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लॉकडाउन को लेकर छलका खानाबदोश महिलाओं का दर्द, बोली- 'भीख मांगना भी हुआ दुश्वार' - लॉक डाउन

लॉक डाउन के कारण बांका में फंसे बंजारा परिवार का हाल बेहाल है. राशन के अभाव में इनके घरों में चूल्हा नहीं जल पा रहा है. सबसे विकट समस्या 120 परिवार में से 45 बच्चों के पेट भरने को लेकर है.

खानाबदोश महिलाओं का दर्द
खानाबदोश महिलाओं का दर्द
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Published : May 1, 2020, 6:10 PM IST

बांका: कोरोना संक्रमण को लेकर घोषित लॉकडाउन का व्यापक असर खानाबदोश बंजारा परिवारों पर भी देखने को मिल रहा है. बंदी के वजह से भूमिहीन और बेघर इन परिवारों के सामने भुखमरी की समस्या आन पड़ी है. दरअसल, 120 बंजारे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से आकर बांका जिले मेंं फंसे हुए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए बंजार परिवार की महिलाओं ने बताया कि पहले माला बेचकर दो पैसे का जुगाड़ कर लेते थे. उसी से अपने बच्चे का पालन-पोषण करती थी. लॉकडाउन के विस्तार होने के बाद हमरी मुश्किलें बढ़ गई है. किसी प्रकार की सरकारी मदद भी समुचित तरीके से नहीं पहुंच रही है. वर्तमान हालात मेंआलम यह है कि भीख मांगना भी दुश्वार हो चला है.बच्चे दूध और खाने के लिए बिलखने को विवश हैं.

'रुद्राक्ष की माला बेचकर करते थे गुजर-बसर'
ईटीवी भारत संवाददाता से अपने दर्द को साझा करते हुए पूर्णिया से आए शेषी पंवार ने बताया कि बांका में लगने वाले मेला के दौरान दुकान लगाने के लिए पहुंचे थे. रुद्राक्ष का माला बनाकर बेचने का काम करते हैं. लॉक डाउन की वजह से बांका में 13 अप्रैल से ही फंसे हुए. खाने की व्यवस्था नहीं है. धूप, बारिश और तूफान में जीना मुहाल हो गया है. सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गई है. अनाज और दूध की कमी से बच्चे भूख से बिलख रहे हैं. वार्ड पार्षद से लेकर डीएम तक कोई भी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है. डीएम के पास जाने पर अनाज देने की बात कह भगा दिया जा रहा है. वहीं गेन बाई ने बताया कि जिला प्रशासन गांव भी नहीं जाने देते हैं. 45 बच्चे और 65 से अधिक पुरुष और महिला सभी परेशान है. इस कोरोना के संकट में लोग भीख देने से भी कतरा रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

जिला प्रशासन से लगाई मदद की गुहार
बंजारा अनुराजत पवार ने बताया कि रोजी रोटी के जुगाड़ में महाराष्ट्र से माला बेचते-बेचते बांका आए. सोचा यहां मेला लगने पर कुछ रुपये कमा लेंगे. लेकिन लॉक डाउन ने सभी मंसूबे पर पानी फेर दिया. यहां काफी तकलीफ हो रही है. मदद भी सीमित है. वार्ड पार्षद की ओर से दो बार सुखा अनाज मुहैया कराया गया. लेकिन, परिवार बड़ा रहने की वजह से यह नाकाफी साबित हुआ. भोजन के अभाव में बस किसी तरह से जिंदा है. बंजारा परिवार ने जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई.

खानाबदोश महिलाएं
खानाबदोश महिलाएं

बांका: कोरोना संक्रमण को लेकर घोषित लॉकडाउन का व्यापक असर खानाबदोश बंजारा परिवारों पर भी देखने को मिल रहा है. बंदी के वजह से भूमिहीन और बेघर इन परिवारों के सामने भुखमरी की समस्या आन पड़ी है. दरअसल, 120 बंजारे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से आकर बांका जिले मेंं फंसे हुए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए बंजार परिवार की महिलाओं ने बताया कि पहले माला बेचकर दो पैसे का जुगाड़ कर लेते थे. उसी से अपने बच्चे का पालन-पोषण करती थी. लॉकडाउन के विस्तार होने के बाद हमरी मुश्किलें बढ़ गई है. किसी प्रकार की सरकारी मदद भी समुचित तरीके से नहीं पहुंच रही है. वर्तमान हालात मेंआलम यह है कि भीख मांगना भी दुश्वार हो चला है.बच्चे दूध और खाने के लिए बिलखने को विवश हैं.

'रुद्राक्ष की माला बेचकर करते थे गुजर-बसर'
ईटीवी भारत संवाददाता से अपने दर्द को साझा करते हुए पूर्णिया से आए शेषी पंवार ने बताया कि बांका में लगने वाले मेला के दौरान दुकान लगाने के लिए पहुंचे थे. रुद्राक्ष का माला बनाकर बेचने का काम करते हैं. लॉक डाउन की वजह से बांका में 13 अप्रैल से ही फंसे हुए. खाने की व्यवस्था नहीं है. धूप, बारिश और तूफान में जीना मुहाल हो गया है. सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गई है. अनाज और दूध की कमी से बच्चे भूख से बिलख रहे हैं. वार्ड पार्षद से लेकर डीएम तक कोई भी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है. डीएम के पास जाने पर अनाज देने की बात कह भगा दिया जा रहा है. वहीं गेन बाई ने बताया कि जिला प्रशासन गांव भी नहीं जाने देते हैं. 45 बच्चे और 65 से अधिक पुरुष और महिला सभी परेशान है. इस कोरोना के संकट में लोग भीख देने से भी कतरा रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

जिला प्रशासन से लगाई मदद की गुहार
बंजारा अनुराजत पवार ने बताया कि रोजी रोटी के जुगाड़ में महाराष्ट्र से माला बेचते-बेचते बांका आए. सोचा यहां मेला लगने पर कुछ रुपये कमा लेंगे. लेकिन लॉक डाउन ने सभी मंसूबे पर पानी फेर दिया. यहां काफी तकलीफ हो रही है. मदद भी सीमित है. वार्ड पार्षद की ओर से दो बार सुखा अनाज मुहैया कराया गया. लेकिन, परिवार बड़ा रहने की वजह से यह नाकाफी साबित हुआ. भोजन के अभाव में बस किसी तरह से जिंदा है. बंजारा परिवार ने जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई.

खानाबदोश महिलाएं
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