बेगूसराय : जिले में एससी एसटी एक्ट का धड़ल्ले से दूरूपयोग हो रहा है. जिसकी वजह से विभिन्न थानों में एससी एसटी एक्ट से जुड़े मामलों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है. बीते वर्ष जून महीने से लेकर जून 2019 तक 194 मामले इससे संबंधित दर्ज किए गए हैं. कानून के जानकार बताते हैं कि ज्यादातर मामले जांच में फर्जी निकलते हैं और मुआवजे की राशि लेने के लिए अब इसका उपयोग हो रहा है. इससे ना सिर्फ सरकारी सिस्टम पर बोझ बढ़ता है,बल्कि आमलोग इससे प्रताड़ित और अपमानित हो रहे हैं.
इससे संबंधित जातियों को विशेष अधिकार प्राप्त है
सरकार कोई भी कानून बनाती है, तो उसके पीछे एक सोच होती है. आम लोगों की भलाई और सामाजिक समानता स्थापित करना. लेकिन कुछ ऐसे भी कानून हैं, जिनका लोग दुरुपयोग करते हैं. अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम के तहत इससे संबंधित जातियों को विशेष अधिकार प्राप्त है. इसके तहत अगर समाज में उन्हें अन्य जाति के लोग जातिसूचक शब्दों का प्रयोग या जातीय आधार पर हिंसा करते हैं, तो जिले के किसी भी थाने या विशेष रूप से बनाये गए हरिजन थाना में वो उसके खिलाफ मामला दर्ज करवा सकते हैं.
एससी एसटी एक्ट से जुड़े मामलों में हुई है वृद्धि
सरकारी प्रावधान के अनुरूप अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम का उल्लंघन होने पर पीड़ित पक्ष को सरकार ने मुआवजे देने का भी प्रावधान किया है. जांच में मामला सही पाए जाने पर पीड़ित पक्ष को सरकार की ओर से मुआवजा भी दिया जाता है. शुरुआत में तो इस कानून का व्यापक असर हुआ. इससे ना सिर्फ पीड़ित अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को न्याय की उम्मीद जगी. बल्कि वैसे लोग जो जातीय आधार पर टिप्पणी करते थे या प्रताड़ित करते थे, उन लोगों ने भी इस कानून के भय से इस तरह की हिंसा से परहेज करना शुरू कर दिया. लेकिन बाद के दिनों में जैसे जैसे लोगों को पता चला कि केस दर्ज होने के बाद सरकार की ओर से मुआवजे की राशि भी मिलती है, तब से लगातार जिले में एससी एसटी एक्ट से जुड़े मामलों की बाढ़ सी आ गई है.
क्या कहते हैं अधिकारी
इस बाबत मुख्यालय डीएसपी कुंदन कुमार सिंह बताते हैं कि सरकार ने जो भी कानून बनाए हैं, उनका सदुपयोग भी होता है और दुरुपयोग भी होता है. लेकिन एससी एसटी एक्ट के मामले में मुआवजे का प्रावधान का लाभ उठाने का भी कई बार लोगों ने प्रयास किया है. ऐसे कई मामले हैं जो पुलिस अनुसंधान में झूठे साबित किए गए हैं. सरकारी मुआवजे की राशि देने की प्रक्रिया में सरकार ने संसोधन कर दिया है. अब जो मामले सत्य पाए जाएंगे उसी में पीड़ित को मुआवजा दिया जाएगा.
न्यायालय का समय होता है बर्बाद
वहीं कानून के जानकार और बेगूसराय व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता दिवाकर बर्धन सिंह बताते हैं कि इस एक्ट का धड़ल्ले से दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति लोगों में समा गई है. ज्यादातर झूठे मामले ही एससी एसटी एक्ट से संबंधित दर्ज करवाए जा रहे हैं, जो कोर्ट में आकर खारिज हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकारी सिस्टम पर केस को खत्म करने का बोझ बढ़ता है. तो दुसरी तरफ इससे न्यायालय का समय बर्बाद होता है. इसके साथ ही जिनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाता है, उन्हें मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है.
कानून का हो रहा दुरुपयोग
निश्चित तौर पर जिस तरीके से एससी एसटी एक्ट से जुड़े मामले दर्ज करवाने की जिले में होड़ सी लगी है. इससे ना सिर्फ कानून का दुरुपयोग हो रहा है, बल्कि सरकारी सिस्टम भी इस तरह के मामले को निपटाने में अपना समय गवा रहे हैं. क्योंकि कुछ मामलों को छोड़ दें तो ज्यादातर मामले अनुसंधान के बाद असत्य पाए जा रहे हैं.