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बेगूसरायः जैविक खेती से पपीता के उत्पादन में काफी मुनाफा, स्वास्थ्य के लिए भी है लाभकारी

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Published : Jan 22, 2020, 5:17 PM IST

रंजीत कुमार का कहना है कि मार्केट मंदा भी रहा, तो पपीता कम से कम 20 रुपये किलो बाजार में बिकता है. ऐसे में किसान एक साल में लाखों रुपये एक एकड़ भू-भाग से कमा सकते हैं. वहीं, रासायनिक खेती के चक्कर में पौधों का नुकसान तो होता ही है, साथ ही वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.

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बेगूसरायः जिले में जैविक खेती के जरिए पपीता की खेती बड़े पैमाने पर शुरू की गई है. पेशे से सरकारी कृषि समन्वयक किसान रंजीत कुमार के मुताबिक एक एकड़ पपीता की जैविक खेती करने पर किसान को 15 से 18 लाख रुपए हर साल आमदनी हो सकती है. रासायनिक खेती से उत्पन्न किए गए पपीता, जहां लोगों के लिए हानिकारक है. वहीं, जैविक खेती से उत्पादित पपीता अमृत के समान है.

'जैविक खेती से उत्पादित पपीता अमृत के समान'
कृषि प्रधान बेगूसराय जिले में पपीता की खेती बड़े व्यापक पैमाने पर विभिन्न इलाकों में की जाती है. लेकिन लोग मुनाफे के चक्कर में रासायनिक खेती कर ना सिर्फ खेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि जहरीले रसायनों का छिड़काव कर उससे उत्पन्न होने वाले पपीता से लोगों को बिमारियां भी बांट रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग है, जो जैविक खेती के महत्व को समझ चुके हैं. वह पूरी तरह से जैविक खेती करके पपीता उत्पादन में लगे हुए हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

'पपीता के उत्पादन में काफी मुनाफा'
जिला मुख्यालय से सटे नागदह मोहल्ले में पेशे से कृषि विभाग में कार्यरत कृषि समन्वयक किसान रंजीत कुमार बताते हैं कि जैविक खेती पपीते के उत्पादन में ना सिर्फ मुनाफा देता है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए अमृत के समान है. रंजीत कुमार का कहना है कि लोग गलत मानसिकता पाले हुए हैं कि जैविक खेती से मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है. उन्होंने दावा किया है कि कोई किसान अगर 1 एकड़ में पपीता की खेती करें तो, उसमें कम से कम 12 सौ पौधे लग जाते हैं. जिसमें एक पौधे में कम से कम 50 फल लगते हैं, एक फल का वजन डेढ़ से 2 किलो होता है, यानी कि एक पौधा से हमें 75 किलोग्राम पपीता प्राप्त होता है.

'रासायनिक खेती से होता है पौधों का नुकसान'
रंजीत कुमार का कहना है कि मार्केट मंदा भी रहा, तो पपीता कम से कम 20 रुपये किलो बाजार में बिकता है. ऐसे में किसान 1 वर्ष में लाखों रुपये 1 एकड़ भू-भाग से कमा सकते हैं. वहीं, रासायनिक खेती के चक्कर में पौधों का नुकसान तो होता ही है, उसमें दिए जाने वाले पोटाश में क्लोरीन की अत्यधिक मात्रा पाई जाती है, जो सीधा सीधा जहर है. क्लोरीन ना सिर्फ पपीता के स्वाद को बिगाड़ता है, बल्कि खाने वाले लोगों की सेहत को भी बिगाड़ देता है.

उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती से उत्पन्न पपीता खाने से लोगों की किडनी पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जो भविष्य में उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है. वहीं, जैविक खेती के जरिए उत्पादित पपीता खाने से लोगों को स्वास्थ संबंधी कई बिमारियों का समाधान मिल रहा है.

बेगूसरायः जिले में जैविक खेती के जरिए पपीता की खेती बड़े पैमाने पर शुरू की गई है. पेशे से सरकारी कृषि समन्वयक किसान रंजीत कुमार के मुताबिक एक एकड़ पपीता की जैविक खेती करने पर किसान को 15 से 18 लाख रुपए हर साल आमदनी हो सकती है. रासायनिक खेती से उत्पन्न किए गए पपीता, जहां लोगों के लिए हानिकारक है. वहीं, जैविक खेती से उत्पादित पपीता अमृत के समान है.

'जैविक खेती से उत्पादित पपीता अमृत के समान'
कृषि प्रधान बेगूसराय जिले में पपीता की खेती बड़े व्यापक पैमाने पर विभिन्न इलाकों में की जाती है. लेकिन लोग मुनाफे के चक्कर में रासायनिक खेती कर ना सिर्फ खेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि जहरीले रसायनों का छिड़काव कर उससे उत्पन्न होने वाले पपीता से लोगों को बिमारियां भी बांट रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग है, जो जैविक खेती के महत्व को समझ चुके हैं. वह पूरी तरह से जैविक खेती करके पपीता उत्पादन में लगे हुए हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

'पपीता के उत्पादन में काफी मुनाफा'
जिला मुख्यालय से सटे नागदह मोहल्ले में पेशे से कृषि विभाग में कार्यरत कृषि समन्वयक किसान रंजीत कुमार बताते हैं कि जैविक खेती पपीते के उत्पादन में ना सिर्फ मुनाफा देता है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए अमृत के समान है. रंजीत कुमार का कहना है कि लोग गलत मानसिकता पाले हुए हैं कि जैविक खेती से मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है. उन्होंने दावा किया है कि कोई किसान अगर 1 एकड़ में पपीता की खेती करें तो, उसमें कम से कम 12 सौ पौधे लग जाते हैं. जिसमें एक पौधे में कम से कम 50 फल लगते हैं, एक फल का वजन डेढ़ से 2 किलो होता है, यानी कि एक पौधा से हमें 75 किलोग्राम पपीता प्राप्त होता है.

