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बेगूसराय: बुजुर्गों के लिए सुरक्षा कानून बनने के बाद भी नहीं मिली मदद, दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर

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Published : Aug 13, 2019, 8:41 AM IST

देवकीनंदन ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन रसूखदार बेटे के कारण वो अभी तक अपने घर में दाखिल नहीं हो सके हैं. हालात यह है कि बीते 6 साल से वह बेगूसराय में किराए के मकान में रह रहे हैं. अधिकारियों के चक्कर लगाकर थक गए हैं लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिला है.

वृद्धजन सुरक्षा कानून बनने के बाद भी नहीं मिली मदद

बेगूसराय: सरकार ने निस्सहाय बुजुर्ग माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून बनाया है. लेकिन अभी भी कई ऐसे वृद्ध हैं जो अपने संतान से प्रताड़ित होकर या तो घर छोड़ दिए या उनकी प्रताड़ना झेल रहे हैं. एक ऐसा ही मामला है देवकीनंदन चौधरी का है. 85 वर्षीय देवकीनंदन चौधरी बेगूसराय के पोखरिया निवासी हैं. 6 साल पहले इनके संतान ने इन्हें और इनकी पल्नी को घर से बेदखल कर दिया. इसे लेकर देवकीनंदन चौधरी ने तमाम अधिकारियों के पास न्याय की गुहार लगाई लेकिन किसी ने नहीं सुनी.

न्याय की आस में देवकीनंदन

आखिरी में देवकीनंदन ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने चौधरी को घर पर हक दिलाने का भरोसा भी दिया लेकिन रसूखदार बेटे के कारण वो अभी तक अपने घर में दाखिल नहीं हो सके हैं. हालात यह है कि बीते 6 साल से वह बेगूसराय में किराए के मकान में रह रहे हैं. बीते वर्ष पत्नी की भी मौत हो गई. अब वो अकेले किराए के मकान में जीवन यापन कर रहे हैं. इनका कहना है कि अधिकारियों के चक्कर लगाकर थक गए हैं लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिला है.

begusarai
वृद्धजन सुरक्षा कानून बनने के बाद भी नहीं मिली मदद

क्या कहते हैं अधिकारी
हालांकि जिला स्तरीय फोरम के सदस्यों का कहना है कि सरकार द्वारा बनाये गये इस कानून से कई लोगों को न्याय मिला है. ज्यादातर मामलों का भी निष्पादन किया गया है. सरकारी अधिकारी के मुताबिक 50 मामलों का निष्पादन किया जा चुका है. इनका दावा है जो भी वृद्धजन सुरक्षा और मेंटेनेंस के लिए आवेदन देते हैं उनके संतानों को बुलाकर काउंसलिंग की जाती है. और संतान को वृद्ध माता-पिता के साथ रहने के लिए राजी किया जाता है. उनकी सुरक्षा की भी जिम्मेदारी संतान को सौंपी जाती है.

begusarai
संजीव चौधरी, सदर एसडीएम

दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर
सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने का जिम्मा जिले में पदस्थापित अधिकारियों को सौंप दिया. अधिकारी और फोरम के सदस्यों द्वारा दी गयी जानकारी पर भरोसा कर भी लें तो देवकीनंदन चौधरी जैसे मामले को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है. देवकीनंदन अकेला उदाहरण नहीं हैं जो न्याय के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. ऐसे कई लोग अब भी हैं जो अपने संतान से निराश होकर सरकारी तंत्र से न्याय मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

पेश है रिपोर्ट

क्या है वृद्धजन सुरक्षा कानून

सरकार ने निस्सहाय वृद्ध माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून बनाया है. वृद्धजन सुरक्षा कानून के अनुसार बिहार सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करने पर बच्चों को जेल भेजने का प्रावधान किया है. राज्य सरकार के नए कानून के तहत बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के अनादर से जुड़े मामलों में सुनवाई की व्यवस्था में बदलाव किया गया है. अब ऐसे मामलों की सुनवाई संबंधित जिले के डीएम करेंगे. और उन्हें सजा देने का भी हक दिया गया है. पहले इस तरह के मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश करते थे.

जिले के डीएम करेंगे मामले की सुनवाई

इस बदलाव के बाद बच्चों द्वारा अनादर किए जाने पर माता-पिता प्रखंड विकास पदाधिकारी के यहां शिकायत कर सकेंगे. इसके बाद सबडिवीजन ऑफिसर के पास 21 दिन का समय होगा कि वह मामले की पूरी जांच कर डीएम को रिपोर्ट सौंप दें. अगर समय पर यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो शिकायतकर्ता सीधे डीएम से संपर्क कर सकता है. डीएम को शिकायत मिलने के 15 दिन के भीतर इस मामले में निर्णय लेना होगा.

