पटना: मुसीबत के वक्त जब सरकार और सरकारी तंत्र फेल होता है, उस वक्त लोगों की उम्मीद विपक्ष से होती है. विपक्ष का प्रमुख काम भी होता है सरकार की खामियों को उजागर करना और जनता के मुद्दों को प्रमुखता से सरकार के सामने रखना. लेकिन हाल के दिनों में चाहे मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार का मामला हो या फिर पटना में जलजमाव दोनों वक्त बिहार में विपक्ष ही पूरी तरह फेल साबित हुआ. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या लालू यादव होते तो विपक्ष की यही हालत होती.
तेजस्वी यादव ने पीड़ितों की नहीं की कोई मदद
पहले मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से 200 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई. उस वक्त भी चाहे मुजफ्फरपुर के लोग हों, या बिहार की जनता दोनों ही तेजस्वी यादव को ढूंढ रही थी. लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी की बागडोर संभाल रहे तेजस्वी सिर्फ पार्टी के नेता ही नहीं, बल्कि बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं, लेकिन वे पूरे 3 महीने बिहार से गायब रहे.
विपक्ष ने जनता को किया निराश
मामला पुराना भी नहीं हुआ था कि पटना में जलप्रलय ने लोगों की जिंदगी तबाह कर दी. एक बार फिर विपक्ष और विपक्ष के नेता के तौर पर तेजस्वी यादव के पास बड़ा मौका था, जन नेता के तौर पर उभरने का, लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाने का. लेकिन ना तो वे खुद आए और ना ही उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव नजर आए. तेजस्वी भले ही बिहार से बाहर हैं, लेकिन तेज प्रताप यादव इन दिनों पटना में ही हैं. लालू की अनुपस्थिति में इन दोनों नौनिहालों ने भी आम लोगों की मदद के लिए कोई कवायद नहीं की.
'लालू होते तो परिस्थितियां कुछ और होती'
पार्टी का कोई नेता इस बारे में बोलने को तैयार नहीं है. लेकिन दबी जुबान से लोग ये जरूर कह रहे हैं कि अगर लालू होते तो परिस्थितियां कुछ और होती. पार्टी के नेता भी मानते हैं पार्टी को तेजस्वी और तेजप्रताप से जितनी उम्मीदें थी वह सारी धरी की धरी रह गई. उस पर से मुसीबत यह की महागठबंधन बिहार में पूरी तरह बिखरा हुआ है उसे संभालने वाला कोई प्रमुख चेहरा नजर नहीं आ रहा.