोप है कि एक दिन राजन सिंह विद्यालय आते हैं तो दूसरे दिन सरिता कुमारी फिर तीसरे दिन राजन कुमार तो चौथे दिन सरिता कुमारी. कमोबेश यही स्थिति बनी रहती है और विद्यालय चलता रहता है. इस सिलसिले में आस-पास के ग्रामीणों ने कई बार इस बात को लेकर हल्ला-गुल्ला किया. लेकिन दबंगता के कारण प्रधानाध्यापक अरुण कुमार पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई. इस विद्यालय का कार्यालय कहने के लिए तो कार्यालय है लेकिन असल में ये कचरे का अंबार है. इस कार्यालय में टूटे-फूटे सामान और गोबर के गोइठे रखे जाते हैं.
मिड डे भोजन की स्थिति दयनीय
मिड डे मिल की स्थिति के बारे में ईटीवी भारत के द्वारा पड़ताल करने पर ग्रामीणों ने बताया कि विद्यालय में मिड डे भोजन तो बनता ही नहीं. जब आस-पास के लोग इस बात को लेकर हल्ला बोल करते हैं तो कुछ दिन भोजन बनता है वह भी जैसे-तैसे और फिर बन्द हो जाता है, यहां तक कि शुक्रवार को मिलने वाले अंडे और फल भी वितरित नहीं किये जाते. विद्यालय में उपस्थित शिक्षक राजन सिंह ने बताया कि मेरे पास इस कार्य के लिए पैसे नहीं है. सारा वित्तीय कार्यभार प्रधानाध्यापक अरुण कुमार करते हैं. वो आज विद्यालय नहीं आए हैं इसलिए फलों का वितरण नहीं हो पाया. जबकि सच्चाई यह है कि इस विद्यालय में फल या अंडे का वितरण होता ही नहीं है. कुल मिलाकर स्थिति यह है कि मिड डे भोजन वहां बनता नहीं, सिर्फ और सिर्फ फाइलों में मिड-डे भोजन दर्ज होता है.
स्वच्छ भारत मिशन की उड़ी धज्जियां
इस विद्यालय में स्वच्छ भारत मिशन की भी जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है. इस विद्यालय की छात्रा काजल कुमारी ने बताया कि विद्यालय के छात्र-छात्राएं शौच के लिए विद्यालय के शौचालय में नहीं बल्कि विद्यालय के बाहर खेत में या फिर विद्यालय के पीछे जाते हैं. ईटीवी भारत ने पड़ताल किया तो बच्चों ने बताया कि शिक्षकों ने स्पष्ट रूप से मना किया गया है कि बच्चे शौचालय में नहीं जाएंगे. अगर उन्हें जाना होगा तो वो खेत में जाएं या फिर विद्यालय के पीछे.
योजनाओं की राशि से बच्चे वंचित
विद्यालय में चल रही योजनाएं चाहे वो पोशाक राशि हो, किताबों की राशि हो या पोशाक राशि इन सभी राशियों से इस विद्यालय के बच्चे वंचित रहते हैं. इस बाबत ग्रामीण पुथरा देवी ने बताया कि हम लोगों के बच्चों को अब तक कोई राशि यहां से नहीं मिली है. इन लोगों ने बैंक में खाता खुलवाने की बात कही बच्चों का खाता भी खुल गया. लेकिन अब तक इनके खाते में एक भी रुपया नहीं आया. इस बात को लेकर ग्रामीणों में आक्रोश भी है.
इस संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी कौशल किशोर ने कहा कि इसकी जांच की जाएगी. 10 जून को विद्यालय खुल रहा है, इसके बाद वह खुद जाकर इसकी जांच पड़ताल करेंगे और इन सारी अव्यवस्थाओं के जिम्मेवार शिक्षकों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.