बांका: 400 घरों की 4 हजार आबादी वाले सांसद आदर्श ग्राम कोल्हासार में लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस गांव में विकास की बातें सिर्फ और सिर्फ फाइलों तक ही सिमट कर रह गईं हैं. गोद लेने के बाद ग्रामीणों में कायाकल्प की उम्मीद जगी थी. लेकिन धरातल पर विकास की गाड़ी रफ्तार नहीं पकड़ पाई है
कटोरिया प्रखंड स्थित कोल्हासार गांव को सांसद आदर्श ग्राम का दर्जा, यहां के ग्रामीणों के लिए अब सफेद हाथी का दांत साबित हो रहा है. बिजली को छोड़कर अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग अब भी तरस रहे हैं. तत्कालीन सांसद जयप्रकाश नारायण यादव ने कोल्हासार को सांसद आदर्श ग्राम के तहत गोद लेते वक्त लोकलुभावन वादों की झड़ी लगा दी थी. आदर्श ग्राम का चयन होने के बाद नेताओं से लेकर अधिकारियों का आना जाना लगातार जारी रहा. योजनाओं का चयन भी हुआ और ग्राम सभा में लोगों ने कायाकल्प होने की उम्मीद पाले रखी थी. लेकिन धरातल पर विकास की गाड़ी रफ्तार नहीं पकड़ पाई.
'धूल फांक रहे आवेदन'
इस गांव के लोगों ने योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर ढेर सारे सपने देखने शुरू कर दिए थे. लेकिन उनके ये सपने अधूरे रह गये. कोल्हासार को सिर्फ गोद लेकर छोड़ दिया गया. ग्रामीण जय कृष्ण यादव बताते हैं कि 400 घरों के लगभग 4 हजार आबादी वाले इस गांव में शिविर लगाकर शौचालय, पेयजल, आवास, राशन, वृद्धा पेंशन सहित अन्य सुविधाओं के विस्तार के लिए लोगों से आवेदन लिए गये थे. लेकिन आवेदन कटोरिया प्रखंड कार्यालय में धूल फांक रहे हैं.
यहां पहुंची सिर्फ बिजली
कोल्हासार गांव में विकास के नाम पर सिर्फ बिजली पहुंची है. ग्रामीण शिव शंकर यादव बताते हैं कि कोल्हासार को सिर्फ गोद लेकर ही छोड़ दिया गया. पानी की टंकी बना दी गई है. लेकिन लोगों के घरों तक शुद्ध पेयजल नहीं पहुंच रहा है. जो वादे किए गए थे, वह वादों तक ही सिमट कर रह गए.
वादों का क्या हुआ?
- गांव में अस्पताल और हाईस्कूल बनवाने का वादा किया था.
- गांव में 500 से अधिक महिलाएं और वृद्ध ने वृद्धा पेंशन के लिए आवेदन दिया था.
- यहां के अधिकांश आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करती है.
- एक हजार लोगों ने शौचालय, आवास, राशन और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ के लिए आवेदन दिया था.
- आवेदन कार्यालय के किसी कोने में सड़ रहा है.
- गांव में यदि कोई बीमार पड़ जाए ,तो 30 किलोमीटर की दूरी तय कर कटोरिया या फिर 40 किलोमीटर की दूरी तय कर बांका का ही जाना पड़ता है.
हेमिया देवी ने बताया कि सिर्फ नाम का सांसद आदर्श ग्राम है. यहां, विकास का एक भी काम नहीं हो पाया है. लोग तंगहाली में जी रहे हैं. लेकिन ग्रामीणों को कोई सरकारी मदद नहीं मिल पाई है.
युवाओं को नहीं मिला खेल का मैदान और रोजगार
युवा मुकेश कुमार यादव ने बताया कि बिजली को छोड़कर एक भी विकास का कार्य नहीं हो पाया है. तत्कालीन सांसद जयप्रकाश नारायण यादव ने गांव को गोद लेते समय फुटबॉल और क्रिकेट के मैदान के साथ युवाओं को रोजगार देने की बात कही थी. लेकिन युवा बेरोजगारी का दंश झेल कर भटक रहे हैं. स्वरोजगार के लिए कोई पहल नहीं की गई. गांव में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है. हाई स्कूल और अस्पताल बनने की हसरत ग्रामीणों की अधूरी रह गई.
बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में लोग पिछले चुनावों और आई योजनाओं को लेकर जनप्रतिनिधियों के किये गये वादों और विकास कार्यों की परख कर रहे हैं. बहरहाल, इस गांव की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. गांव को आदर्श ग्राम करार दिया गया है. लेकिन बुनियादी सुविधाओं का यहां घोर अभाव है.