बेगूसराय: हिंदी दिवस के अवसर पर देश में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. आज देश उन महानुभाव को आज याद कर रहा है जिनका अहम योगदान हिंदी को राजभाषा के रूप में विकसित करने के साथ-साथ हिंदी भाषा के उत्थान में रहा है. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को आज पूरा देश याद कर रहा है.
राष्ट्रकवि दिनकर से जुड़ी चीजों को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने उनके पैतृक गांव सिमरिया का दौरा किया. उनके पैतृक गांव में कुछ ऐसे भी ग्रामीणों से मुलाकात की जो दिनकर जी के जीवन काल में उनके खास करीबी रहे. उन्हें अपने जीनव में दिनकर जी और उनकी कविताओं सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. इस बाबत ग्रामीण रामाशीष सिंह बताते हैं कि दिनकर का जन्म इस इलाके और बेगूसराय जिले के लिए अभूतपूर्व था. विद्यापति की इस भूमि पर विद्यापति के बाद अगर कोई विद्वान पैदा लिया तो वह रामधारी सिंह दिनकर थे.
कविता सुनने के लिये लोगों की लगती थी भीड़
वैसे तो ज्यादातर वह घर पर नहीं रहते थे. राज्यसभा सदस्य बनने के बाद ज्यादातर समय उनका दिल्ली में व्यतीत होता था. लेकिन जब भी वह गांव आते थे तो दूर-दराज के गांव और जिलों से हजारों की संख्या में लोग उनके घर पर जमा हो जाते थे. सब की एक ही मांग होती थी की एक कविता सुना दें और लोग तब तक उठकर नहीं जाते थे जब तक कि दिनकर जी के मुख से एक कविता या दोहा न सुन लें.
स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे रामधारी सिंह दिनकर
वहीं, ललन सिंह ने बताया कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे. लेकिन जब बात देश के हित और अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से भी बाज नहीं आते थे. आजादी के पूर्व भी उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए वीर रस की कविताएं और ग्रंथ लिखे, जिससे प्रेरणा लेकर आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों को धूल चटाया.
"देखने में देवता सदृश्य दिखता है
बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है
जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा हो
समझो उसी ने हमें मारा है "
यह पंक्तियां राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में सुनाई थी जिससे देश में भूचाल मच गया था. दिलचस्प बात यह है की राज्यसभा सदस्य के रूप में रामधारी सिंह दिनकर का चयन पंडित जवाहरलाल नेहरु ने ही किया था. ऐसे में नेहरू जी के खिलाफ की गई टिप्पणी यह दर्शाती है की उनकी कविताओं में सौम्यता और शालीनता के साथ साथ समय के हिसाब से गंभीरता और आक्रामकता भी आती थी.
लोगों की जुबान पर आज भी है दिनकर जी की कविताएं
रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा लिखी हिंदी भाषा में कई काव्य, ग्रंथ और रचनाएं इतनी प्रसिद्ध हुई की देशभर के बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपने बोलचाल की भाषा में भी दिनकर की कविताएं और दोहे दोहराया करते हैं. हिंदी की कविताएं और ग्रंथों को लिखकर रामधारी सिंह दिनकर ने बिहार के छोटे से गांव सिमरिया से राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रकवि तक की उपाधि अर्जित की. राष्ट्रकवि दिनकर जब पूरी लय में थे, उस समय के दौर को भारतीय इतिहास में हिंदी भाषा साहित्य का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है.
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान
हिंदी भाषा के जरिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को जो उपलब्धियां मिली, उसके बदले उन्होंने देश में हिंदी के विकास के लिए अघोषित मुहिम छेड़ रखी थी. दिनकर जी को आदर्श मानकर कई कवि और साहित्यकार आगे आए. ऐसा नहीं था कि दिनकर जी को देश की अन्य भाषाएं नहीं आती थी. उन्हें बांग्ला, उड़िया, भोजपुरी और अंग्रेजी का खासा महारत हासिल था. बावजूद इसके उन्होंने हिंदी को ही आत्मसात किया. हिंदी लेखन के जरिए ही अपने सर्वोच्च को प्राप्त किया. निश्चित रूप से रामधारी सिंह दिनकर का भारत में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में किया गया योगदान अद्वितीय और अतुलनीय है.