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बांका में सिंचाई व्यवस्था बस 'छलावा', पटवन की समस्या से जूझ रहे किसान

किसान सुरेंद्र कुशवाहा ने बताया कि वर्ष 1995 में आई विनाशकारी बाढ़ ने किसानों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था. अधिकांश हिस्सों में पटवन के सारे स्रोत तबाह हो गए और नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया. जिसके चलते सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन बालूबुर्द हो गई. इससे किसान अब तक उबर नहीं पाए हैं.

बांका
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Published : Aug 26, 2020, 11:02 PM IST

बांका: जिले की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. खेती के समय हर वर्ष की किसान पटवन की समस्या से जूझते हैं. जिले में सात डैम होने के बाद भी खेत प्यासी रह जाती है. इसकी प्रमुख वजह नहरों की चरमराई स्थिति और नदियों से बेतरतीब बालू उत्खनन है. इस वजह से पटवन के सारे साधन एक-एक कर धराशाई होते चले गए. जिले के तमाम प्रमुख नदियों से लगातार बालू उठाव के चलते नदी की गहराई अधिक हो गई. जिससे खेतों तक पानी पहुंचना असंभव हो गया है.

बांका
खेती करता किसान

वहीं गर्मी के दिनों में अब स्थिति ऐसी आन पड़ी कि जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से पेयजल का भी संकट गहराने लगा है. साथ ही उपजाऊ माने जाने वाली नदी किनारे के जमीन पटवन के अभाव में परती ही रह जाता है. सरकार हर खेत तक पटवन के साधन मुहैया कराने के लिए योजना तो चला रही है, लेकिन यह कार्य अभी तक सर्वे तक ही अटका हुआ है.

बांका
खेतों में पटवन करते स्थानीय किसान
बांका जिला की कृषि एक नजर में-
जिले में खेती योग्य कुल भूमि189447 हेक्टेयर
जिले में बुआई की जा रही जमीन146628 हेक्टेयर
जिले में सामान्य वर्षापात1107 मीमी
नहर से सिंचाई वाली भूमि63 हजार हेक्टेयर
धान की खेती का रकबा96 हजार हेक्टेयर
निजी नलकूपों की संख्या15 हजार
राजकीय नलकूपों की संख्या11

पटवन की समस्या से जूझ रहे किसान
किसान सुरेंद्र कुशवाहा ने बताया कि वर्ष 1995 में आई विनाशकारी बाढ़ ने किसानों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था. अधिकांश हिस्सों में पटवन के सारे स्रोत तबाह हो गए और नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया. जिसके चलते सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन बालूबुर्द हो गई. इससे किसान अब तक उबर नहीं पाए हैं. सुरेंद्र ने बताया कि वक्त की मार ने किसानों को दूसरे का मोहताज बना दिया है. जो थोड़ा बहुत जमीन बचा है, उसमें भी महंगे कीमत पर डीजल खरीद कर खेती करना पड़ता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'बांध बनाने की पहल नहीं करती सरकार'
किसान सुरेश कुमार ने बताया कि सरकार करोड़ों रुपयों का फंड जारी कर सड़क और पुल बनवा रही है. सरकार का विकास कार्य पुल और सड़क तक ही सीमित है. वहीं किसानों के पटवन के साधन को दुरुस्त करने के लिए सरकार चार से पांच लाख में बांध बनाने की पहल नहीं कर पाती है. साथ ही उन्होंने कहा कि बाढ़ में तबाह हुए नहरों का अब तक जीर्णोधार और तटबंध निर्माण तक नहीं हुआ है. किसान अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं और उन्हें कोई देखने वाला तक नहीं है.

बांका
पटवन करता किसान

'किसानों का हाल पूछने नहीं आया कोई'
किसान शांति मरीक ने कहा कि पिछले 25 वर्षों से खेती पूरी तरह से तबाह हैं. अधिकांश लोग खेती छोड़कर शहर की ओर पलायन करने लगे. उन्होंने कहा कि सरकारें किसानों के माली स्थिति सुधारने की बात तो करतीं हैं, लेकिन हकीकत यह है कि आज तक किसानों को कोई पूछने तक नहीं आया है. वहीं जिला कृषि पदाधिकारी विष्णुदेव कुमार रंजन ने बताया कि किसानों की पटवन की समस्या को दूर करने के लिए 'हर खेत पानी योजना' चलाई जा रही है. इसको लेकर सर्वे का काम जारी है. उन्होंने कहा कि असिंचित जमीन को सिंचित करने के लिए भी सरकार योजना तैयार कर रही है.

