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भागलपुर: बाढ़ के भय से कटाव पीड़ित खुद तोड़ रहे अपना घर, अब तक नहीं मिली सरकारी मदद

भागलपुर में कटाव से सहमे लोग खुद ही अपना घर तोड़ने को मजबूर हैं. बाढ़ की त्रासदी से बिहपुर की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिर रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से जिदंगी नारकीय हो जाती है.

भागलपुर में बाढ़ के भय से कटाव पीड़ित खुद तोड़ रहे अपना घर
भागलपुर में बाढ़ के भय से कटाव पीड़ित खुद तोड़ रहे अपना घर
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Published : Jul 16, 2021, 1:36 PM IST

भागलपुर: बिहार के भागलपुर जिले में हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ (Bihar Flood) ने कहर बरपाया है. इसी कड़ी में बिहपुर के कहारपुर गांव में बाढ़ से भयभीत लोग अपने ही घरों को तोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि इलाके में लगातार कटाव जारी है. ऐसे में हमारा मकान टूटेगा. लेकिन मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी. इससे अच्छा है कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें.

बिहपुर प्रखण्ड अंतर्गत हरिओम पंचायत के कहारपुर गांव के बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक गांव में कटाव तेज हो गई है. आये दिन समस्याएं कम होने के बाजाये बढ़ती जा रही हैं. हमारे पास अभी तक प्रशासनिक सुविधाएं नहीं पहुंची हैं. गांव के चारों ओर पानी ही पानी है. गांव से बाहर निकलने के लिए नाव ही एक मात्र सहारा है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि यहां के लोगों के लिए प्रशासन की तरफ से एक नाव की भी व्यवस्था नहीं कराई गई है.

कटाव पीड़ितों ने बताया कि हम सभी अब अपने हाथों से खुद के आशियानों तोड़ कर रहे हैं. बचने के लिए ऊंची जगहों पर शरण ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि नदी पार कर गांव से बाहर निकलने पर NH-31 एवं रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ हमने टेंट बनाकर अपना आशियाना बनाया है. उन्होंने कहा कि बारिश के समय में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कभी-कभी ऐसी बन जाती है कि हमें रात-रात भर जागना पड़ता है कि कहीं कटाव अधिक तेज ना हो जाए.

'पूर्वजों द्वारा बनाया गया 10 कमरों का यह घर आज अपने हाथों से तोड़कर कहीं और शिफ्ट कर रहा हूं. अब कहां जाऊंगा, कोई ठिकाना नहीं हैं. इलाके में लगातार 4 साल से कटाव जारी है. प्रत्येक मानसून में कटाव की गति तेज हो जाती है. हमने हर जगह पर आवेदन दिया लेकिन अधिकारियों ने आज तक कुछ नहीं किया.':- सनातन सिंह, कटाव पीड़ित

'कटाव की स्थिति ने विकराल रूप धारण कर लिया है. हमें ना तो सरकार के द्वारा प्लास्टिक शीट दिया जा रहा है. जिससे कि हम मानसून में बरसात अधिक होने पर बच सके. हमें कोई सरकारी सुख-सुविधाएं भी नहीं दी जा रही है. उन्होंने यह भी बताया कि गांव में स्थित सरकारी उप स्वास्थ्य केंद्र भी जर्जर अवस्था में है. यहां तो ना तो कोई डॉक्टर आते हैं ना ही दवाई की कोई व्यवस्था है.' :- किरण देवी, कटाव पीड़ित

देखें वीडियो

बता दें कि बिहार में हर साल बढ़ और कटाव से भारी तबाही होती है. जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं. कई लोगों के घर बाढ़ में बह जाते हैं. कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है. अब स्थिति यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में बाढ़ प्रभावित इलाके भले ही कम हो लेकिन तबाही सबसे ज्यादा है. मानसून में अधिक बारिश के अलावा नेपाल से आने वाला पानी बाढ़ का एक बड़ा कारण है. इसकी वजह से कोसी, कमला, बागमती, गंडक, महानंदा और गंगा मानसून के समय बेहद खतरनाक रूप ले लेती है.

भागलपुर: बिहार के भागलपुर जिले में हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ (Bihar Flood) ने कहर बरपाया है. इसी कड़ी में बिहपुर के कहारपुर गांव में बाढ़ से भयभीत लोग अपने ही घरों को तोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि इलाके में लगातार कटाव जारी है. ऐसे में हमारा मकान टूटेगा. लेकिन मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी. इससे अच्छा है कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें.

बिहपुर प्रखण्ड अंतर्गत हरिओम पंचायत के कहारपुर गांव के बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक गांव में कटाव तेज हो गई है. आये दिन समस्याएं कम होने के बाजाये बढ़ती जा रही हैं. हमारे पास अभी तक प्रशासनिक सुविधाएं नहीं पहुंची हैं. गांव के चारों ओर पानी ही पानी है. गांव से बाहर निकलने के लिए नाव ही एक मात्र सहारा है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि यहां के लोगों के लिए प्रशासन की तरफ से एक नाव की भी व्यवस्था नहीं कराई गई है.

कटाव पीड़ितों ने बताया कि हम सभी अब अपने हाथों से खुद के आशियानों तोड़ कर रहे हैं. बचने के लिए ऊंची जगहों पर शरण ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि नदी पार कर गांव से बाहर निकलने पर NH-31 एवं रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ हमने टेंट बनाकर अपना आशियाना बनाया है. उन्होंने कहा कि बारिश के समय में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कभी-कभी ऐसी बन जाती है कि हमें रात-रात भर जागना पड़ता है कि कहीं कटाव अधिक तेज ना हो जाए.

'पूर्वजों द्वारा बनाया गया 10 कमरों का यह घर आज अपने हाथों से तोड़कर कहीं और शिफ्ट कर रहा हूं. अब कहां जाऊंगा, कोई ठिकाना नहीं हैं. इलाके में लगातार 4 साल से कटाव जारी है. प्रत्येक मानसून में कटाव की गति तेज हो जाती है. हमने हर जगह पर आवेदन दिया लेकिन अधिकारियों ने आज तक कुछ नहीं किया.':- सनातन सिंह, कटाव पीड़ित

'कटाव की स्थिति ने विकराल रूप धारण कर लिया है. हमें ना तो सरकार के द्वारा प्लास्टिक शीट दिया जा रहा है. जिससे कि हम मानसून में बरसात अधिक होने पर बच सके. हमें कोई सरकारी सुख-सुविधाएं भी नहीं दी जा रही है. उन्होंने यह भी बताया कि गांव में स्थित सरकारी उप स्वास्थ्य केंद्र भी जर्जर अवस्था में है. यहां तो ना तो कोई डॉक्टर आते हैं ना ही दवाई की कोई व्यवस्था है.' :- किरण देवी, कटाव पीड़ित

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बता दें कि बिहार में हर साल बढ़ और कटाव से भारी तबाही होती है. जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं. कई लोगों के घर बाढ़ में बह जाते हैं. कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है. अब स्थिति यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में बाढ़ प्रभावित इलाके भले ही कम हो लेकिन तबाही सबसे ज्यादा है. मानसून में अधिक बारिश के अलावा नेपाल से आने वाला पानी बाढ़ का एक बड़ा कारण है. इसकी वजह से कोसी, कमला, बागमती, गंडक, महानंदा और गंगा मानसून के समय बेहद खतरनाक रूप ले लेती है.

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