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बेगूसराय के प्राचीन मंदिर में होती है विशेष पूजा, जाने क्यों है खास - माता के भक्तिरस में सराबोर

बेगूसराय में नवरात्र की विशेष पूजा के लिए चर्चित विक्रमपुर गांव माता के भक्तिरस में सराबोर हो गया है. रोजना मां की आकृति बनाने के लिए फूल-बेलपत्र इकट्ठा करने में गांव वालों का उत्साह देखते ही बनता है.

फूल-बेलपत्रों की प्रतिमा पूजन
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Published : Oct 6, 2019, 6:49 AM IST

बेगूसराय: चेरियाबरियारपुर प्रखंड के विक्रमपुर गांव में नवरात्र के मौके पर मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना के प्रति लोगों की आस्था दूर-दूर तक प्रसिद्ध है.

मान्यताओं के हिसाब से इस गांव में प्रतिदिन फूल और बेलपत्र से मां दुर्गा की आकृति बनाकर पूजा की जाती है. गांव में फूल और बेलपत्र जमा करने को लेकर विशेष उत्साह देखा जाता है. लोगों के हिसाब से यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है.

Begusarai
प्राचीन मंदिर में फूल-बेलपत्रों की प्रतिमा का होता है पूजन

पूजा देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु

बेगूसराय में नवरात्र की विशेष पूजा के लिए चर्चित विक्रमपुर गांव माता के भक्तिरस में सराबोर हो गया है. रोजना मां की आकृति बनाने के लिए फूल-बेलपत्र इकट्ठा करने में गांव वालों का उत्साह देखते ही बनता है. मां की आकृति के साथ वैदिक रीति से होने वाली पूजा देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

प्राचीन मंदिर में फूल-बेलपत्रों की प्रतिमा पूजन की है खास परंपरा

प्रारंभ की कहानी
लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ़ में पहले बलि प्रदान को लेकर पहसारा और विक्रमपुर गांव के जलेबारों में ठन गई थी. तभी नवरात्र के समय विक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला ने आकर कहा नवरात्र के पहले पूजा से नवमी पूजा के बलि प्रदान तक विक्रमपुर गांव में रहूंगी. इसके पश्चात मैं गढ़ को लौट जाऊंगी.

nandkishor singh
डॉ. नंदकिशोर सिंह, स्थानीय भक्त

क्यों है खास?
साथ ही देवी ने स्वप्न में ही पूजा विधि फूल, बेलपत्र से आकृति बनाकर धूप और गुंगुल से पूजा करने का उपाय भी बताया. तभी से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई. आज भी गांव के लोग कोई शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले जयमंगलागढ़ जाकर मंदिर में माथा टेकते हैं.

बेगूसराय: चेरियाबरियारपुर प्रखंड के विक्रमपुर गांव में नवरात्र के मौके पर मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना के प्रति लोगों की आस्था दूर-दूर तक प्रसिद्ध है.

मान्यताओं के हिसाब से इस गांव में प्रतिदिन फूल और बेलपत्र से मां दुर्गा की आकृति बनाकर पूजा की जाती है. गांव में फूल और बेलपत्र जमा करने को लेकर विशेष उत्साह देखा जाता है. लोगों के हिसाब से यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है.

Begusarai
प्राचीन मंदिर में फूल-बेलपत्रों की प्रतिमा का होता है पूजन

पूजा देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु

बेगूसराय में नवरात्र की विशेष पूजा के लिए चर्चित विक्रमपुर गांव माता के भक्तिरस में सराबोर हो गया है. रोजना मां की आकृति बनाने के लिए फूल-बेलपत्र इकट्ठा करने में गांव वालों का उत्साह देखते ही बनता है. मां की आकृति के साथ वैदिक रीति से होने वाली पूजा देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

प्राचीन मंदिर में फूल-बेलपत्रों की प्रतिमा पूजन की है खास परंपरा

प्रारंभ की कहानी
लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ़ में पहले बलि प्रदान को लेकर पहसारा और विक्रमपुर गांव के जलेबारों में ठन गई थी. तभी नवरात्र के समय विक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला ने आकर कहा नवरात्र के पहले पूजा से नवमी पूजा के बलि प्रदान तक विक्रमपुर गांव में रहूंगी. इसके पश्चात मैं गढ़ को लौट जाऊंगी.

nandkishor singh
डॉ. नंदकिशोर सिंह, स्थानीय भक्त

क्यों है खास?
साथ ही देवी ने स्वप्न में ही पूजा विधि फूल, बेलपत्र से आकृति बनाकर धूप और गुंगुल से पूजा करने का उपाय भी बताया. तभी से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई. आज भी गांव के लोग कोई शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले जयमंगलागढ़ जाकर मंदिर में माथा टेकते हैं.

