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ODF घोषित गांव में नहीं है एक भी शौचालय, खुले में शौच करने को मजबूर हैं लोग

बांका जिले के चांदन प्रखंड को एक साल हो गए ओडीएफ घोषित किया गया था, लेकिन कई पंचायत के दर्जनों गांव के लोग अधूरे शौचालय के कारण खुले में शौच करने को मजबूर हैं. प्रखंड विकास पदाधिकारी का कहना है कि शौचालय के लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास हो रहा है.

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ODF घोषित गांव में नहीं है एक भी शौचालय.
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Published : Jul 27, 2020, 8:06 AM IST

बांका: जिले के चांदन प्रखंड को ओडीएफ घोषित किए करीब एक साल बीत चुके हैं, लेकिन अभी भी कई गांव ऐसे हैं जहां लोग कोरोना काल में भी खुलेआम गांव के बाहर खुले में शौच के लिए जाते हैं. इससे बरसात के मौसम में तरह-तरह की बीमारी फैलने का अंदेशा बना रहता है. खासकर चांदन मुख्यालय के कुछ आदिवासी गांव के अलावे बिरनिया, गोविंदपुर, सिलजोरी, कोरिया, कुसुमजोरी, पंचायत के अधिकतर गांव आज भी खुले में शौच के लिए मजबूर हैं.

शौचालय निर्माण कार्य आधा-अधूरा
गांव में शौचालय नहीं है ऐसी बात नहीं, लेकिन एक भी शौचालय आज तक पूरा नहीं हो सका है, जिस कारण किसी शौचालय में या तो सूअर बांधा जाता है, या लकड़ी रखी जाती है. कुछ शौचालय ऐसे हैं, जिसके चारों ओर कटीली झाड़ियों उग आए हैं. ऐसा ही नजारा चांदन मुख्यालय के आदिवासी बहुल बाबूकुरा गांव में देखने को मिला, जहां कुल 40 परिवार हैं.

2016 में शुरू हुआ था शौचालय का निर्माण
दुर्भाग्य है कि 2016 में शुरू हुए इस शौचालय का निर्माण कार्य आज तक पूरा नहीं हो सका है. अब कुछ शौचालय जर्जर होकर गिरने की भी स्थिति में पहुंच गए हैं. कई शौचालय लकड़ी से भरे हुए हैं, जबकि कुछ में पुआल और सूअर रखे जा रहे हैं. इस बारे में मुखिया से पूछने पर कोई जवाब नहीं दे रहे. इसलिए इस गांव के सभी महिला, पुरुष, बच्चे और बच्चियां खुलेआम जंगलों में शौचालय को जाते हैं, जिससे कई बार घटनाएं भी हो जाती है.

लक्ष्य पूरा कराने का प्रयास
इस संबंध में मुखिया छोटन मंडल का कहना है कि सभी को शौचालय की राशि उपलब्ध करा दी गई है. वहीं प्रखंड विकास पदाधिकारी दुर्गाशंकर ने बताया कि इस गांव की जानकारी उन्हें नहीं है. जल्द ही जानकारी लेकर अधूरे शौचालय को पूरा कराने का प्रयास करेंगे.

बांका: जिले के चांदन प्रखंड को ओडीएफ घोषित किए करीब एक साल बीत चुके हैं, लेकिन अभी भी कई गांव ऐसे हैं जहां लोग कोरोना काल में भी खुलेआम गांव के बाहर खुले में शौच के लिए जाते हैं. इससे बरसात के मौसम में तरह-तरह की बीमारी फैलने का अंदेशा बना रहता है. खासकर चांदन मुख्यालय के कुछ आदिवासी गांव के अलावे बिरनिया, गोविंदपुर, सिलजोरी, कोरिया, कुसुमजोरी, पंचायत के अधिकतर गांव आज भी खुले में शौच के लिए मजबूर हैं.

शौचालय निर्माण कार्य आधा-अधूरा
गांव में शौचालय नहीं है ऐसी बात नहीं, लेकिन एक भी शौचालय आज तक पूरा नहीं हो सका है, जिस कारण किसी शौचालय में या तो सूअर बांधा जाता है, या लकड़ी रखी जाती है. कुछ शौचालय ऐसे हैं, जिसके चारों ओर कटीली झाड़ियों उग आए हैं. ऐसा ही नजारा चांदन मुख्यालय के आदिवासी बहुल बाबूकुरा गांव में देखने को मिला, जहां कुल 40 परिवार हैं.

2016 में शुरू हुआ था शौचालय का निर्माण
दुर्भाग्य है कि 2016 में शुरू हुए इस शौचालय का निर्माण कार्य आज तक पूरा नहीं हो सका है. अब कुछ शौचालय जर्जर होकर गिरने की भी स्थिति में पहुंच गए हैं. कई शौचालय लकड़ी से भरे हुए हैं, जबकि कुछ में पुआल और सूअर रखे जा रहे हैं. इस बारे में मुखिया से पूछने पर कोई जवाब नहीं दे रहे. इसलिए इस गांव के सभी महिला, पुरुष, बच्चे और बच्चियां खुलेआम जंगलों में शौचालय को जाते हैं, जिससे कई बार घटनाएं भी हो जाती है.

लक्ष्य पूरा कराने का प्रयास
इस संबंध में मुखिया छोटन मंडल का कहना है कि सभी को शौचालय की राशि उपलब्ध करा दी गई है. वहीं प्रखंड विकास पदाधिकारी दुर्गाशंकर ने बताया कि इस गांव की जानकारी उन्हें नहीं है. जल्द ही जानकारी लेकर अधूरे शौचालय को पूरा कराने का प्रयास करेंगे.

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