ETV Bharat / state

लोगों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ, मत्स्य पालकों ने कहा- दलालों ने रास्ता रोका - The department also launched a website to take advantage of the scheme

व्यावसायियों का कहना है कि अभी के वक्त में जितने भी किसान मत्स्य पालन का व्यवसाय लीज पर कर रहे थे, सबने खत्म कर दिया. जिसके पास खुद का जमीन है वही यह व्यवसाय कर रहे है. लीज वालों को नुकसान हो रहा है.

मत्स्य पालन योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
author img

By

Published : Sep 6, 2019, 10:03 AM IST

अररिया: बिहार सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. मत्स्य पालन के लिये भी सरकार योजना चला रही है. लेकिन इन योजनाओं का लाभ व्यवसाईयों तक नहीं पहुंच रहा है. मछली व्यवसाईयों का कहना है कि योजना दलालों की वजह से कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है.

जिले के मछुआरों का भी कहना है कि सरकार की ओर से चलाई जा रही किसी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है. वो जैसे-तैसे जिंदगी गुजर-बसर करने को मजबूर हैं. फारबिसगंज अनुमंडल डोरिया सोनपुर में मत्स्य पालन का व्यवसाय कर रहे मोहम्मद तालिब का भी यहीं कहना है. उन्होंने बताया कि इस योजना की जानकारी कृषि अनुसंधान केंद्र के कार्यालय में रिसर्चर आरके जलज से मिली.

araria
व्यवसायी को हो रहा नुकसान

सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
व्यावसायी का कहना है कि उनके पास खुद की जमीन पहले से ही थी. रोजगार के लिये उन्होंने 2014 में ही अप्लाई किया था. एक साल बाद इस योजना का लाभ मिला. इनका कहना है कि सरकार तो किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती है, लेकिन दलालों की वजह से लाभ सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाता है. उन्होंने बताया कि अभी के वक्त में जितने भी किसान मत्स्य पालन का व्यवसाय लीज पर कर रहे थे, सबने खत्म कर दिया. जिसके पास खुद की जमीन है, वहीं यह व्यवसाय कर रहे हैं, लीज वालों को नुकसान हो रहा है.

araria
मत्स्य पालन

सरकार की ओर से दो तरह की योजनाएं संचालित
पूरे मामले की जानकारी देते हुए जिला मत्स्य पदाधिकारी अंजनी कुमार ने बताया कि दो तरह की योजना संचालित है. एक अपलैंड तालाब निर्माण की योजना है, जिसमें पांच फीट मिट्टी काट कर तालाब का निर्माण किया जाता है. दूसरा है अर्धभूमि में तालाब निर्माण की योजना. जिसमें वैसी जमीन जिसमें पानी जमा रहता है उसे तीन फिट गहरा कर तालाब का निर्माण कराया जाता है. इस योजना में लागत मूल्य 40 से 50% तक होता है, विभिन्न योजनाओं में सब्सिडी अलग-अलग दिया जाता है.

araria
मत्स्य पालन योजनाओं का व्यवसायियों को नहीं मिल रहा लाभ

दो सालों में 100 किसानों को मिला लाभ
इसमें जो एससी/एसटी समुदाय के लोग हैं उनके लिए भी योजना है, जिसमें आधा एकड़ में नर्सरी तालाब निर्माण कराया जाता है. इसके लिए एक लाख 54 हजार का स्कीम है जिसकी 90% राशि सरकार मुहैया कराएगी. मत्स्य पालन पहले कृषि विभाग के अंतर्गत कार्यरत था. बाद में पशु एवं मत्स्य संसाधन बना. उन्होंने बताया कि दो सालों में 100 किसानों को इस योजना का लाभ दिया जा चुका है.

पेश है रिपोर्ट

विभाग ने वेबसाइट भी किया लांच
एक हेक्टेयर अपलैंड जमीन में 6 लाख की लागत होती है, जिसका 40% अनुदान सरकार सामान्य वर्ग को देती है और 60% का अनुदान एससी/एसटी वर्ग को दिया जाता है. लो लैंड में पांच लाख लागत मूल्य है. जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि इसका लाभ उठाने के लिए विभाग ने वेबसाइट लांच किया है. लोग ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से इसका लाभ उठा सकते हैं. इसके लिये ज़मीन के कागजात, रसीद, नक्शा, आधार कार्ड, बैंक खाता संख्या की पूरी जानकारी और दो पासपोर्ट साइज फोटो के साथ आवेदन फॉर्म भरकर संबंधित पंचायत के प्रतिनिधि का अनुशंसा किया हुआ पत्र देना है.

