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लोकसभा चुनाव: कैसा रहेगा इस बार सीमांचल और मिथिलांचल का खेल, कौन होगा पास और कौन फेल

बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली सीमांचल की राजनीति इसबार के चुनावोंं में क्या रंग खिलाएगी, अब सभी पार्टियों की नजर इसी पर टिकी है.

सीमांचल का इलाका
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Published : Apr 17, 2019, 8:38 PM IST

पटना : बिहार का सीमांचल और मिथिलांचल चुनाव के समय हमेशा सुर्खियों में रहता है. इस बार भी महागठबंधन के कई दिग्गजों को टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने से चर्चा में है.

एमवाई समीकरण का जादू
सीमांचल और मिथिलांचल की एक दर्जन सीटों पर लंबे समय से एमवाई समीकरण का जादू चलता रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद से लालू प्रसाद के एमवाई समीकरण को जरूर झटका लगा है.

लंबे समय तक कांग्रेस का राज
मिथिलांचल की आधा दर्जन सीटों पर एमवाई समीकरण बड़ी भूमिका निभाता रहा है. इनमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, बेगूसराय, सहरसा प्रमुख है. मिथिलांचल में ब्राह्मणों की आबादी भी अच्छी खासी है, और इसलिए लंबे समय तक कांग्रेस ने यहां राज किया है. इस बार कांग्रेस को मिथिलांचल में सुपौल और समस्तीपुर मिली है.

नाराज हैं कई बड़े नेता
महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर मिथिलांचल में खासी नाराजगी है. आरजेडी और कांग्रेस के बागी नेता महागठबंधन की परेशानी बने हुए हैं. एक समय बिहार की राजनीति मिथिलांचल से ही तय होती थी. दरभंगा सीट से आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्धकी चुनाव लड़ रहे हैं, फातमी टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं.

दरभंगा में चलेगा एमवाई समीकरण ?
वहीं कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए कीर्ति आजाद को भी बड़ी उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, लेकिन उन्हें धनबाद जाना पड़ा. दरभंगा में यादव समुदाय के बाद ब्राह्मणों की संख्या सबसे ज्यादा है और फिर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या आती है. यहां भी आरजेडी को एमवाई समीकरण के जादू चलने की उम्मीद है.

संवाददाता अविनाश की रिपोर्ट

मधुबनी लोकसभा सीट पर सबकी नजर
मधुबनी लोकसभा सीट पर ही सबकी नजर है. यह सीट मुकेश सहनी की पार्टी को मिली है, और इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद ने नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा देकर इंडिपेंडेंट चुनाव में नॉमिनेशन कर दिया है. यहां भी एमवाई समीकरण अहम भूमिका निभा सकता है. यहां ब्राह्मण मतों की संख्या भी अच्छी खासी है.

मिथिलांचल में एनडीए के पक्ष में हवा-संजय झा
झंझारपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, शिवहर जैसे सीटों पर भी लड़ाई महत्वपूर्ण है. हाल में मिथिलांचल के कई लोकसभा क्षेत्र से कई बड़े नेता जदयू में शामिल हुए हैं. संजय झा को जदयू दरभंगा से चुनाव लड़ाना चाहती थी लेकिन दरभंगा सीट बीजेपी खाते में चली गयी और वे इस बार चुनाव नहीं लड़ सके. वे पिछले लंबे समय से तैयारी कर रहे थे. संजय झा के अनुसार मिथिलांचल में एनडीए के पक्ष में हवा चल रही है.

कोई एमवाई समीकरण नहीं करेगा काम-राजीव रंजन
जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए विकास के कई काम किए हैं. लेकिन, लालू प्रसाद ने भागलपुर दंगा में शामिल लोगों को सम्मानित करने का काम किया. इसलिए कोई एमवाई समीकरण काम नहीं करेगा. लोग नीतीश के नाम पर ही वोट करेंगे.

जनता फैसला नहीं बदलने वाली- वृषण पटेल
हालांकि महागठबंधन के नेताओं का अपना दावा है वृषण पटेल का कहना है जनता ने एक बार फैसला कर लिया है नेता भले चले जाएं लेकिन जनता अब अपने फैसला बदलने वाली नहीं है. हालांकि इस बार 14 प्रत्याशी मैदान में है 16 लाख से अधिक मतदाता इनके भाग्य का फैसला करेंगे.

पटना : बिहार का सीमांचल और मिथिलांचल चुनाव के समय हमेशा सुर्खियों में रहता है. इस बार भी महागठबंधन के कई दिग्गजों को टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने से चर्चा में है.

एमवाई समीकरण का जादू
सीमांचल और मिथिलांचल की एक दर्जन सीटों पर लंबे समय से एमवाई समीकरण का जादू चलता रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद से लालू प्रसाद के एमवाई समीकरण को जरूर झटका लगा है.

लंबे समय तक कांग्रेस का राज
मिथिलांचल की आधा दर्जन सीटों पर एमवाई समीकरण बड़ी भूमिका निभाता रहा है. इनमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, बेगूसराय, सहरसा प्रमुख है. मिथिलांचल में ब्राह्मणों की आबादी भी अच्छी खासी है, और इसलिए लंबे समय तक कांग्रेस ने यहां राज किया है. इस बार कांग्रेस को मिथिलांचल में सुपौल और समस्तीपुर मिली है.

