बांकाः बांका नगर परिषद ने अपने स्थापना काल से विकास के कई आयाम गढ़े हैं. इसके बावजूद अब भी कुछ वार्ड विकास से कोसों दूर हैं. नगर परिषद के वार्ड संख्या 19 के चुड़ैली व विदायडीह को शहरी क्षेत्र से ओढ़नी नदी अलग करती है. 450 घरों के लगभग 3 हजार की आबादी को पुल नहीं रहने से बारिश के दिनों में समस्याओं ता सामना करना पड़ता है.
'सेंकी जाती हैं राजनीतिक रोटियां'
रास्ता बाधित होने से बच्चों की पढ़ाई से लेकर लोगों से रोजगार के अवसर तक छिन जाते हैं. हैरानी की बात है कि यह बिहार के राजस्व मंत्री रामनारायण मंडल के विधानसभा क्षेत्र के अधीन आता है. साथ ही 1984 से लेकर अब तक बांका नगर परिषद को इसी वार्ड ने सभापति दिया है. यहां के लोग लंबे अर्से से ओढनी नदी पर पुल बनाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन इस पर सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती है.
लोगों को नहीं मिलती कोई सुविधा
नेताओं को चुनाव के समय बस ख्याल आता है. जीतने के बाद वे हाल चाल लेने के लिए भी नहीं पहुंचते हैं. नगर परिषद के सभापति चुड़ैली निवासी मो. सज्जाद अंसारी बताते हैं कि रास्ता सुगम बनाने के लिए किसी प्रतिनिधि ने ध्यान नहीं दिया. इतिहास गवाह रहा है कि नगर परिषद को हर बार यहां के लोगों ने सभापति दिया है. इसके बावजूद यहां के लोगों को कोई सुविधा नहीं मिली.
'बंद हो जाता है रास्ता'
बारिश के दिनों में किसी की तबियत अगर खराब हो जाए तो अस्पताल जाने के लिए 8 किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ता है. विदायडीह के माधो दास ने बताया कि नदी में पानी भर जाने के बाद रास्ता बंद हो जाता है. बीमार लोग भी घर में ही रहने को मजबूर हो जाते हैं. बारिश के दिनों में नदी पर पुल नहीं रहने की वजह से शहर के अस्पताल या किसी डॉक्टर के पास जाना भी मुश्किल हो जाता है.
'पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं बच्चे'
नौंवी कक्षा के छात्र तौफीक ने बताया कि नदी में पानी आ जाने के बाद बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है. वार्ड में प्राइमरी स्कूल तक की पढ़ाई होती है. बारिश के दिनों में शहर स्थित मिडिल और हाई स्कूल जाने के लिए पैदल लंबा फासला तय करना पड़ता है और ट्यूशन भी जाना मुश्किल हो जाता है. हालांकि कोरोना की वजह से अभी स्कूल बंद है. लेकिन हर साल यह समस्या चुनौती बनकर आती है.
'भूल जाते हैं नेता'
विदायडीह के मो. फारूक अंसारी बताते हैं कि किसी भी काम के लिए बांका ही जाना होता है. अगर नदी पर पुल बन जाता तो बच्चों की पढ़ाई में सुविधा से लेकर रोजगार के अवसर खुल जाते. नेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ख्याल आता है. उसके बाद वे भूल जाते हैं.