बांका: कमर तोड़ महंगाई के बीच जिले में किसान धान की रोपाई करने में जुटे हुए हैं. लेकिन जिला मुख्यालय से सटे दर्जनों गांव के किसानों को इसमें काफी परेशानी हो रही है. दरअसल, चांदन नदी पर बने पुल के ध्वस्त हो जाने से उनकी समस्या दोगुनी हो गई है और उन्हें खेती घाटे का सौदा लग रहा है.
पुल ध्वस्त हो जाने के बाद पहले तो किसानों को बांका के बजाय अतिरिक्त पैसे खर्च कर अमरपुर, पुनसिया, रजौन सहित अन्य स्थानों से महंगी कीमत पर बीज लाना पड़ा. अब जब धान रोपाई का समय आया और इसकी तैयारी में जुटे हैं तो खाद और डीजल के लिए भी अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है.
टूट रही किसानों की कमर
जिला मुख्यालय से सटे दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां अभी भी नहर का पानी नहीं पहुंच पाता है. वैसे इलाकों के किसान डीजल पंपसेट चलाकर ही धान की रोपाई करते हैं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से वह वाहन नहीं मंगवा पा रहे हैं. डीजल और मजदूरों के आसमान छूती कीमतों के कारण किसान धान की रोपाई नहीं कर पाए हैं.
डीजल के अभाव में नहीं कर पा रहे धान की रोपाई
किसान रामस्वरूप यादव बताते हैं कि चांदन पुल ध्वस्त हो जाने के बाद 20 लीटर डीजल पुल पार कराने के नाम पर मजदूर 50 रुपये की मांग करते हैं. लॉकडाउन के चलते वाहन नहीं चलने से भी परेशानी हो रही है. महंगाई के कारण सस्ते दर पर रोपनिया और बिचड़ा उखाड़ने वाला मजदूर भी नहीं मिल रहा है. बीज के लिए बांका के बजाय अमरपुर और पुनसिया सहित अन्य स्थानों पर जाकर ऊंची कीमत पर बीज इस बार खरीदना पड़ा. लेकिन डीजल के अभाव में धान की रोपाई शुरू नहीं कर पाए हैं.
मजदूरों का रेट सातवें आसमान पर
वहीं, किसान रामचरित्र सिंह बताते हैं कि चांदन पुल ध्वस्त हो जाने के बाद इलाके के दर्जनों गांव के किसानों को समस्या हो रही है. पहले तो बीज लेने में दिक्कत हुई. अब खाद और डीजल लाने में भी परेशानी हो रही है. धान रोपाई का समय है. रोपनिया और बिचड़ा उखाड़ने वाले मजदूरों का रेट सातवें आसमान पर है. धान रोपाई करने वाली महिलाएं 200 से 250 रुपये की मांग करती हैं. बिचड़ा उखाड़ने के लिए 300 से 400 और कुदाल चलाने वाले 400 से 500 रुपये मांगते हैं. बहुत परेशानी हो रही है और सरकार भी कोई मदद नहीं कर रही है.