बेगूसराय : किसी भी आपदा की घड़ी में लोगों को सिर्फ महिला या पुरुष का ख्याल आता है. लेकिन थर्ड जेंडर यानी कि किन्नर के बारे में लोग सोचते तक नहीं हैं. ऐसे में लॉकडाउन की वजह से बेगूसराय के किन्नर समाज के लोग दाने-दाने को मोहताज हैं. इस समाज के लोग दिन-रात कोरोना को हाय-हाय की बद्दुआ देते हैं. वहीं गीत गाकर लोगों को कोरोना वायरस के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं.
कोरोना को दे रहे हैं बद्दुआ
किन्नर समाज का जिक्र आते ही आमतौर पर लोग मुंह फेर लेते हैं. सरकार और समाज की उपेक्षा झेल रहे इस समाज के लोग लॉकडाउन के दौरान दाने-दाने को मोहताज है. बीते डेढ़ महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है. ना कहीं शादी का आयोजन हो रहा है और ना कहीं शुभ-मंगल काम हो रहे हैं. वहीं, ट्रेनों का भी परिचालन नहीं हो रहा है, ऐसे में इस समाज के लोग दाने-दाने को मोहताज हैं. स्टेशन के पास रहने वाले किन्नर समाज के लोग गीत गाकर कोरोना को बद्दुआ दे रहे हैं.
लोगों को कर रहे जागरूक
मोदी सरकार द्वारा कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए किए जा रहे प्रयास को भी गानों के माध्यम से ये लोगों को बता रहे हैं. जीविकोपार्जन के लिए शहर में घूम-घूमकर इस समुदाय के लोग कोरोना वायरस के संक्रमण और उसके रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं. साथ ही साथ आम लोगों को लॉकडाउन का पालन करने और अखबारों और टेलीविजन के जरिए कोरोना वायरस संक्रमण से बचने का सुझाव भी दे रहे हैं.
गमछा देकर किया सम्मानित
इसी क्रम में दाने-दाने को मोहताज इस समुदाय के लोगों पर बेगूसराय के पूर्व विधान पार्षद भूमि पाल राय की नजर पड़ गई, जो लॉकडाउन के दौरान लगातार युवाओं की एक टीम बनाकर 'मैं बेगूसराय बेटा हूं' अभियान के तहत जरूरतमंद लोगों के बीच राहत सामग्री का वितरण कर रहे हैं. वहीं, पूर्व एमएलसी की नजर जब किन्नर समाज की दुर्दशा पर पड़ी, तो उन्होंने 15 दिन का सूखा राशन सभी किन्नरों को दिया. साथ ही मास्क और सैनिटाइजर भी दिया. कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए उनके जागरूकता अभियान वाले गाने के लिए अंगवस्त्र के रूप में गमछा देकर सम्मानित किया.
दाने-दाने को मोहताज
ईटीवी भारत संवाददाता ने किन्नर समाज की लॉकडाउन के दौरान हो रही दुर्दशा पर विशेष बात की. इस दौरान इस समुदाय के लोगों ने बताया की लॉकडाउन के दौरान जो स्थिति उनकी हो गयी है, ऐसी स्थिति का उन्हें कभी सामना नहीं करना पड़ा था. लॉकडाउन की वजह से उनकी आमदनी बिल्कुल खत्म हो गई है. मेहनत मजदूरी कर नहीं सकते, ऐसे में ये लोग दाने-दाने को मोहताज हैं.