नाराज हैं कई बड़े नेता
महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर मिथिलांचल में खासी नाराजगी है. आरजेडी और कांग्रेस के बागी नेता महागठबंधन की परेशानी बने हुए हैं. एक समय बिहार की राजनीति मिथिलांचल से ही तय होती थी. दरभंगा सीट से आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्धकी चुनाव लड़ रहे हैं, फातमी टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं.

दरभंगा में चलेगा एमवाई समीकरण ?
वहीं कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए कीर्ति आजाद को भी बड़ी उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, लेकिन उन्हें धनबाद जाना पड़ा. दरभंगा में यादव समुदाय के बाद ब्राह्मणों की संख्या सबसे ज्यादा है और फिर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या आती है. यहां भी आरजेडी को एमवाई समीकरण के जादू चलने की उम्मीद है.

संवाददाता अविनाश की रिपोर्ट

मधुबनी लोकसभा सीट पर सबकी नजर
मधुबनी लोकसभा सीट पर ही सबकी नजर है. यह सीट मुकेश सहनी की पार्टी को मिली है, और इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद ने नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा देकर इंडिपेंडेंट चुनाव में नॉमिनेशन कर दिया है. यहां भी एमवाई समीकरण अहम भूमिका निभा सकता है. यहां ब्राह्मण मतों की संख्या भी अच्छी खासी है.

मिथिलांचल में एनडीए के पक्ष में हवा-संजय झा
झंझारपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, शिवहर जैसे सीटों पर भी लड़ाई महत्वपूर्ण है. हाल में मिथिलांचल के कई लोकसभा क्षेत्र से कई बड़े नेता जदयू में शामिल हुए हैं. संजय झा को जदयू दरभंगा से चुनाव लड़ाना चाहती थी लेकिन दरभंगा सीट बीजेपी खाते में चली गयी और वे इस बार चुनाव नहीं लड़ सके. वे पिछले लंबे समय से तैयारी कर रहे थे. संजय झा के अनुसार मिथिलांचल में एनडीए के पक्ष में हवा चल रही है.

कोई एमवाई समीकरण नहीं करेगा काम-राजीव रंजन
जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए विकास के कई काम किए हैं. लेकिन, लालू प्रसाद ने भागलपुर दंगा में शामिल लोगों को सम्मानित करने का काम किया. इसलिए कोई एमवाई समीकरण काम नहीं करेगा. लोग नीतीश के नाम पर ही वोट करेंगे.

जनता फैसला नहीं बदलने वाली- वृषण पटेल
हालांकि महागठबंधन के नेताओं का अपना दावा है वृषण पटेल का कहना है जनता ने एक बार फैसला कर लिया है नेता भले चले जाएं लेकिन जनता अब अपने फैसला बदलने वाली नहीं है. हालांकि इस बार 14 प्रत्याशी मैदान में है 16 लाख से अधिक मतदाता इनके भाग्य का फैसला करेंगे.

Intro:पटना-- बिहार का सीमांचल और मिथिलांचल चुनाव के समय हमेशा सुर्खियों में रहता है इस बार भी महागठबंधन के कई दिग्गज को टिकट नहीं मिलने के बाद चुनाव मैदान में उतरने से चर्चा में है। सीमांचल और मिथिलांचल की एक दर्जन सीटों पर लंबे समय से एमवाई समीकरण का जादू चलता रहा है लेकिन नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद से लालू प्रसाद के एमवाई समीकरण को जरूर झटका लगा ।
देखिए खास रिपोर्ट---


