बेगूसरायः जिले में बच्चों को एक अनोखी कला सिखाने की पहल की गई है. कोरोना को लेकर सभी स्कूल बंद हैं. ऐसे में बच्चों के लिए मिड ब्रेन एक्टिवेशन की क्लास चलाई जा रही है. जहां बच्चे आंखों पर पट्टी बांधकर पढ़ने-लिखने और खेल की कला सीख रहे हैं.
झेलनी पड़ती है परेशानी
लॉकडाउन से लेकर अब तक जिले के सभी स्कूल बंद हैं. मिड ब्रेन एक्टिवेशन में आंखों पर पट्टी बांधकर हर वो काम करने की कोशिश की जाती है जो आमतौर पर लोग खुली आखों से करते हैं. बच्चों को आमतौर पर पढ़ा हुआ लंबे समय तक याद रखने में परेशानी झेलनी पड़ती है.
निमोनिक्स के सहारे पढ़ रहे बच्चे
बच्चे हमेशा जिस चीज को याद करने में घंटों लगाते हैं वो 2 दिन बाद फिर भूल जाते हैं. किसी को केमिस्ट्री तो किसी को मैथ के फार्मूले याद नहीं रह पाते. यह समस्याएं आम तौर पर हर वर्ग के विद्यार्थियों में देखने को मिलती है. इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए शहर के नागदह स्थित गुरुकुल में बच्चों को निमोनिक्स के सहारे पढ़ाया जा रहा है.
लंबे समय तक याद रहते हैं चैप्टर्स
यूनिक लर्निंग के तहत विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों में सूत्रों को निमोनिक्स के सहारे पढ़ा हुआ याद करवाया जाता है. जिससे विद्यार्थियों में याद करने की क्षमता भी बढ़ रही है. साथ ही उन्हें लंबे समय तक पढ़े गए चैप्टर्स याद रहते हैं.
क्या है मिड ब्रेन एक्टिवेशन ?
मिड ब्रेन एक्टिवेशन के जानकार बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति पूरी जिंदगी में अपने ब्रेन का 3 से 4 प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है. उस 4 प्रतिशत में भी हम सिर्फ लेफ्ट ब्रेन का उपयोग करते हैं जो लॉजिकल एप्रोच वाला है. राइट ब्रेन क्रिएटिव थिंकिंग वाला होता है. दोनों ब्रेन के बीच का मिड ब्रेन ब्रिज होता है. जिसके एक्टिव होने पर बच्चा ऑलराउंडर बनता है.
बढ़ता है बच्चे का आईक्यू
मिड ब्रेन एक्टिव होने से बच्चे का आईक्यू बढ़ जाता है. लेफ्ट ब्रेन स्कूल की पढ़ाई लॉजिकल सोच और याद करने के लिए काफी उपयोगी होता है. लेकिन राइट ब्रेन इनोवेशन और क्रिएशन के लिए जरूरी है.
योग और विज्ञान की विकसित तकनीक
योग और विज्ञान के सहयोग से मिड ब्रेन एक्टिवेशन एक विशेष विकसित तकनीक है जिससे सबसे पहले बच्चे के दिमाग को अलफा या शून्य के स्टेज में लाया जाता है. इस स्थिति में मिड ब्रेन कॉन्शियस और अनकॉन्शियस ब्रेन के बीच ब्रिज का काम करने लगता है. नतीजतन सभी इंद्रियां एक साथ ऑब्जेक्ट को महसूस कर मस्तिष्क को सूचना देने लगती हैं.
वैज्ञानिक प्रणाली पर है आधारित
मिड ब्रेन एक्टिवेशन की पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक प्रणाली पर आधारित है. इसमें बच्चों के कंफर्ट जोन में जाकर उन्हें अलग-अलग स्टेप्स करवाए जाते हैं. जैसे ब्रेन एक्सरसाइज, ब्रेन जिम, डांस, पजल, गेम्स और योग व ध्यान क्रियाएं सिखाई जाती हैं.
कम उम्र के बच्चों का किया जाता है मिड ब्रेन एक्टिवेट
मिड ब्रेन एक्टिवेशन क्रिया वैसे तो 2 दिन में हो जाती है. पहले और दूसरे दिन 6 घंटे अभ्यास कराया जाता है. जिसके बाद इसका फॉलोअप हर हफ्ते 2 घंटे कराया जाता है. इसके लिए लगातार करीब डेढ़ महीने के अभ्यास से बच्चों की इंद्रियां संवेदनशील होने लगती हैं. खासतौर पर 5 से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का ही मिड ब्रेन एक्टिवेट किया जा सकता है.
नहीं सीख सकते आंख या कान से लाचार बच्चे
मिड ब्रेन एक्टिवेशन के एक्सपर्ट और शोधकर्ता अतुल अग्रवाल ने बताया कि ये कोई जादू या मंत्र नहीं है. विज्ञान और तकनीक पर आधारित वो विधि है, जिसमें कम उम्र के बच्चे बहुत जल्द चीजों को सीखते हैं. उन्होंने बताया कि किसी भी हाल में आंख या कान से जन्मजात लाचार बच्चे ये कला नहीं सीख सकते हैं.
उच्चतर शिक्षा में मददगार
मिड ब्रेन एक्टिवेशन अगर वाकई बच्चों को मानसिक रूप से समृद्ध बनाता है. साथ ही भविष्य में बच्चों को उच्चतर शिक्षा ग्रहण करने में भी मददगार साबित हो सकता है.