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अमेरिका ने अफगानिस्तान में चीजें की अस्त-व्यस्त: इमरान खान

तालिबान के साथ राजनीतिक समाधान ढूढने की कोशिश को लेकर अमेरिका की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अमेरिका ने वाकई अफगानिस्तान में चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है.

प्रधानमंत्री इमरान खान
प्रधानमंत्री इमरान खान
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Published : Jul 28, 2021, 11:07 PM IST

इस्लामाबाद : अफगानिस्तान में 2001 में हमले के मकसद करने और फिर कमजोर स्थिति से तालिबान के साथ राजनीतिक समाधान ढूढने की कोशिश को लेकर अमेरिका की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अमेरिका ने वाकई अफगानिस्तान में चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है.

इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति का एकमात्र बेहतर समाधान राजनीतिक समझौता ही है जो समावेशी हो और इसमें तालिबान समेत सभी गुट शामिल है.

स्थानीय मीडिया से बातचीत के दौरान इमरान खान ने कहा, मैं समझता कि अमेरिका ने वाकई वहां चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है. तालिबान के साथ हुए करार के तहत अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी देश आतंकवादियों के इस वादे के बदले अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हो गए है कि वे चरमपंथी संगठनों को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां चलाने से रोकेंगे. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा कि अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से बुला लिए जाएंगे.

खान ने अफगानिस्तान में सैन्य हल ढूंढने की कोशिश के लिए अमेरिका की आलोचना कि क्योंकि कभी वैसा कुछ संभव नहीं है और मुझ जैसे जो लोग यह कहते रहे कि कोई सैन्य समाधान संभव नहीं है. क्योंकि हमें अफगानिस्तान का इतिहास मालूम था, तब हमें मुझ जैसे लोगों को अमेरिका-विरोधी कहा गया. मुझे तालिबान खान कहा गया.

उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि जबतक अमेरिका को यह अहसास हुआ कि अफगानिस्तान में कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता तब तक दुर्भाग्य से अमेरिकियों एवं नाटो की मोल-भाव की शक्ति चली गई.

प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरका को बहुत पहले ही राजनीतिक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था, जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे. उन्होंने कहा लेकिन एक बार जब उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर महज 10,000 कर दी तब जब उन्होंने वापसी की तारीख बता दी, तब तालिबान ने सोचा कि वे तो जीत गए. इसलिए अब उन्हें समझौते के लिए साथ लाना बड़ा मुश्किल है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि तालिबान का उभार अफगानिस्तान के लिए एक सकारात्मक कदम है तो प्रधानमंत्री ने दोहराया कि केवल अच्छा नतीजा राजनीतिक समझौता होगा जो समावेशी हो.उन्होंने कहा, निश्चित ही, तालिबान सरकार का हिस्सा होगा.अफगानिस्तान में गृह युद्ध के संदर्भ में खान ने कहा, पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह सबसे बुरी स्थिति है क्योंकि हमारे समक्ष दो परिदृश्य है, उनमें एक शरणार्थी समस्या है.

इसे भी पढ़े-पाकिस्तान के कराची में बंदूकधारियों के हमले में एक चीनी श्रमिक घायल

उन्होंने कहा, पहले से ही, पाकिस्तान 30 लाख से अधिक शरणार्थियों को शरण दे रहा है और हमारा डर है कि गृहयुद्ध लंबा खिंचने से और शरणार्थी आएगें. हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम और प्रवासियों को झेल पाए. इमरान ने कहा कि दूसरी समस्या के तहत गृहयुद्ध के सीमा पार करके पाकिस्तान पहुंचने का डर है और कहा कि दरअसल तालिबान जातीय रूप से पश्तून हैं. यदि अफगानिस्तान में गृहयुद्ध एवं हिंसा जारी रहती है तो हमारे ओर के पश्तून उसमें खिंचे चले जाएगें.

(पीटीआई-भाषा)

इस्लामाबाद : अफगानिस्तान में 2001 में हमले के मकसद करने और फिर कमजोर स्थिति से तालिबान के साथ राजनीतिक समाधान ढूढने की कोशिश को लेकर अमेरिका की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अमेरिका ने वाकई अफगानिस्तान में चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है.

इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति का एकमात्र बेहतर समाधान राजनीतिक समझौता ही है जो समावेशी हो और इसमें तालिबान समेत सभी गुट शामिल है.

स्थानीय मीडिया से बातचीत के दौरान इमरान खान ने कहा, मैं समझता कि अमेरिका ने वाकई वहां चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है. तालिबान के साथ हुए करार के तहत अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी देश आतंकवादियों के इस वादे के बदले अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हो गए है कि वे चरमपंथी संगठनों को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां चलाने से रोकेंगे. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा कि अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से बुला लिए जाएंगे.

खान ने अफगानिस्तान में सैन्य हल ढूंढने की कोशिश के लिए अमेरिका की आलोचना कि क्योंकि कभी वैसा कुछ संभव नहीं है और मुझ जैसे जो लोग यह कहते रहे कि कोई सैन्य समाधान संभव नहीं है. क्योंकि हमें अफगानिस्तान का इतिहास मालूम था, तब हमें मुझ जैसे लोगों को अमेरिका-विरोधी कहा गया. मुझे तालिबान खान कहा गया.

उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि जबतक अमेरिका को यह अहसास हुआ कि अफगानिस्तान में कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता तब तक दुर्भाग्य से अमेरिकियों एवं नाटो की मोल-भाव की शक्ति चली गई.

प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरका को बहुत पहले ही राजनीतिक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था, जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे. उन्होंने कहा लेकिन एक बार जब उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर महज 10,000 कर दी तब जब उन्होंने वापसी की तारीख बता दी, तब तालिबान ने सोचा कि वे तो जीत गए. इसलिए अब उन्हें समझौते के लिए साथ लाना बड़ा मुश्किल है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि तालिबान का उभार अफगानिस्तान के लिए एक सकारात्मक कदम है तो प्रधानमंत्री ने दोहराया कि केवल अच्छा नतीजा राजनीतिक समझौता होगा जो समावेशी हो.उन्होंने कहा, निश्चित ही, तालिबान सरकार का हिस्सा होगा.अफगानिस्तान में गृह युद्ध के संदर्भ में खान ने कहा, पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह सबसे बुरी स्थिति है क्योंकि हमारे समक्ष दो परिदृश्य है, उनमें एक शरणार्थी समस्या है.

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उन्होंने कहा, पहले से ही, पाकिस्तान 30 लाख से अधिक शरणार्थियों को शरण दे रहा है और हमारा डर है कि गृहयुद्ध लंबा खिंचने से और शरणार्थी आएगें. हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम और प्रवासियों को झेल पाए. इमरान ने कहा कि दूसरी समस्या के तहत गृहयुद्ध के सीमा पार करके पाकिस्तान पहुंचने का डर है और कहा कि दरअसल तालिबान जातीय रूप से पश्तून हैं. यदि अफगानिस्तान में गृहयुद्ध एवं हिंसा जारी रहती है तो हमारे ओर के पश्तून उसमें खिंचे चले जाएगें.

(पीटीआई-भाषा)

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