Body: मिथिलांचल की आधा दर्जन सीटों पर एमवाई समीकरण बड़ी भूमिका जिताने में करता रहा है दरभंगा मधुबनी समस्तीपुर बेगूसराय सहरसा प्रमुख है मिथिलांचल में ब्राह्मणों की आबादी भी अच्छी खासी है और इसलिए लंबे समय तक कांग्रेस ने यहां राज किया है इस बार कांग्रेस को मिथिलांचल में केवल 2 सीटें एक सुपौल और एक समस्तीपुर मिला है महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर मिथिलांचल में खासी नाराजगी है आरजेडी और कांग्रेस के बागी महागठबंधन की परेशानी बने हुए हैं एक समय बिहार की राजनीति मिथिलांचल से ही तय होता था। दरभंगा सीट से आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्धकी चुनाव लड़ रहे हैं फातमी टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं वहीं कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए कीर्ति आजाद जहां बड़ी उम्मीद थी कि टिकट मिलेगा लेकिन उन्हें धन्यवाद जाना पड़ा दरभंगा में यादव के बाद ब्राह्मणों की संख्या सबसे ज्यादा है और फिर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है और यहां भी आरजेडी को एमवाई समीकरण के जादू चलने की उम्मीद है। मधुबनी लोकसभा सीट पर ही सबकी नजर है यह सीट मुकेश सहनी की पार्टी को मिला है और इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद ने नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा देकर इंडिपेंडेंट चुनाव में नॉमिनेशन कर दिया है यहां भी एमवाई समीकरण अहम भूमिका निभा सकता है ऐसे ब्राह्मण मतों की संख्या भी अच्छी खासी है झंझारपुर सहरसा सुपौल सीतामढ़ी शिवहर जैसे सीटों पर भी लड़ाई महत्वपूर्ण है। हाल में मिथिलांचल के कई लोकसभा क्षेत्र से कई बड़े नेता जदयू में शामिल हुए हैं संजय झा जिन्हें जदयू दरभंगा से चुनाव लड़ाना चाहती थी लेकिन दरभंगा सीट बीजेपी खाते में चला गया और इस बार चुनाव नहीं लड़ सके जबकि तैयारी पिछले लंबे समय से कर रहे थे संजय झा के अनुसार मिथिलांचल में एन डी ए के पक्ष में हवा वह रही है।
बाईट-- संजय झा, वरिष्ठ नेता जदयू
जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए जितना काम किया है योजना की बात हो या फिर कब्रिस्तान की घेराबंदी की लेकिन वहीं लालू प्रसाद ने भागलपुर दंगा में शामिल लोगों को सम्मानित करने का काम किया था। इसलिए कोई एमवाई समीकरण काम नहीं करेगा। नीतीश कुमार के नाम पर ही लोग वोट करेंगे।
बाईट-- राजीव रंजन, जदयू प्रवक्ता
हालांकि महागठबंधन के नेताओं का अपना दावा है वृषिण पटेल का कहना है जनता ने एक बार फैसला कर लिया है नेता भले चले जाएं लेकिन जनता अब अपने फैसले से बदलने वाली नहीं है।
बाईट--वृशिण पटेल, नेता रालोसपा।



Conclusion:सीमांचल का किशनगंज, अररिया और कटिहार मुस्लिम बहुलता वाला लोकसभा सीट है । और लंबे समय तक कांग्रेस ने यहां राज किया है लेकिन लालू प्रसाद के सत्ता संभालने के बाद स्थितियां बदली एमवाई समीकरण का जबरदस्त का जादू चला। इस बार महागठबंधन में किशनगंज और कटिहार कांग्रेस के पास है वहीं अररिया आरजेडी के पास। तो वहीं एनडीए में किशनगंज और कटिहार जदयू के पास तो अररिया बीजेपी के पास है। कटिहार में 51 की आबादी एमवाई समीकरण के तहत है तू ही किशनगंज में 70% से अधिक आबादी ।अररिया की स्थिति भी लोकसभा सीट पर एमवाई समीकरण जीत हार का फैसला होता रहा है तारिक अनवर लंबे समय से कटिहार लोकसभा सीट के धुरी बने रहे हैं एनसीपी के टिकट पर 2014 में चुनाव जीते थे लेकिन पिछले साल एनसीपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया इस बार उनकी राह बहुत आसान नहीं है क्योंकि जदयू ने दुलाल चंद्र गोस्वामी को मैदान में उतारा है वहीं एनसीपी के उम्मीदवार मोहम्मद शकुर भी मैदान में है कटिहार में 51% वोटर एमवाई समीकरण के तहत आते हैं और यही जीत हार का फैसला इस बार भी तय करेगा महागठबंधन में कांग्रेस को आरजेडी का साथ है ऐसे में तारीक अनवर को पूरा भरोसा है कि आधा मतदाताओं का इस बार वोट मिलेगा तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है अब ऐसे में देखना है कि मुस्लिम और यादव वोटों का बंटवारा होता है या नहीं क्योंकि राकंपा के प्रत्याशी सिरसावादी समुदाय से आते हैं जिसकी मुस्लिमों में यहां आधी आबादी है।इस बार भी ठीक चुनाव के सीमांचल का महत्वपूर्ण सीट और पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे कहे जाने वाला किशनगंज में 1952 से अब तक 16 बार हुए चुनाव में कांग्रेस के दो बार तिकड़ी लगाने साथ सीमांचल के गांधी मोहम्मद तसलीमुद्दीन को तीन बार सांसद बनने का मौका मिला है दो बार राजद से और एक बार जनता दल से जीते। 2014 में अख्तरुल इमान को जदयू ने यहां से उतारा था लेकिन सिंबल मिलने के बाद भी बीच में ही मैदान छोड़ दिया इसके बावजूद उन्हें 55000 से अधिक वोट मिले थे इस बार अख्तरुल इमान एम आई एम के उम्मीदवार हैं और उनके प्रचार में ओवैसी आ चुके हैं किशनगंज। कांग्रेस ने डॉ मोहम्मद जावेद को मैदान में उतारा है तो जदयू के उम्मीदवार हैं सैयद महमूद अशरफ लेकिन आई एम के उम्मीदवार अख्तरुल इमान लड़ाई को तिकोनिया बनाने में लगे हैं यहां मुस्लिम की अधिक आबादी है । इस बार 14 प्रत्याशी मैदान में है 16 लाख से अधिक मतदाता इनके भाग्य का फैसला करेंगे।
अविनाश, पटना।
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