पटना: 15 अगस्त 2021 काे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राजनीतिक इतिहास में एक और अध्याय जुड़ गया. कहने के लिए तो पार्टी 25 साल की हो चुकी है. लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं को इतना मानकर चलती है कि यहां का हर सिपाही दल का समर्पित कार्यकर्ता है. दल को जिस तरीके से सिपाहियों के लिए समर्पित होना चाहिए, उसके हर भाव अब भटकने लगे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण 15 अगस्त (15 August) को बिहार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh)का पार्टी कार्यालय में नहीं आना रहा है. विपक्ष की चर्चा तो जाने दीजिए, राष्ट्रीय जनता दल को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है कि आखिर कौन से कारण रहे जिसके चलते जगदानंद सिंह ने 15 अगस्त को पार्टी कार्यालय आकर झंडा फहराना भी उचित नहीं समझा.
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राष्ट्रीय जनता दल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब स्वतंत्रता दिवस पर झंडा किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा फहराया गया है जो न तो राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ना ही प्रांतीय अध्यक्ष. पार्टी के नियम के अनुसार 15 अगस्त और 26 जनवरी को पार्टी कार्यालय में पार्टी का अध्यक्ष ही झंडा फहराता है. अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष मौजूद हैं तो झंडारोहण की जिम्मेदारी उन्हीं की होती है. अगर वे नहीं है तो प्रदेश अध्यक्ष ही झंडोत्तोलन का कार्य करते हैं लेकिन इस बार राष्ट्रीय जनता दल की यह परिपाटी टूट गई. तेजस्वी यादव ने पार्टी कार्यालय में झंडा फहराया.
राजनीति में एक और बात अब चर्चा में आ गई है. उसमें कहा यह जाता है कि कोई अबोध बच्चा हो तो उसके हाथों से झंडा इसलिए फहरवा दिया जाता है कि उसे अपने देश के लिए अभिमान जागे. वह लोगों के लिए प्रेरणा भी बने लेकिन राष्ट्रीय जनता दल में जो कुछ चल रहा है उसमें हर छोटा बड़ा बनने की तैयारी में हैं. यही वजह है कि 'बड़ों' की राजनीति 'छोटी' होती जा रही है. तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने झंडा इसलिए फहरा दिया कि वह लालू यादव के बेटे हैं. ऐसा नहीं है कि पार्टी में वरिष्ठ नेता नहीं थे जो पार्टी में वरिष्ठता के लिहाज से पार्टी कार्यालय में झंडा फहरा देते लेकिन तेजस्वी यादव ने झंडा फहराया.
यह नहीं कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल में कोई ऐसी बात हो गयी जो तेजस्वी यादव के कारण विभेद हो जाएगी. तेज प्रताप लगातार जगदानंद को टारगेट कर रहे हैं. कुर्सी किसी के बाप की बपौती नहीं कहकर आक्षेप लगाए जा रहे हैं. लेकिन यह भी तय है कि बाप द्वारा खड़ी की गई पार्टी में बेटे की बपौती तो चलती ही है.
सियासत के उन शब्दों का भी लिहाज नहीं रख पाए जो लालू यादव जगदानंद सिंह के लिए भाई के तौर पर करते थे. सियासत में 'शब्दों' के और 'मानने वाले मूल्यों में कंगाली' का दौर है. यहां पर हर छोटी सियासत में जल्दी से इतना बड़ा बन जाना चाह रहा है. वह चाहता है कि उसकी हर इच्छा पूरी हो जाए और शायद यही राष्ट्रीय जनता दल में हो भी रहा है.
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लालू यादव की तबीयत खराब थी तो चर्चा इस बात की थी कि तेजस्वी यादव को पार्टी की कमान दे दी जाएगी. पार्टी की कमान तेजस्वी को दी जाएगी इसका ऐलान नहीं हुआ लेकिन पार्टी कार्यालय में झंडा फहराकर तेजस्वी यादव ने यह साबित कर दिया कि भले उनकी हाथों में राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान न हो, लेकिन आलाकमान तो वही बन गए हैं.
अब एक बार फिर से राष्ट्रीय जनता दल को यह सोचना होगा और उन तमाम नेताओं को बैठकर चर्चा भी करना होगा कि जिन लोगों ने राष्ट्रीय जनता दल की नींव लालू यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर के रखी थी, आज पार्टी को छोड़ रहे हैं. सोचना उन लोगों को जरूर होगा, जो बिहार में सियासत को नए तरीके से पकड़ रहे हैं.
सच यह भी है कि अगर पुरानी जमीन का आधार खिसक गया तो नए में बहुत कुछ बना पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा. हालांकि यह सियासत है, यहां सब कुछ चलता है. कभी रघुवंश बाबू को लेकर हुआ था और अब जगदानंद सिंह हैं. आगे कुछ और लोग होंगे. अब अंजाम क्या होगा, कहना मुश्किल है लेकिन आज 15 अगस्त को झंडा फहराने के कार्यक्रम के बाद एक बात तय हो गई है कि राजद ने नई रफ्तार पकड़ ली है.