बेगूसराय: सरकार ने निस्सहाय बुजुर्ग माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून बनाया है. लेकिन अभी भी कई ऐसे वृद्ध हैं जो अपने संतान से प्रताड़ित होकर या तो घर छोड़ दिए या उनकी प्रताड़ना झेल रहे हैं. एक ऐसा ही मामला है देवकीनंदन चौधरी का है. 85 वर्षीय देवकीनंदन चौधरी बेगूसराय के पोखरिया निवासी हैं. 6 साल पहले इनके संतान ने इन्हें और इनकी पल्नी को घर से बेदखल कर दिया. इसे लेकर देवकीनंदन चौधरी ने तमाम अधिकारियों के पास न्याय की गुहार लगाई लेकिन किसी ने नहीं सुनी.

न्याय की आस में देवकीनंदन

आखिरी में देवकीनंदन ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने चौधरी को घर पर हक दिलाने का भरोसा भी दिया लेकिन रसूखदार बेटे के कारण वो अभी तक अपने घर में दाखिल नहीं हो सके हैं. हालात यह है कि बीते 6 साल से वह बेगूसराय में किराए के मकान में रह रहे हैं. बीते वर्ष पत्नी की भी मौत हो गई. अब वो अकेले किराए के मकान में जीवन यापन कर रहे हैं. इनका कहना है कि अधिकारियों के चक्कर लगाकर थक गए हैं लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिला है.

begusarai
वृद्धजन सुरक्षा कानून बनने के बाद भी नहीं मिली मदद

क्या कहते हैं अधिकारी
हालांकि जिला स्तरीय फोरम के सदस्यों का कहना है कि सरकार द्वारा बनाये गये इस कानून से कई लोगों को न्याय मिला है. ज्यादातर मामलों का भी निष्पादन किया गया है. सरकारी अधिकारी के मुताबिक 50 मामलों का निष्पादन किया जा चुका है. इनका दावा है जो भी वृद्धजन सुरक्षा और मेंटेनेंस के लिए आवेदन देते हैं उनके संतानों को बुलाकर काउंसलिंग की जाती है. और संतान को वृद्ध माता-पिता के साथ रहने के लिए राजी किया जाता है. उनकी सुरक्षा की भी जिम्मेदारी संतान को सौंपी जाती है.

begusarai
संजीव चौधरी, सदर एसडीएम

दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर
सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने का जिम्मा जिले में पदस्थापित अधिकारियों को सौंप दिया. अधिकारी और फोरम के सदस्यों द्वारा दी गयी जानकारी पर भरोसा कर भी लें तो देवकीनंदन चौधरी जैसे मामले को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है. देवकीनंदन अकेला उदाहरण नहीं हैं जो न्याय के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. ऐसे कई लोग अब भी हैं जो अपने संतान से निराश होकर सरकारी तंत्र से न्याय मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

पेश है रिपोर्ट

क्या है वृद्धजन सुरक्षा कानून

सरकार ने निस्सहाय वृद्ध माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून बनाया है. वृद्धजन सुरक्षा कानून के अनुसार बिहार सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करने पर बच्चों को जेल भेजने का प्रावधान किया है. राज्य सरकार के नए कानून के तहत बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के अनादर से जुड़े मामलों में सुनवाई की व्यवस्था में बदलाव किया गया है. अब ऐसे मामलों की सुनवाई संबंधित जिले के डीएम करेंगे. और उन्हें सजा देने का भी हक दिया गया है. पहले इस तरह के मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश करते थे.

जिले के डीएम करेंगे मामले की सुनवाई

इस बदलाव के बाद बच्चों द्वारा अनादर किए जाने पर माता-पिता प्रखंड विकास पदाधिकारी के यहां शिकायत कर सकेंगे. इसके बाद सबडिवीजन ऑफिसर के पास 21 दिन का समय होगा कि वह मामले की पूरी जांच कर डीएम को रिपोर्ट सौंप दें. अगर समय पर यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो शिकायतकर्ता सीधे डीएम से संपर्क कर सकता है. डीएम को शिकायत मिलने के 15 दिन के भीतर इस मामले में निर्णय लेना होगा.

