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बटुकेश्वर दत्त: आजादी का वो मतवाला, जिसने फांसी की सजा नहीं मिलने पर महसूस की शर्मिंदगी - Shaheed-e-Azam Bhagat Singh

हमारी विडंबना है कि भारत मृत्यु और मूर्ति पूजक देश है. स्वतंत्रता आंदोलन में लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी. इनमें से कई तो शहीद हो गए लेकिन जो बच गए वह गुमनामी के अंधेरे में चले गए.

बटुकेश्वर दत्त
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Published : Aug 14, 2019, 7:05 AM IST

पटना: भारत इस साल अपनी आजादी के 72 साल मनाने जा रहा है. इस आजाद भारत की सुबह के लिए कई वीरों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी. इन्हीं में से एक थे पश्चिम बंगाल में स्थित वर्धमान के रहने वाले महान सपूत और स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त. उनका जन्म 18 नवंबर 1910 को हुआ था. उन्होंने पटना को अपनी कर्मभूमि बनाया. जब भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारी का नाम लिया जाएगा तब बटुकेश्वर दत्त लोगों को याद आएंगे.

the unsung hero of indian independence batukeshwar dutt
बटुकेश्वर दत्त स्मारक

देश की विडंबना
हमारे देश की विडंबना यह है कि यहां मरने के बाद लोगों को याद किया जाता है. स्वतंत्रता आंदोलन में लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी. इनमें से कई तो शहीद हो गए लेकिन जो बच गए वह गुमनामी के अंधेरे में चले गए. सरकार के साथ अपनों ने भी उन्हें बेगाना कर दिया. महान क्रांतिकारी और शहीद-ए-आजम की साथ देने वाले दत्त भी मां भारती के एक ऐसे सपूत हैं, जिन्हें लोगों ने भुला दिया.

the unsung hero of indian independence batukeshwar dutt
बटुकेश्वर दत्त के नाम की गली में लगा उनके नाम का साइन बोर्ड

अंग्रेजों ने सुनायी काला पानी की सजा
बटुकेश्वर दत्त वही शख्स थे जिन्होंने ब्रिटिश असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ दो बम फेंके थे और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दी थी. इस घटना के लिए दत्त को फांसी नहीं हुई थी, उन्हें काला पानी की सजा सुनायी गयी. देश के लिए मर मिटने को तैयार इस नवयुवक को काफी शर्मिंदगी महसूस हुई कि उन्हें फांसी नहीं बल्कि काला पानी का सजा सुनाई गई. अंग्रेजों ने बटुकेश्वर दत्त को को यातनाएं भी दी थी.

the unsung hero of indian independence batukeshwar dutt
बटुकेश्वर दत्त की मूर्ति

मांगा गया स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र
जेल से निकलने के बाद बटुकेश्वर दत्त टीवी जैसे गंभीर रोग से ग्रसित हो गए थे. पंजाब सरकार की पहल पर उनके इलाज की व्यवस्था की गई. लंबी बीमारी के बाद 20 जुलाई 1965 को बटुकेश्वर दत्त दुनिया से रुखसत हो गए. देश का दुर्भाग्य रहा कि मरने से पहले मुफलिसी में जीवन जी रहे बटुकेश्वर दत्त से स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र भी मांगा गया.

बटुकेश्वर दत्त.. आजादी की लड़ाई के गुमनाम सिपाही

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के पास ही किए गए दफन
बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे,उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई. आजादी के इस मतवाले ने अपनी आखिरी इच्छा के तौर पर कहा था कि उन्हें भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ ही दफन किया जाए. बाद में उनकी इच्छानुसार उन्हें वही दफनाया गया.

पटना: भारत इस साल अपनी आजादी के 72 साल मनाने जा रहा है. इस आजाद भारत की सुबह के लिए कई वीरों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी. इन्हीं में से एक थे पश्चिम बंगाल में स्थित वर्धमान के रहने वाले महान सपूत और स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त. उनका जन्म 18 नवंबर 1910 को हुआ था. उन्होंने पटना को अपनी कर्मभूमि बनाया. जब भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारी का नाम लिया जाएगा तब बटुकेश्वर दत्त लोगों को याद आएंगे.

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बटुकेश्वर दत्त स्मारक

देश की विडंबना
हमारे देश की विडंबना यह है कि यहां मरने के बाद लोगों को याद किया जाता है. स्वतंत्रता आंदोलन में लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी. इनमें से कई तो शहीद हो गए लेकिन जो बच गए वह गुमनामी के अंधेरे में चले गए. सरकार के साथ अपनों ने भी उन्हें बेगाना कर दिया. महान क्रांतिकारी और शहीद-ए-आजम की साथ देने वाले दत्त भी मां भारती के एक ऐसे सपूत हैं, जिन्हें लोगों ने भुला दिया.

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बटुकेश्वर दत्त के नाम की गली में लगा उनके नाम का साइन बोर्ड

अंग्रेजों ने सुनायी काला पानी की सजा
बटुकेश्वर दत्त वही शख्स थे जिन्होंने ब्रिटिश असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ दो बम फेंके थे और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दी थी. इस घटना के लिए दत्त को फांसी नहीं हुई थी, उन्हें काला पानी की सजा सुनायी गयी. देश के लिए मर मिटने को तैयार इस नवयुवक को काफी शर्मिंदगी महसूस हुई कि उन्हें फांसी नहीं बल्कि काला पानी का सजा सुनाई गई. अंग्रेजों ने बटुकेश्वर दत्त को को यातनाएं भी दी थी.

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बटुकेश्वर दत्त की मूर्ति

मांगा गया स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र
जेल से निकलने के बाद बटुकेश्वर दत्त टीवी जैसे गंभीर रोग से ग्रसित हो गए थे. पंजाब सरकार की पहल पर उनके इलाज की व्यवस्था की गई. लंबी बीमारी के बाद 20 जुलाई 1965 को बटुकेश्वर दत्त दुनिया से रुखसत हो गए. देश का दुर्भाग्य रहा कि मरने से पहले मुफलिसी में जीवन जी रहे बटुकेश्वर दत्त से स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र भी मांगा गया.

बटुकेश्वर दत्त.. आजादी की लड़ाई के गुमनाम सिपाही

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के पास ही किए गए दफन
बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे,उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई. आजादी के इस मतवाले ने अपनी आखिरी इच्छा के तौर पर कहा था कि उन्हें भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ ही दफन किया जाए. बाद में उनकी इच्छानुसार उन्हें वही दफनाया गया.

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