'रासायनिक खेती से होता है पौधों का नुकसान'
रंजीत कुमार का कहना है कि मार्केट मंदा भी रहा, तो पपीता कम से कम 20 रुपये किलो बाजार में बिकता है. ऐसे में किसान 1 वर्ष में लाखों रुपये 1 एकड़ भू-भाग से कमा सकते हैं. वहीं, रासायनिक खेती के चक्कर में पौधों का नुकसान तो होता ही है, उसमें दिए जाने वाले पोटाश में क्लोरीन की अत्यधिक मात्रा पाई जाती है, जो सीधा सीधा जहर है. क्लोरीन ना सिर्फ पपीता के स्वाद को बिगाड़ता है, बल्कि खाने वाले लोगों की सेहत को भी बिगाड़ देता है.

उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती से उत्पन्न पपीता खाने से लोगों की किडनी पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जो भविष्य में उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है. वहीं, जैविक खेती के जरिए उत्पादित पपीता खाने से लोगों को स्वास्थ संबंधी कई बिमारियों का समाधान मिल रहा है.

Intro:एंकर-बेगूसराय जिले में जैविक खेती के जरिए पपीता की खेती बड़े पैमाने पर शुरू की गई है ।पेशे से सरकारी कृषि समन्वयक किसान रंजीत कुमार के मुताबिक एक एकड़ पपीता की जैविक खेती करने पर किसान को 15 से 18 लाख रुपए प्रतिवर्ष आमदनी हो सकती है। रासायनिक खेती से उत्पन्न किए गए पपीता जहां लोगों के लिए हानिकारक है वहीं जैविक खेती के जरिए उत्पादित पपीता अमृत के समान है।
एक रिपोर्ट


Body:vo-vo- कृषि प्रधान बेगूसराय जिले में पपीता की खेती बड़े व्यापक पैमाने पर विभिन्न इलाकों में की जाती है, दुखद पहलू यह है कि लोग मुनाफे के चक्कर में रासायनिक खेती कर ना सिर्फ खेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि जहरीले रसायनों का छिड़काव कर उससे उत्पन्न होने वाले पपीता से लोगों को बीमारियां भी बांट रहे हैं ,वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो जैविक खेती के महत्व को समझ चुके हैं वह पूरी तरह से जैविक खेती के जरिए पपीता उत्पादन में लगे हुए हैं।
जिला मुख्यालय से सटे नागदह मोहल्ले में पेशे से कृषि विभाग में कार्यरत कृषि समन्वयक किसान रंजीत कुमार बताते हैं जैविक खेती के जरिए पपीता का उत्पादन ना सिर्फ काफी मुनाफा देता है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए अमृत के समान है।
किसान रंजीत कुमार के मुताबिक लोग गलत मानसिकता पाले हुए हैं कि जैविक खेती के जरिए मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है उन्होंने दावा किया कि कोई किसान अगर 1 एकड़ में पपीता की खेती करें तो उसमें कम से कम 12 सौ पौधे लग जाते हैं जिसमें एक पौधे में कम से कम 50 फल लगते हैं जिसमें एक पल का वजन डेढ़ से 2 किलो होता है यानी कि एक पौधा से हमें 75 किलोग्राम पपीता प्राप्त होता है। मार्केट मंदा भी रहा तो पपीता कम से कम ₹20 किलो बाजार में बिकता है ,ऐसे में किसान 1 वर्ष में लाखों रुपए 1 एकड़ भू-भाग से कमा सकते हैं, वही रासायनिक खेती के चक्कर में पौधों का नुकसान तो होता ही है उस में दिए जाने वाले पोटाश में क्लोरीन की अत्यधिक मात्रा पाई जाती है जो सीधा सीधा जहर है ।क्लोरीन ना सिर्फ पपीता फल के स्वाद को बिगाड़ता है बल्कि खाने वाले लोगों की सेहत को भी बिगाड़ देता है। रासायनिक खेती से उत्पन्न पपीता खाने से लोगों की किडनी पर सीधा सीधा प्रभाव पड़ता है जो भविष्य में उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है ,वहीं जैविक खेती के जरिए उत्पादित पपीता खाने से लोगों को स्वास्थ संबंधी कई बीमारियों का समाधान मिल रहा है
किसान रंजीत कुमार ने बताया कि लोग पूर्वजों द्वारा स्थापित प्राचीन खेती-बारी की पद्धति को भुलाने लगे हैं जिस वजह से खेतों की उर्वरता भी कम होती है और किसान घाटे में भी होते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले का जमाना आप याद करिए जहां देशी गाय होती थी जहां लोग गोबर फेंकते थे वहां पपीता के पौधे स्वतः उत्पन्न होते थे और लोग उस फल को बड़े चाव से खाते थे। उन्होंने कहा पपीता की खेती के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना होता है देशी गाय के गोबर और मूत्र का छिड़काव करने से 90% बीमारियों का समाधान हो जाता है और पैदावार कई गुना बढ़ जाती है।
बाइट-रंजीत कुमार,किसान सह कृषि समन्वयक बेगूसराय


Conclusion:fvoबहरहाल जो भी हो जैविक खेती और रासायनिक खेती के तुलनात्मक अध्ययन से यह बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि एक तरफ जहां रसायनिक खेती से उत्पादित पपीता लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है ,वहीं जैविक खेती द्वारा उत्पादित पपीता लोगों को निरोग बनाता है ।जरूरत इस बात की है कि सरकारी तंत्र और प्रबुद्ध लोग जैविक खेती को समाज में स्थापित करने का प्रयास करें।
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