ETV Bharat / city

आरसीपी सिंह को लेकर सस्पेंस! क्या राज्यसभा नहीं भेजने का नीतीश कुमार ले सकते हैं जोखिम! - ईटीवी न्यूज

राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election 2022)को लेकर सभी पार्टियां तैयारी में जुट गयी है. प्रत्याशियों के चयन और उनकी जीत के लिए रणनीति बनायी जा रही है लेकिन जेडीयू में आरसीपी सिंह उम्मीदवारी को लेकर सस्पेंस (Suspense over RCP Singh Rajya Sabha candidature) बरकरार है. पढ़ें पूरी खबर.

Rajya Sabha Election 2022
Rajya Sabha Election 2022
author img

By

Published : May 17, 2022, 10:16 PM IST

पटना: जदयू कोटे से एकमात्र केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) का राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है. जदयू के अंदर कई तरह की चर्चा चल रही है क्योंकि आरसीपी सिंह का ललन सिंह से 36 का आंकड़ा है. उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी उनकी पटरी नहीं बैठती. ऐसे में राज्यसभा भेजे जाने को लेकर पार्टी के अंदर सस्पेंस (RCP Singh Rajya Sabha candidature) बना हुआ है. फैसला सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को करना है. राज्यसभा नहीं भेजे जाने पर आरसीपी सिंह का केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहना संभव नहीं होगा. बड़ा सवाल कि क्या नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने का जोखिम ले सकते हैं?

ये भी पढ़ें: बिहार राज्यसभा उपचुनाव के लिए अनिल हेगड़े का नाम सबसे आगे, पांच दावेदारों के बीच रस्साकशी

आरसीसी सिंह व ललन सिंह में 36 का आंकड़ा: केंद्रीय मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के खास माने जाते हैं. वहीं ललन सिंह के साथ 36 का आंकड़ा भी बना हुआ है. इसके कारण कई तरह की चर्चा भी शुरू है. आरसीपी सिंह का कार्यकाल 10 जुलाई को समाप्त हो रहा है. राज्यसभा चुनाव की तिथि भी घोषित हो गई है. 10 जून को चुनाव होना है. राज्यसभा के 1 सीट के लिए जदयू ने पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बनाया है. दूसरी ओर आरसीपी सिंह को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. आरसीपी सिंह की उम्मीदवारी का फैसला नीतीश कुमार करेंगे लेकिन चुनाव आयोग को भेजे जाने वाले पत्र पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का हस्ताक्षर होगा. मामला यही फंस रहा है.

नीतीश लेंगे फैसला: सूत्रों के अनुसार ललन सिंह हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं हैं. हालांकि नीतीश कुमार जब फैसला लेंगे तो ललन सिंह उसे अलग नहीं हो सकते हैं, यह तय है. आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के साथ वर्षों से काम कर रहे हैं. जब वे केंद्र में रेल मंत्री थे, उसी समय से साथ हैं. बिहार में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी वर्षों तक रहे. नीतीश कुमार पार्टी में अभी सबसे ज्यादा किसी पर विश्वास करते हैं तो वह आरसीपी सिंह ही हैं. दो-दो बार उन्हें राज्यसभा भेज चुके हैं. केंद्र में भी नीतीश कुमार की सहमति से ही मंत्री बने हैं. हालांकि ललन सिंह की तरफ से कहा गया कि आरसीपी सिंह अपने मन से राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मंत्री बनने का फैसला ले लिया.

देखें रिपोर्ट

आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से ही ललन सिंह के साथ विवाद बढ़ा. उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भी दोनों का विवाद खुलकर सामने आ गया था. पार्टी के अंदर भी कार्यक्रमों को लेकर दोनों नेता के बीच विवाद किसी से छिपा नहीं है. इसके बाद भी नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने का जोखिम भरा फैसला लेंगे, इसकी संभावना कम ही है.

आरसीपी का बीजेपी से बेहतर संबंध: क्योंकि इसके दो पक्ष हैं- एक तो आरसीपी सिंह जदयू में फिलहाल एकमात्र नेता हैं जिनके बीजेपी के साथ सबसे बेहतर संबंध हैं. बिहार में बीजेपी के साथ तालमेल से सरकार चल रही है. अरुण जेटली के निधन के बाद से नीतीश कुमार के लिए केंद्र में फील्डिंग करने वाला कोई नेता बीजेपी में नहीं है. ऐसे में आगे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने पर बीजेपी के साथ भी संबंध खराब हो सकता है क्योंकि आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से भी हटना पड़ेगा नहीं तो फिर बीजेपी को ही उन्हें राज्य सभा भेजना पड़ेगा.

