बांका: छठ महापर्व (Chhath Puja) बहुतायत महिला व्रतियां ही करती हैं. कई पुरुष भी इस पावन पर्व को करते हैं. बांका जिले के कटोरिया में पुरुष छठी मइया की अराधना करते हैं लेकिन इसका कारण भावुक कर देने वाला है. वे घर-गांव की बेटियों की जिंदगी और उनकी खुशहाली की कामना के लिए छठ व्रत करते हैं. बांका के भोरसार स्थित पिपराडीह गांव में अधिकांश पुरुष ही छठ व्रत करते हैं. हाल के वर्षों में दूसरे गांवों से ब्याहकर आईं बहुओं ने भी यहां छठ करना शुरू किया है, लेकिन व्रत करने वाले पुरुषों की संख्या अधिक है.
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इस गांव में यह परंपरा दशकों से चली आ रही है. किसी को यह ठीक से पता नहीं है कि कितने समय से यह परंपरा चली आ रही है. पड़ोस के गांव की वृद्धा निर्मल सिन्हा ने बताया कि उन्हें उनकी सास ने इस बारे में बताया था. किसी समय गांव में किसी के घर लड़की पैदा होने पर उसकी मृत्यु हो जाती थी. इस कारण यहां लड़कियों की संख्या कम होने लगी. लोग परेशान थे. काफी वैद्य-हकीम का सहारा लिया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
तब गांव में एक प्रसिद्ध तांत्रिक के पहुंचने पर ग्रामीणों ने उनसे समाधान पूछ. उन्होंने पुरुषों को छठ करने की सलाह दी. तब से यह परंपरा अनवरत जारी है. ग्रामीणों के अनुसार इसके बाद से गांव में लड़कियों के पर आया संकट भी समाप्त हो गया. अभी एक हजार की आबादी वाले पिपराडीह गांव में 100 से अधिक पुरुष छठ करते हैं.
सुबोध यादव, रमेश यादव, विक्रम, सुरेश आदि ने बताया कि वे पिछले 20 वर्षों से छठ कर रहे हैं. इसमें महिलाओं का भी सहयोग रहता है. कृष्णा यादव ने बताया कि वे 1985 से यह महापर्व कर रहे हैं. जब तक गांव आबाद रहेगा, पुरुष यहां छठ करते रहेंगे. पंचायत के निवर्तमान मुखिया पप्पू यादव ने बताया कि यहां पुरुष वर्ग द्वारा छठ पूजा करने की परंपरा चली आ रही है.
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लोगों का मानना है कि छठी मैया का व्रत करने से कल्याण होता है. बबलू मंडल व गोकुला दास का कहना है कि आज से कुछ वर्ष पूर्व तक यहां सिर्फ पुरुष ही छठ करते थे. गांव के पुरुष सदस्य मानते हैं कि यदि वे छठ करेंगे तो उनकी बेटियों पर कोई संकट नहीं आएगा. इन्होंने बताया कि आम तौर पर छठ मैया से लोग बेटा मांगते हैं, लेकिन यहां के लोग बेटियों के लिए यह व्रत करते हैं. इस कारण उनके नाते-रिश्तेदारों को भी आश्चर्य होता है.
कुछ व्रतियों ने बताया कि अब कुछ महिलाओं ने भी इस व्रत को करना शुरू किया है. प्रसाद आदि बनाने में महिलाएं सहयोग करती हैं. उन्होंने बताया कि पूर्वजों की इस परंपरा का निर्वाह करने में एक विशेष आध्यात्मिक अनुभूति होती है, जिसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता. शुरू में तो महिलाओं के बदले पुरुष ही छठ करते थे. अब गांव की कुछ महिलाओं ने भी यह व्रत शुरू किया है, लेकिन इससे व्रत करने वाले पुरुषों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है.
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