लाभुकों को खाते में जाता है पैसा
अगर जमीन खुद की हो तो एलपीसी देना होगा. अगर लीज पर लिया हुआ जमीन है तो रजिस्टर्ड जमीन का इकरारनामा देना होगा, जिसका कार्यकाल दस साल या उससे ज़्यादा का हो. इतने कागजात को मत्स्य विभाग कार्यालय में जमा करना है, जिसे क्षेत्रीय पदाधिकारी जांच करते हैं. उसके बाद कनीय अभियंता परियोजना का निर्माण करते हैं. जिला मत्स्य पदाधिकारी के द्वारा कार्यादेश जारी किया जाता है, फिर उसे माफिक पुस्तक में दर्ज किया जाता है. इसके बाद लाभुकों के बैंक खाते में आरटीजीएस के माध्यम से पैसा भेजा जाता है. पूरी प्रक्रिया में एक महीने का वक्त लग जाता है.

अररिया: बिहार सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. मत्स्य पालन के लिये भी सरकार योजना चला रही है. लेकिन इन योजनाओं का लाभ व्यवसाईयों तक नहीं पहुंच रहा है. मछली व्यवसाईयों का कहना है कि योजना दलालों की वजह से कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है.

जिले के मछुआरों का भी कहना है कि सरकार की ओर से चलाई जा रही किसी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है. वो जैसे-तैसे जिंदगी गुजर-बसर करने को मजबूर हैं. फारबिसगंज अनुमंडल डोरिया सोनपुर में मत्स्य पालन का व्यवसाय कर रहे मोहम्मद तालिब का भी यहीं कहना है. उन्होंने बताया कि इस योजना की जानकारी कृषि अनुसंधान केंद्र के कार्यालय में रिसर्चर आरके जलज से मिली.

araria
व्यवसायी को हो रहा नुकसान

सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
व्यावसायी का कहना है कि उनके पास खुद की जमीन पहले से ही थी. रोजगार के लिये उन्होंने 2014 में ही अप्लाई किया था. एक साल बाद इस योजना का लाभ मिला. इनका कहना है कि सरकार तो किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती है, लेकिन दलालों की वजह से लाभ सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाता है. उन्होंने बताया कि अभी के वक्त में जितने भी किसान मत्स्य पालन का व्यवसाय लीज पर कर रहे थे, सबने खत्म कर दिया. जिसके पास खुद की जमीन है, वहीं यह व्यवसाय कर रहे हैं, लीज वालों को नुकसान हो रहा है.

araria
मत्स्य पालन

सरकार की ओर से दो तरह की योजनाएं संचालित
पूरे मामले की जानकारी देते हुए जिला मत्स्य पदाधिकारी अंजनी कुमार ने बताया कि दो तरह की योजना संचालित है. एक अपलैंड तालाब निर्माण की योजना है, जिसमें पांच फीट मिट्टी काट कर तालाब का निर्माण किया जाता है. दूसरा है अर्धभूमि में तालाब निर्माण की योजना. जिसमें वैसी जमीन जिसमें पानी जमा रहता है उसे तीन फिट गहरा कर तालाब का निर्माण कराया जाता है. इस योजना में लागत मूल्य 40 से 50% तक होता है, विभिन्न योजनाओं में सब्सिडी अलग-अलग दिया जाता है.

araria
मत्स्य पालन योजनाओं का व्यवसायियों को नहीं मिल रहा लाभ

दो सालों में 100 किसानों को मिला लाभ
इसमें जो एससी/एसटी समुदाय के लोग हैं उनके लिए भी योजना है, जिसमें आधा एकड़ में नर्सरी तालाब निर्माण कराया जाता है. इसके लिए एक लाख 54 हजार का स्कीम है जिसकी 90% राशि सरकार मुहैया कराएगी. मत्स्य पालन पहले कृषि विभाग के अंतर्गत कार्यरत था. बाद में पशु एवं मत्स्य संसाधन बना. उन्होंने बताया कि दो सालों में 100 किसानों को इस योजना का लाभ दिया जा चुका है.

