भागलपुरः प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आईंसटीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियां शायद ही विश्वास कर पाएंगी कि उन जैसा हाड़ मांस का पुतला भी जमीन पर चला था. आने वाली पीड़ियों ने ये विश्वास तो जरूर किया. लेकिन गांधी के विचारों को भुला दिया. गांधी के जरिए दिए गए आर्थिक शैक्षणिक और राजनीतिक विचारों को लोग आज समझ नहीं पा रहे. लेकिन भागलपुर के तिलकामांझी विश्वविद्यालय में गांधी के समग्र विचारों को जीवित रखने की कोशिश की जा रही है. यहां के छात्र-छात्राओं के विचारों में गांधी आज भी जीवित हैं.
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गांधी समग्र विचारों की होती है पढ़ाई
दरअसल, तिलकामांझी विश्वविद्यालय में गांधी के समग्र विचारों को लेकर स्नातकोत्तर मैं 2 वर्षों का पाठ्यक्रम चलाया जाता है. वैसे तो देश में कई संस्थानों में गांधी के विचार एवं आदर्श को लेकर पाठ्यक्रम चालाया जाता है. लेकिन भागलपुर के गांधी विचार विभाग में छात्रों को यह बताया जाता है कि महात्मा गांधी की आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान कि क्या नीतियां थी. किस तरह से भारत की संस्कृति और अन्य चीजों को लेकर जो नजरिया था वह क्या था ? जबकि दूसरे विश्वविद्यालय और संस्थान में गांधी की अहिंसा एवं शांति को लेकर ही पढ़ाई कराई जाती है.
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'गांधी को जयप्रकाश आंदोलन के वक्त समझा'
करीब 23 वर्षों से गांधी विचार विभाग से जुड़े हुए प्रोफेसर डॉ विजय कुमार कहते हैं कि गांधी को 1974 के जयप्रकाश आंदोलन के वक्त समझा. वह उस आंदोलन के सिपाही भी रहे हैं. गांधी को लेकर मदुरै कामराज जैसे कई जगहों में पढ़ाई तो होती है लेकिन वह सिर्फ उनके नॉनवॉयलेंस और पीस पॉलिसीज को लेकर होती है. जबकि भागलपुर के गांधी विचार विभाग में गांधी की समग्र विचारधारा को लेकर पढ़ाई होती है.
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हर चीजों पर था गांधी का फोकस
गांधी विचार विभाग में पढ़ रहे छात्रों का कहना है की गांधी विचार विभाग में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार को जानने के बाद उन्हें जानने की जिज्ञासा और बढ़ गई है. गांधी की जो विचारधारा थी खासकर के आर्थिक राजनीतिक और शैक्षणिक चीजों को लेकर वह काफी व्यवहारिक थे. गांधी का जो फोकस था, वह हर चीजों को लेकर था. खासकर जो बुनियादी शिक्षा थी. जिससे कि शिक्षा व्यवस्था एक बेहतर तरीके से चल रही थी.
'गांधी की नीतियों पर सरकार ने तवज्जो नहीं दी'
छात्रों ने कहा कि 1980 के बाद जो बुनियादी शिक्षा व्यवस्था चलाई जा रही थी. उसमें वैकेंसी नहीं आने की वजह से बेरोजगारी काफी ज्यादा बढ़ गई. गांधी की शैक्षणिक आर्थिक और अन्य नीतियों को सरकार ने तवज्जो नहीं दिया. खास करके जो बुनियादी शिक्षा की नीति महात्मा गांधी ने बनाई थी. उसे भी सरकार की उदासीनता झेलनी पड़ी. जिसकी वजह से बुनियादी शिक्षण संस्थान बंद होने के कगार पर आ गए हैं.