Intro:बेगुसराय के चेरियाबरियारपुर प्रखंड के विक्रमपुर गावँ में नवरात्र के मौके पर माँ दुर्गा की बिशेष पूजा अर्चना के प्रति लोगो की आस्था दूर दूर तक प्रसिद्ध । मान्यताओ के हिसाब से इस गावँ में प्रतिदिन फूल और बेलपत्र से माँ दुर्गा की आकृति बनाई जाती है और उसे विसर्जित की जाती है । इसको लेकर गावँ में फूल और बेलपत्र को जमा करने को लेकर बिशेष उत्साह देखा जाता है ।लोगो के हिसाब से ये परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है ।Body:
बेगुसराय में नवरात्र में विशेष पूजा पद्धति के लिए चर्चित क्षेत्र के विक्रमपुर गांव माता के भक्तिरस में सराबोर हो गया है। रोजना मां की आकृति बनाने के लिए फूल-बेलपत्र इकट्ठा करने में गांव वाले की उत्साह देखते ही बनती है। मां की आकृति के साथ वैदिक रीति से होने वाली पूजा देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं और देर रात्रि घर लौटते हैं। नवमी पूजा तक पूरे गांव की आस्था मंदिर परिसर को देखते ही सहज लगाया जा सकता है। गांव वाले की मानें तो माता जयमंगला की असीम अनुकंपा के कारण गांव में सुख-शांति और संमृद्धि है।

प्रारंभ की कहानी

लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ़ में पहले बलि प्रदान को लेकर पहसारा और विक्रमपुर गांव के जलेबारों में ठन गई थी। दोनों ओर से एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे। तभी नवरात्र के समय विक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला आई थीं और उन्होंने कहा, नवरात्र के पहले पूजा से लेकर नवमी पूजा के बलि प्रदान तक विक्रमपुर गांव में रहूंगी। इसके पश्चात मैं गढ़ को लौट जाऊंगी।

खास क्या है यहां अन्य प्रतिमा से

देवी ने स्वप्न में ही पूजा की विधि बताई। देवी ने कहा, वत्स अपने हाथों से फूल, बेलपत्र तोड़ कर आकृति बनाकर पूजा करने एवं धूप और गुंगुल से पूजा की विधि विस्तार से बताई। तभी से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई। आज भी उनके वंशज पूजा करते आ रहे हैं। तभी से इस गांव की आस्था माता जयमंगला पर बनी हुई है। आज भी इस गांव के लोग कोई शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले जयमंगलागढ़ जाकर मंदिर में माथा टेकते हैं।

एक विशेष परिवार के हाथों होती पूजा

कलश स्थापन के दिन स्व. सिंह के वंशज सभी मिलकर मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं। रोजाना अपने हाथों से तोड़े गए फूल-बेलपत्र की आकृति बनाकर पूजा करते हैं। कलांतर में परिवार के विस्तार होने के कारण पहली पूजा तीन खुट्टी खानदान के चंदेश्वर सिंह बगैरह करते हैं। दूसरी पूजा पंचखुट्टी के सुशील सिंह वगैरह के द्वारा की जाती है। शेष सभी पूजा नौ खुट्टी के वंशज राजेश्वर सिंह, परमानंद सिंह, कृत्यानंद सिंह, मोहन सिंह, नीरज सिंह, शंभू सिंह, नंदकिशोर सिंह, लाला जी, रामकुमार सिंह, पुष्कर सिंह, विश्वनाथ सिंह वगैरह करते आ रहे हैं। अंत में नवमी पूजा के दिन स्व. सिंह के सभी वंशज की उपस्थिति में बलि प्रदान किए जाने के साथ सम्पन्न हो जाता है।
बाइट - डॉक्टर नंदकिशोर सिंह
बाइट - पंकज सिंहConclusion:
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