अररिया: बिहार सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. मत्स्य पालन के लिये भी सरकार योजना चला रही है. लेकिन इन योजनाओं का लाभ व्यवसाईयों तक नहीं पहुंच रहा है. मछली व्यवसाईयों का कहना है कि योजना दलालों की वजह से कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है.
जिले के मछुआरों का भी कहना है कि सरकार की ओर से चलाई जा रही किसी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है. वो जैसे-तैसे जिंदगी गुजर-बसर करने को मजबूर हैं. फारबिसगंज अनुमंडल डोरिया सोनपुर में मत्स्य पालन का व्यवसाय कर रहे मोहम्मद तालिब का भी यहीं कहना है. उन्होंने बताया कि इस योजना की जानकारी कृषि अनुसंधान केंद्र के कार्यालय में रिसर्चर आरके जलज से मिली.
सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
व्यावसायी का कहना है कि उनके पास खुद की जमीन पहले से ही थी. रोजगार के लिये उन्होंने 2014 में ही अप्लाई किया था. एक साल बाद इस योजना का लाभ मिला. इनका कहना है कि सरकार तो किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती है, लेकिन दलालों की वजह से लाभ सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाता है. उन्होंने बताया कि अभी के वक्त में जितने भी किसान मत्स्य पालन का व्यवसाय लीज पर कर रहे थे, सबने खत्म कर दिया. जिसके पास खुद की जमीन है, वहीं यह व्यवसाय कर रहे हैं, लीज वालों को नुकसान हो रहा है.
सरकार की ओर से दो तरह की योजनाएं संचालित
पूरे मामले की जानकारी देते हुए जिला मत्स्य पदाधिकारी अंजनी कुमार ने बताया कि दो तरह की योजना संचालित है. एक अपलैंड तालाब निर्माण की योजना है, जिसमें पांच फीट मिट्टी काट कर तालाब का निर्माण किया जाता है. दूसरा है अर्धभूमि में तालाब निर्माण की योजना. जिसमें वैसी जमीन जिसमें पानी जमा रहता है उसे तीन फिट गहरा कर तालाब का निर्माण कराया जाता है. इस योजना में लागत मूल्य 40 से 50% तक होता है, विभिन्न योजनाओं में सब्सिडी अलग-अलग दिया जाता है.
दो सालों में 100 किसानों को मिला लाभ
इसमें जो एससी/एसटी समुदाय के लोग हैं उनके लिए भी योजना है, जिसमें आधा एकड़ में नर्सरी तालाब निर्माण कराया जाता है. इसके लिए एक लाख 54 हजार का स्कीम है जिसकी 90% राशि सरकार मुहैया कराएगी. मत्स्य पालन पहले कृषि विभाग के अंतर्गत कार्यरत था. बाद में पशु एवं मत्स्य संसाधन बना. उन्होंने बताया कि दो सालों में 100 किसानों को इस योजना का लाभ दिया जा चुका है.
विभाग ने वेबसाइट भी किया लांच
एक हेक्टेयर अपलैंड जमीन में 6 लाख की लागत होती है, जिसका 40% अनुदान सरकार सामान्य वर्ग को देती है और 60% का अनुदान एससी/एसटी वर्ग को दिया जाता है. लो लैंड में पांच लाख लागत मूल्य है. जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि इसका लाभ उठाने के लिए विभाग ने वेबसाइट लांच किया है. लोग ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से इसका लाभ उठा सकते हैं. इसके लिये ज़मीन के कागजात, रसीद, नक्शा, आधार कार्ड, बैंक खाता संख्या की पूरी जानकारी और दो पासपोर्ट साइज फोटो के साथ आवेदन फॉर्म भरकर संबंधित पंचायत के प्रतिनिधि का अनुशंसा किया हुआ पत्र देना है.
लाभुकों को खाते में जाता है पैसा
अगर जमीन खुद की हो तो एलपीसी देना होगा. अगर लीज पर लिया हुआ जमीन है तो रजिस्टर्ड जमीन का इकरारनामा देना होगा, जिसका कार्यकाल दस साल या उससे ज़्यादा का हो. इतने कागजात को मत्स्य विभाग कार्यालय में जमा करना है, जिसे क्षेत्रीय पदाधिकारी जांच करते हैं. उसके बाद कनीय अभियंता परियोजना का निर्माण करते हैं. जिला मत्स्य पदाधिकारी के द्वारा कार्यादेश जारी किया जाता है, फिर उसे माफिक पुस्तक में दर्ज किया जाता है. इसके बाद लाभुकों के बैंक खाते में आरटीजीएस के माध्यम से पैसा भेजा जाता है. पूरी प्रक्रिया में एक महीने का वक्त लग जाता है.