पेश है रिपोर्ट

विभाग ने वेबसाइट भी किया लांच
एक हेक्टेयर अपलैंड जमीन में 6 लाख की लागत होती है, जिसका 40% अनुदान सरकार सामान्य वर्ग को देती है और 60% का अनुदान एससी/एसटी वर्ग को दिया जाता है. लो लैंड में पांच लाख लागत मूल्य है. जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि इसका लाभ उठाने के लिए विभाग ने वेबसाइट लांच किया है. लोग ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से इसका लाभ उठा सकते हैं. इसके लिये ज़मीन के कागजात, रसीद, नक्शा, आधार कार्ड, बैंक खाता संख्या की पूरी जानकारी और दो पासपोर्ट साइज फोटो के साथ आवेदन फॉर्म भरकर संबंधित पंचायत के प्रतिनिधि का अनुशंसा किया हुआ पत्र देना है.

लाभुकों को खाते में जाता है पैसा
अगर जमीन खुद की हो तो एलपीसी देना होगा. अगर लीज पर लिया हुआ जमीन है तो रजिस्टर्ड जमीन का इकरारनामा देना होगा, जिसका कार्यकाल दस साल या उससे ज़्यादा का हो. इतने कागजात को मत्स्य विभाग कार्यालय में जमा करना है, जिसे क्षेत्रीय पदाधिकारी जांच करते हैं. उसके बाद कनीय अभियंता परियोजना का निर्माण करते हैं. जिला मत्स्य पदाधिकारी के द्वारा कार्यादेश जारी किया जाता है, फिर उसे माफिक पुस्तक में दर्ज किया जाता है. इसके बाद लाभुकों के बैंक खाते में आरटीजीएस के माध्यम से पैसा भेजा जाता है. पूरी प्रक्रिया में एक महीने का वक्त लग जाता है.

Intro:बिहार सरकार के दुवारा चलाए जा रहे अनेकों प्रकार के योजना का लाभ मत्स्य पालन करने वालों को पहुंच रहा है। उससे कितने किसान ज़िले में लाभान्वित हैं, कैसे उसकी जानकारी किसानों को प्राप्त हुआ। कितने दिन के अंदर योजना का लाभ उन तक पहुंचा। कितना फ़ायदा हो रहा है। जिसका रियलिटी जांच करने ईटीवी के जिला संवाददाता यहां के एक मत्स्य पालन करने वाले किसान से बात किया।


