बेगूसराय: सरकार ने निस्सहाय बुजुर्ग माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून बनाया है. लेकिन अभी भी कई ऐसे वृद्ध हैं जो अपने संतान से प्रताड़ित होकर या तो घर छोड़ दिए या उनकी प्रताड़ना झेल रहे हैं. एक ऐसा ही मामला है देवकीनंदन चौधरी का है. 85 वर्षीय देवकीनंदन चौधरी बेगूसराय के पोखरिया निवासी हैं. 6 साल पहले इनके संतान ने इन्हें और इनकी पल्नी को घर से बेदखल कर दिया. इसे लेकर देवकीनंदन चौधरी ने तमाम अधिकारियों के पास न्याय की गुहार लगाई लेकिन किसी ने नहीं सुनी.
न्याय की आस में देवकीनंदन
आखिरी में देवकीनंदन ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने चौधरी को घर पर हक दिलाने का भरोसा भी दिया लेकिन रसूखदार बेटे के कारण वो अभी तक अपने घर में दाखिल नहीं हो सके हैं. हालात यह है कि बीते 6 साल से वह बेगूसराय में किराए के मकान में रह रहे हैं. बीते वर्ष पत्नी की भी मौत हो गई. अब वो अकेले किराए के मकान में जीवन यापन कर रहे हैं. इनका कहना है कि अधिकारियों के चक्कर लगाकर थक गए हैं लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिला है.
क्या कहते हैं अधिकारी
हालांकि जिला स्तरीय फोरम के सदस्यों का कहना है कि सरकार द्वारा बनाये गये इस कानून से कई लोगों को न्याय मिला है. ज्यादातर मामलों का भी निष्पादन किया गया है. सरकारी अधिकारी के मुताबिक 50 मामलों का निष्पादन किया जा चुका है. इनका दावा है जो भी वृद्धजन सुरक्षा और मेंटेनेंस के लिए आवेदन देते हैं उनके संतानों को बुलाकर काउंसलिंग की जाती है. और संतान को वृद्ध माता-पिता के साथ रहने के लिए राजी किया जाता है. उनकी सुरक्षा की भी जिम्मेदारी संतान को सौंपी जाती है.
दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर
सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने का जिम्मा जिले में पदस्थापित अधिकारियों को सौंप दिया. अधिकारी और फोरम के सदस्यों द्वारा दी गयी जानकारी पर भरोसा कर भी लें तो देवकीनंदन चौधरी जैसे मामले को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है. देवकीनंदन अकेला उदाहरण नहीं हैं जो न्याय के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. ऐसे कई लोग अब भी हैं जो अपने संतान से निराश होकर सरकारी तंत्र से न्याय मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
क्या है वृद्धजन सुरक्षा कानून
सरकार ने निस्सहाय वृद्ध माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून बनाया है. वृद्धजन सुरक्षा कानून के अनुसार बिहार सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करने पर बच्चों को जेल भेजने का प्रावधान किया है. राज्य सरकार के नए कानून के तहत बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के अनादर से जुड़े मामलों में सुनवाई की व्यवस्था में बदलाव किया गया है. अब ऐसे मामलों की सुनवाई संबंधित जिले के डीएम करेंगे. और उन्हें सजा देने का भी हक दिया गया है. पहले इस तरह के मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश करते थे.
जिले के डीएम करेंगे मामले की सुनवाई
इस बदलाव के बाद बच्चों द्वारा अनादर किए जाने पर माता-पिता प्रखंड विकास पदाधिकारी के यहां शिकायत कर सकेंगे. इसके बाद सबडिवीजन ऑफिसर के पास 21 दिन का समय होगा कि वह मामले की पूरी जांच कर डीएम को रिपोर्ट सौंप दें. अगर समय पर यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो शिकायतकर्ता सीधे डीएम से संपर्क कर सकता है. डीएम को शिकायत मिलने के 15 दिन के भीतर इस मामले में निर्णय लेना होगा.