JDU में टूट की आशंका: दूसरा, पार्टी संगठन में आरसीपी सिंह की पकड़ है. पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव संगठन से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका आरसीपी सिंह निभा चुके हैं. वे कुर्मी वर्ग से आते हैं. बिहार मंत्रिमंडल में भी कई मंत्री उनके चेहते माने जाते हैं जिसमें शिला मंडल, मदन सहनी का नाम लिया जाता है. कई वर्तमान विधायक और कई पूर्व विधायक भी आरसीपी सिंह के गुट के माने जाते हैं. पूर्व विधायक अभय कुशवाहा तो उनके समर्थन में खुलकर दिखते भी रहे हैं. ऐसे में पार्टी के टूटने का भी खतरा हो सकता है.
आरसीपी सिंह को जदयू में नीतीश कुमार के बाद दो नंबर का नेता माना जाता रहा है. जदयू की नीतियां बनाने में आरसीपी सिंह अहम भूमिका निभाते रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार के बड़े फैसलों में भी आरसीपी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती रही है. खास बात यह भी है कि वे नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के ही रहने वाले हैं.

1998 से नीतीश कुमार के साथ: नीतीश रेल मंत्री थे तो आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया था. 2005 में नीतीश मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को प्रधान सचिव बनाया. 2010 में आरसीपी सिंह ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. उसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें दो बार राज्यसभा भेजा. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेवारी दी और संगठन का कामकाज आरसीपी सिंह ही देखते रहे. 2020 में नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा तो आरसीपी सिंह को ही जिम्मेदारी मिली. आरसीपी सिंह का ऐसे तो विवादों से पुराना नाता रहा है. प्रशांत किशोर के साथ भी उनका विवाद हुआ था. आरसीपी सिंह के कारण ही प्रशांत किशोर ने जदयू छोड़ दिया.

'अगले महीने राज्यसभा के लिए होने वाले चुनाव में सबसे अधिक चर्चा आरसीपी सिंह को लेकर ही है. नीतीश कुमार क्या फैसला लेते हैं, इस पर सबकी नजर है. यदि नीतीश कुमार उन्हें पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया तो यह बड़ा पॉलिटिकल मुद्दा बन सकता है. नीतीश कुमार सुलझे हुए नेता हैं. कोई भी ऐसा फैसला नहीं लेंगे जिससे बीजेपी को विरोध का मैसेज जाए. कुशवाहा को लाकर जो एडवांटेज मिला है यदि आरसीपी सिंह को उम्मीदवार नहीं बनाया तो ज्यादा डैमेज कर देंगे. एक तरह से दो फार वाली स्थिति बन जाएगी. जदयू उम्मीदवार नहीं बनाया और यदि बीजेपी ने अपने लाभ के लिए उन्हें उम्मीदवार बना दिया तो नीतीश कुमार के लिए 2024 का चुनाव और मुश्किल भरा होगा और इसलिए नीतीश कुमार कोई भी ऐसा जोखिम नहीं उठाएंगे.'-अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

'सबकी निगाह जदयू के उम्मीदवार पर टिकी है. आरसीपी सिंह रिपीट होंगे या नीतीश कुमार उन्हें नहीं भेजने का जोखिम उठाएंगे. मेरा मानना है आरसीपी सिंह का राज्यसभा जाना तय है. नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह अलग नहीं हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. पिछले तीन दशक से आज जो कुछ आरसीपी सिंह हैं, प्रधान सचिव से लेकर राज्यसभा सदस्य और मंत्री, सब कुछ नीतीश कुमार कारण की बदौलत ही संभव हुआ है. ललन सिंह से मतभेद के कारण उनकी सदस्यता खतरे में है लेकिन नीतीश कुमार आखिर जोखिम क्यों उठाएंगे क्योंकि आरसीपी सिंह जदयू का ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.'-अरुण पांडे, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ.

'उम्मीदवार के चयन के लिए पार्टी में निर्धारित प्रक्रिया है. उसी प्रक्रिया के तहत तय होगी. जब तय हो जाएगा तो सब कुछ सूचना भी दी जाएगी.'- विजय चौधरी, मंत्री, बिहार सरकार और जदयू नेता.

'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस पर फैसला लेंगे. इससे बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है.'-अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता.

यह भी पढ़ें: जदयू में राज्यसभा उम्मीदवारों को लेकर सस्पेंस, आरसीपी सिंह का समाप्त हो रहा है कार्यकाल

यह भी पढ़ें: राज्यसभा चुनाव: मीसा भारती का टिकट पक्का, आरसीपी सिंह पर संशय !

ऐसी ही विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

पटना: जदयू कोटे से एकमात्र केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) का राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है. जदयू के अंदर कई तरह की चर्चा चल रही है क्योंकि आरसीपी सिंह का ललन सिंह से 36 का आंकड़ा है. उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी उनकी पटरी नहीं बैठती. ऐसे में राज्यसभा भेजे जाने को लेकर पार्टी के अंदर सस्पेंस (RCP Singh Rajya Sabha candidature) बना हुआ है. फैसला सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को करना है. राज्यसभा नहीं भेजे जाने पर आरसीपी सिंह का केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहना संभव नहीं होगा. बड़ा सवाल कि क्या नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने का जोखिम ले सकते हैं?