Body:बिहार सरकार के दुवारा चलाए जा रहे मत्स्य पालन योजना का लाभ जानने ज़िला मत्स्य पदाधिकारी अंजनी कुमार ने बताया कि दो तरह की योजना संचालित है एक अपलैंड तालाब निर्माण की योजना है जिसमें पांच फ़िट मिट्टी काट कर तालाब का निर्माण किया जाता है। दूसरा है अर्धभूमि में तालाब निर्माण की योजना जिसमें वैसे ज़मीन जिसमें पानी जमा रहता है उसे तीन फ़िट गहरा कर तालाब का निर्माण करवाते हैं। इस योजना में लागत मूल्य 40 से 50% तक विभिन्न योजनाओं में सब्सिHडी अलग अलग दिया जाता है। इसमें जो एससी/एसटी समुदाय के लोग हैं उनके लिए भी योजना है जिसमें आधा एकड़ में नर्सरी तालाब निर्माण कराया जाता है जिसके लिए एक लाख 54 हज़ार का स्कीम है उसका 90% राशि सरकार मुहैया कराएगी। जब से बिहार में मत्स्य पालन एस्टेब्लिश हुआ है पहले यह कृषि विभाग के अंतर्गत कार्यरत था बाद में पशु एवं मत्स्य संसाधन बना उस समय से यह योजना चलाया जा रहा है। दो सालों में सौ किसान को इस योजना का लाभ दिला चुके हैं। एक हेक्टेयर अपलैंड ज़मीन में छः लाख का लागत लगता है जिसका 40% अनुदान सरकार सामान्य वर्ग के लोगों को देती है तथा 60% का अनुदान एससी/एसटी वर्ग के लोगों को दिया जाता है। बाक़ी किसान ऋण के दुवारा या ख़ुद का लगाते हैं। लो लैंड में पांच लाख लागत मूल्य है उसका भी उतना ही मिलता है। मछुवा समुदाय के प्रत्येक प्रखंडों में समिति बना हुआ है उसी किसान का 10% उसे दिया जाता है जिससे उसके परिवार के लोगों की ज़िंदगी गुज़र बशर होती है। इसका लाभ उठाने के लिए विभाग के दुवारा वेबसाइट लांच किया गया है। लोग ऑनलाईन आवेदन के माध्यम से इसका लाभ को उठा सकते हैं। ऑफ़लाइन फार्म भी जमा किया जाता है जिसके लिए ज़मीन के कागज़, रशीद, नक़्शा, आधारकार्ड, बैंक खाता संख्या पूरा जानकारी, दो पासपोर्ट साइज फ़ोटो आवेदन फॉर्म भरकर तथा संबंधित पंचायत के प्रतिनिधि का अनुशंसा किया हुआ पत्र देना है। ख़ुद का ज़मीन हो तो एलपीसी देना होगा और अगर लिज पर लिया हुआ ज़मीन है तो रजिस्टर्ड ज़मीन का इकरारनामा जिसका कार्यकाल दस साल या उससे ज़्यादा का हो। इतने काग़ज़ात को मत्स्य विभाग कार्यालय में जमा करना है जिसे क्षेत्रीय पदाधिकारियों के दुवारा जांच किया जाता है। उसके बाद कनीय अभियंता के दुवारा परियोजना का निर्माण करते हैं उसके बाद ज़िला मत्स्य पदाधिकारी के दुवारा कार्यादेश जारी किया जाता है, फ़िर उसे माफ़िक पुस्तक में दर्ज किया जाता है। उप मत्स्य निदेशक की अध्यक्षता में एक कमिटी है पुर्णिया में जिसके बाद लाभुक के बैंक खाते में आरटीजीएस के माध्यम से उसे पैसा भेजा जाता है। एक महीने का पूरा वक़्त लग जाता है सभी प्रकार के चीज़ों को देने में लग जाता है। हालांकि जब इस मसले पर अररिया के फारबिसगंज अनुमंडल डोरिया सोनपुर में मत्स्य पालन का व्यवसाय कर रहे किसान मोहम्मद तालिब ने बताया कि इस योजना के बारे में जानकारी कृषि अनुसंधान केंद्र के कार्यालय में रिसर्चर आरके जलज के दुवारा पता चला उसके बाद खुद का ज़मीन पहले से था और बाहर जाकर कमाने से बेहतर यहां ही रोज़गार कर लिए पर इसके लिए 2014 में ही अप्लाई किए था और एक साल लग गया इस योजना को पाने के लिए। उन्होंने बताया कि सरकार तो किसानों के लिए बहुत तरह के योजना चलाते हैं पर यहां दलालों की वजह से लाभ सिर्फ़ काग़ज़ों तक ही सिमट कर रह जाता है। ज़मीन पर उतारने ही नहीं देता है।ख़ुद के ज़मीन पर यह व्यवसाय चार साल से कर रहे हैं पूरा पांच एकड़ का ज़मीन है। जिसमें सालाना ख़र्च ज़ीरा देने में ढाई से तीन लाख रूपए ख़र्च होता है। सालाना सब कुछ देकर डेढ़ लाख रूपए फ़ायदा होता है। अभी के वक़्त में जितने भी किसान मत्स्य पालन का व्यवसाय लीज पर कर रहे थे सबने ख़त्म कर दिया जिसके पास ख़ुद का ज़मीन है वो ही इस व्यवसाय को कर रहा है लीज वाले को नुकसान हो रहा है फायदा नहीं है।


Conclusion:संबंधित विसुअल वॉइस ओवर पैकेज के साथ
बाइट मछुवारा
बाइट मत्स्य पालन किसान, व्यवसाय मोहम्मद तालिब आलम
बाइट मत्स्य पदाधिकारी अररिया अंजनी कुमार
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.