बांका: जिले में रेशम और तसर के धागे को कपड़े का आकार देने वाले बुनकरों की हालत दननीय है. इनकी ऐसी हालत सरकारी उदासीनता से हुई है. बुनकरों का कहना है कि बैंक भी लोन देने को तैयार नहीं है. अब कोरोना से उपजे हालात ने पूरे काम को ही बंद कर दिया है. सबसे बड़ी समस्या बाजार को लेकर है.
जिले के अमरपुर प्रखंड स्थित डुमरामां गांव के बुनकरों ने अपना एक अलग पहचान स्थापित किया है. इस गांव के 15 सौ घरों में रेशम और तसर से साड़ी- सूट के साथ-साथ अन्य परिधान तैयार किए जाते हैं. यहां से निर्मित कपड़े की डिमांड बड़े शहरों में बहुत है. इस गांव के बुनकर 15 सौ से लेकर 6 हजार तक की साड़ियां और 5 हजार से लेकर 9 हजार तक का सूट तैयार करते हैं. मदद के नाम पर सरकार से इन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलता है. बुनकरों को बैंक भी लोन देने को तैयार नहीं है. यहां के युवाओं को ये पुश्तैनी धंधा विलुप्त होते दिख रहा है. कोरोना की मार ने भी बुनकरों को बर्बादी के मुहाने पर खड़ा कर दिया है.
यहां बाजार के अभाव में रेशम बुनकर दाने- दाने को हैं मोहताज, ऐसे होगा आत्मनिर्भर भारत? - बांका के डुमरामां गांव
सरकार आत्मनिर्भर भारत मिशन को लेकर बड़े बड़े दावे तो करती है. लेकिन बांका के रेशम कारोबार बाजार के अभाव में खत्म होने के कागार पर है. बुनकर दाने- दाने को मोहताज हैं.
बांका: जिले में रेशम और तसर के धागे को कपड़े का आकार देने वाले बुनकरों की हालत दननीय है. इनकी ऐसी हालत सरकारी उदासीनता से हुई है. बुनकरों का कहना है कि बैंक भी लोन देने को तैयार नहीं है. अब कोरोना से उपजे हालात ने पूरे काम को ही बंद कर दिया है. सबसे बड़ी समस्या बाजार को लेकर है.
जिले के अमरपुर प्रखंड स्थित डुमरामां गांव के बुनकरों ने अपना एक अलग पहचान स्थापित किया है. इस गांव के 15 सौ घरों में रेशम और तसर से साड़ी- सूट के साथ-साथ अन्य परिधान तैयार किए जाते हैं. यहां से निर्मित कपड़े की डिमांड बड़े शहरों में बहुत है. इस गांव के बुनकर 15 सौ से लेकर 6 हजार तक की साड़ियां और 5 हजार से लेकर 9 हजार तक का सूट तैयार करते हैं. मदद के नाम पर सरकार से इन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलता है. बुनकरों को बैंक भी लोन देने को तैयार नहीं है. यहां के युवाओं को ये पुश्तैनी धंधा विलुप्त होते दिख रहा है. कोरोना की मार ने भी बुनकरों को बर्बादी के मुहाने पर खड़ा कर दिया है.