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बांका: चाइनीज सामानों को छोड़ लोग दिवाली के लिए खरीद रहे मिट्टी के सामान, कुम्हारों में खुशी - बांका

जिले के कुम्हार जातियों में आशा की किरण फिर से जगमगाने लगी है. इस बार लोग चाइनीज छोड़ देसी सामानों का उपयोग करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. इससे कुम्हार जाति के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी है.

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Published : Nov 13, 2020, 6:39 PM IST

बांका (अमरपुर): जिले के कुम्हार जातियों में आशा की किरण फिर से जगमगाने लगी है. इस बार लोग चाइनीज छोड़ देसी सामानों का उपयोग करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. यही कारण है कि दीपावली में लोग देसी और मिट्टी के दिये के साथ साथ अन्य सामानों की धड़ल्ले से खरीदारी कर रहे हैं.

लोगों में जहां देसी सामानों के उपयोग को लेकर लालसा जगी है. वहीं दूसरी तरफ इससे कुम्हार जाति के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी है. कुम्हार जागो पंडित ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व ही उनके पुश्तैनी धंधे पर ग्रहण लग गया था. आम लोगों में शहरी आबो-हवा सिर चढ़कर बोल रहा था. लोग देसी मिट्टी से बने बर्तन, दीये, खिलौने आदी को छोड़कर चाइनीज झालर और अन्य सामानों का उपयोग करने लगे, जिस कारण पुश्तैनी धंधा मृतप्राय हो गया.

मिट्टी के दीये, खिलौने और बर्तनों की बढ़ी डिमांड
उन्होंने कहा कि मजबूरन कुम्हार जाति के लोगों के बाल-बच्चे अन्य राज्यों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर गए. लेकिन इस साल लोगों ने चाइनीज सामानों का बहिष्कार किया है. आम लोगों में देसी मिट्टी से बने बर्तनों का उपयोग करने की लालसा जगी है. जिस कारण कुम्हार जातियों के मिट्टी के दीये, खिलौने और बर्तनों की डिमांड स्थानीय बाजारों में बढ़ गयी है. इससे कुम्हार जातियों के समक्ष फिर से रोजगार का अवसर शुरू हुआ है.

बांका (अमरपुर): जिले के कुम्हार जातियों में आशा की किरण फिर से जगमगाने लगी है. इस बार लोग चाइनीज छोड़ देसी सामानों का उपयोग करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. यही कारण है कि दीपावली में लोग देसी और मिट्टी के दिये के साथ साथ अन्य सामानों की धड़ल्ले से खरीदारी कर रहे हैं.

लोगों में जहां देसी सामानों के उपयोग को लेकर लालसा जगी है. वहीं दूसरी तरफ इससे कुम्हार जाति के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी है. कुम्हार जागो पंडित ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व ही उनके पुश्तैनी धंधे पर ग्रहण लग गया था. आम लोगों में शहरी आबो-हवा सिर चढ़कर बोल रहा था. लोग देसी मिट्टी से बने बर्तन, दीये, खिलौने आदी को छोड़कर चाइनीज झालर और अन्य सामानों का उपयोग करने लगे, जिस कारण पुश्तैनी धंधा मृतप्राय हो गया.

मिट्टी के दीये, खिलौने और बर्तनों की बढ़ी डिमांड
उन्होंने कहा कि मजबूरन कुम्हार जाति के लोगों के बाल-बच्चे अन्य राज्यों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर गए. लेकिन इस साल लोगों ने चाइनीज सामानों का बहिष्कार किया है. आम लोगों में देसी मिट्टी से बने बर्तनों का उपयोग करने की लालसा जगी है. जिस कारण कुम्हार जातियों के मिट्टी के दीये, खिलौने और बर्तनों की डिमांड स्थानीय बाजारों में बढ़ गयी है. इससे कुम्हार जातियों के समक्ष फिर से रोजगार का अवसर शुरू हुआ है.

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