Intro:एंकर- सरकार ने निस्सहाय वृद्ध माता-पिता को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए नया कानून लाया है इसके तहत बूढ़े माता-पिता को प्रताड़ित करने वाले नालायक बेटों पर कानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान है ,वैसे तो इसके लिए बनाए गए जिला स्तरीय फोरम के द्वारा बीते 1 वर्ष में 50 से ज्यादा मामलों का निष्पादन हुआ है लेकिन अभी भी कई ऐसे वृद्ध हैं जो अपने संतान से प्रताड़ित होकर या तो घर छोड़ दिए या उनकी प्रताड़ना झेल रहे हैं।

नोट-vo कर दिया हूँ।


Body:vo- बिहार सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करने पर बच्चों को जेल भेजने का प्रावधान किया है ।राज्य सरकार के नए कानून के तहत बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के अनादर से जुड़े मामलों में सुनवाई की व्यवस्था में बदलाव किया गया है, अब ऐसे मामलों की सुनवाई संबंधित जिलों के डीएम करेंगे और उन्हें सजा देने का भी हक दिया गया है। पहले इस तरह के मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश करते थे।
अब यह होगी प्रक्रिया
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पहले माता-पिता या वरिष्ठ नागरिकों को न्याय के लिए जिलों की के फैमिली कोर्ट में अपील करनी होती थी ,पर अब डीएम खुद सुनवाई कर सकेंगे और सजा भी देने का अधिकार उन्हें दिया गया है ।
इस बदलाव के बाद बच्चों द्वारा अनादर किए जाने पर माता-पिता प्रखंड विकास पदाधिकारी के यहां शिकायत कर सकेंगे इसके बाद सबडिवीजन ऑफिसर के पास 21 दिन का समय होगा कि वह मामले की पूरी जांच कर डीएम को रिपोर्ट सौंप दें अगर समय पर यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो शिकायतकर्ता सीधे डीएम से संपर्क कर सकता है।
डीएम को शिकायत मिलने के 15 दिन के भीतर इस मामले में सक्षम निर्णय लेना होगा।
सरकार ने कानून तो बना दिया लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने का जिम्मा जिले में पदस्थापित अधिकारियों को सौंप दिया। बेगूसराय की बात करें तो बीते 1 साल में संबंधित फोरम में एक सौ से ज्यादा आवेदन वृद्ध माता-पिता के द्वारा अपने सन्तानो के खिलाफ दिए गए। सरकारी अधिकारी के मुताबिक 50 मामलों का निष्पादन किया जा चुका है संबंधित फोरम और अधिकारियों का दावा है जो भी वृद्धजन सुरक्षा और मेंटेनेंस के लिए आवेदन देते हैं उनके संतानों को बुलाकर कौनसेलिंग की जाती है और हरसंभव वृद्ध माता-पिता को संतान के साथ रहने के लिए राजी किया जाता है तथा सुरक्षा की जिम्मेदारी संतान को सौंपी जाती है, लेकिन कई ऐसे मामले हैं जो चौकानेवाले और सरकारी दावों को खोखला साबित करते हैं।
एक ऐसा ही मामला है देवकीनंदन चौधरी का है।85वर्षीय देवकीनंदन चौधरी पोखरिया निवासी हैं बीते 6 साल से उनके द्वारा बनाए गए घर से संतान द्वारा खदेड़ दिए गए हैं हालात ये हैं कि घर आने पर बेटा मारपीट पर उतारू हो जाता है इसके लिए देवकीनंदन चौधरी के द्वारा तमाम अधिकारियों के यहां न्याय की गुहार लगाई गई उससे भी बात नहीं बनी तो देवकीनंदन चौधरी ने हाई कोर्ट से न्याय की गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने अधिकारियों को श्री चौधरी के घर पर कब्जा दिलाने का आदेश भी दिया लेकिन रसूखदार बेटे के कारण वो अभी तक अपने घर में दाखिल नहीं हो सके हैं हालात यह है कि बीते 6 साल से वह इसी शहर में किराए के मकान में रह रहे हैं। बीते वर्ष पत्नी की भी किराए के मकान में ही मौत हो गई अब अकेले किराए के मकान में व जीवन यापन कर रहे हैं ।उनके मुताबिक अधिकारियों के यहां दौड़ते दौड़ते थक गए हैं लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है।
बाइट -देवकीनंदन चौधरी अधिकारी।
फोरम के सदस्यों और अधिकारी दावा करते हैं कि इस कानून से कई लोगों को न्याय मिला है ज्यादातर मामले का निष्पादन किया गया है।
बाइट-दिलीप सिन्हा, फोरम के सदस्य
बाइट-संजीव चौधरी,एसडीएम सदर


Conclusion:fvo-अधिकारी और फोरम के लोगों द्वारा दी गयी जानकारी पर भड़ोसा कर भी लें तो देवकीनंदन चौधरी जैसे मामले को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है क्योंकि देवकीनंदन अकेले उदाहरण नही जो न्याय के लिए दर दर की ठोकर खा रहे हैं ऐसे कई लोग अब भी हैं जो अपने संतानों से निराश होकर सरकारी तंत्र से न्याय मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
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