बांका: जिले की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. खेती के समय हर वर्ष की किसान पटवन की समस्या से जूझते हैं. जिले में सात डैम होने के बाद भी खेत प्यासी रह जाती है. इसकी प्रमुख वजह नहरों की चरमराई स्थिति और नदियों से बेतरतीब बालू उत्खनन है. इस वजह से पटवन के सारे साधन एक-एक कर धराशाई होते चले गए. जिले के तमाम प्रमुख नदियों से लगातार बालू उठाव के चलते नदी की गहराई अधिक हो गई. जिससे खेतों तक पानी पहुंचना असंभव हो गया है.

बांका
खेती करता किसान

वहीं गर्मी के दिनों में अब स्थिति ऐसी आन पड़ी कि जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से पेयजल का भी संकट गहराने लगा है. साथ ही उपजाऊ माने जाने वाली नदी किनारे के जमीन पटवन के अभाव में परती ही रह जाता है. सरकार हर खेत तक पटवन के साधन मुहैया कराने के लिए योजना तो चला रही है, लेकिन यह कार्य अभी तक सर्वे तक ही अटका हुआ है.

बांका
खेतों में पटवन करते स्थानीय किसान
बांका जिला की कृषि एक नजर में-
जिले में खेती योग्य कुल भूमि189447 हेक्टेयर
जिले में बुआई की जा रही जमीन146628 हेक्टेयर
जिले में सामान्य वर्षापात1107 मीमी
नहर से सिंचाई वाली भूमि63 हजार हेक्टेयर
धान की खेती का रकबा96 हजार हेक्टेयर
निजी नलकूपों की संख्या15 हजार
राजकीय नलकूपों की संख्या11

पटवन की समस्या से जूझ रहे किसान
किसान सुरेंद्र कुशवाहा ने बताया कि वर्ष 1995 में आई विनाशकारी बाढ़ ने किसानों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था. अधिकांश हिस्सों में पटवन के सारे स्रोत तबाह हो गए और नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया. जिसके चलते सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन बालूबुर्द हो गई. इससे किसान अब तक उबर नहीं पाए हैं. सुरेंद्र ने बताया कि वक्त की मार ने किसानों को दूसरे का मोहताज बना दिया है. जो थोड़ा बहुत जमीन बचा है, उसमें भी महंगे कीमत पर डीजल खरीद कर खेती करना पड़ता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'बांध बनाने की पहल नहीं करती सरकार'
किसान सुरेश कुमार ने बताया कि सरकार करोड़ों रुपयों का फंड जारी कर सड़क और पुल बनवा रही है. सरकार का विकास कार्य पुल और सड़क तक ही सीमित है. वहीं किसानों के पटवन के साधन को दुरुस्त करने के लिए सरकार चार से पांच लाख में बांध बनाने की पहल नहीं कर पाती है. साथ ही उन्होंने कहा कि बाढ़ में तबाह हुए नहरों का अब तक जीर्णोधार और तटबंध निर्माण तक नहीं हुआ है. किसान अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं और उन्हें कोई देखने वाला तक नहीं है.

बांका
पटवन करता किसान

'किसानों का हाल पूछने नहीं आया कोई'
किसान शांति मरीक ने कहा कि पिछले 25 वर्षों से खेती पूरी तरह से तबाह हैं. अधिकांश लोग खेती छोड़कर शहर की ओर पलायन करने लगे. उन्होंने कहा कि सरकारें किसानों के माली स्थिति सुधारने की बात तो करतीं हैं, लेकिन हकीकत यह है कि आज तक किसानों को कोई पूछने तक नहीं आया है. वहीं जिला कृषि पदाधिकारी विष्णुदेव कुमार रंजन ने बताया कि किसानों की पटवन की समस्या को दूर करने के लिए 'हर खेत पानी योजना' चलाई जा रही है. इसको लेकर सर्वे का काम जारी है. उन्होंने कहा कि असिंचित जमीन को सिंचित करने के लिए भी सरकार योजना तैयार कर रही है.

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