ये भी पढ़ें: बिहार राज्यसभा उपचुनाव के लिए अनिल हेगड़े का नाम सबसे आगे, पांच दावेदारों के बीच रस्साकशी

आरसीसी सिंह व ललन सिंह में 36 का आंकड़ा: केंद्रीय मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के खास माने जाते हैं. वहीं ललन सिंह के साथ 36 का आंकड़ा भी बना हुआ है. इसके कारण कई तरह की चर्चा भी शुरू है. आरसीपी सिंह का कार्यकाल 10 जुलाई को समाप्त हो रहा है. राज्यसभा चुनाव की तिथि भी घोषित हो गई है. 10 जून को चुनाव होना है. राज्यसभा के 1 सीट के लिए जदयू ने पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बनाया है. दूसरी ओर आरसीपी सिंह को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. आरसीपी सिंह की उम्मीदवारी का फैसला नीतीश कुमार करेंगे लेकिन चुनाव आयोग को भेजे जाने वाले पत्र पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का हस्ताक्षर होगा. मामला यही फंस रहा है.

नीतीश लेंगे फैसला: सूत्रों के अनुसार ललन सिंह हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं हैं. हालांकि नीतीश कुमार जब फैसला लेंगे तो ललन सिंह उसे अलग नहीं हो सकते हैं, यह तय है. आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के साथ वर्षों से काम कर रहे हैं. जब वे केंद्र में रेल मंत्री थे, उसी समय से साथ हैं. बिहार में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी वर्षों तक रहे. नीतीश कुमार पार्टी में अभी सबसे ज्यादा किसी पर विश्वास करते हैं तो वह आरसीपी सिंह ही हैं. दो-दो बार उन्हें राज्यसभा भेज चुके हैं. केंद्र में भी नीतीश कुमार की सहमति से ही मंत्री बने हैं. हालांकि ललन सिंह की तरफ से कहा गया कि आरसीपी सिंह अपने मन से राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मंत्री बनने का फैसला ले लिया.

देखें रिपोर्ट

आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से ही ललन सिंह के साथ विवाद बढ़ा. उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भी दोनों का विवाद खुलकर सामने आ गया था. पार्टी के अंदर भी कार्यक्रमों को लेकर दोनों नेता के बीच विवाद किसी से छिपा नहीं है. इसके बाद भी नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने का जोखिम भरा फैसला लेंगे, इसकी संभावना कम ही है.

आरसीपी का बीजेपी से बेहतर संबंध: क्योंकि इसके दो पक्ष हैं- एक तो आरसीपी सिंह जदयू में फिलहाल एकमात्र नेता हैं जिनके बीजेपी के साथ सबसे बेहतर संबंध हैं. बिहार में बीजेपी के साथ तालमेल से सरकार चल रही है. अरुण जेटली के निधन के बाद से नीतीश कुमार के लिए केंद्र में फील्डिंग करने वाला कोई नेता बीजेपी में नहीं है. ऐसे में आगे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने पर बीजेपी के साथ भी संबंध खराब हो सकता है क्योंकि आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से भी हटना पड़ेगा नहीं तो फिर बीजेपी को ही उन्हें राज्य सभा भेजना पड़ेगा.

JDU में टूट की आशंका: दूसरा, पार्टी संगठन में आरसीपी सिंह की पकड़ है. पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव संगठन से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका आरसीपी सिंह निभा चुके हैं. वे कुर्मी वर्ग से आते हैं. बिहार मंत्रिमंडल में भी कई मंत्री उनके चेहते माने जाते हैं जिसमें शिला मंडल, मदन सहनी का नाम लिया जाता है. कई वर्तमान विधायक और कई पूर्व विधायक भी आरसीपी सिंह के गुट के माने जाते हैं. पूर्व विधायक अभय कुशवाहा तो उनके समर्थन में खुलकर दिखते भी रहे हैं. ऐसे में पार्टी के टूटने का भी खतरा हो सकता है.
आरसीपी सिंह को जदयू में नीतीश कुमार के बाद दो नंबर का नेता माना जाता रहा है. जदयू की नीतियां बनाने में आरसीपी सिंह अहम भूमिका निभाते रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार के बड़े फैसलों में भी आरसीपी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती रही है. खास बात यह भी है कि वे नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के ही रहने वाले हैं.

1998 से नीतीश कुमार के साथ: नीतीश रेल मंत्री थे तो आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया था. 2005 में नीतीश मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को प्रधान सचिव बनाया. 2010 में आरसीपी सिंह ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. उसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें दो बार राज्यसभा भेजा. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेवारी दी और संगठन का कामकाज आरसीपी सिंह ही देखते रहे. 2020 में नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा तो आरसीपी सिंह को ही जिम्मेदारी मिली. आरसीपी सिंह का ऐसे तो विवादों से पुराना नाता रहा है. प्रशांत किशोर के साथ भी उनका विवाद हुआ था. आरसीपी सिंह के कारण ही प्रशांत किशोर ने जदयू छोड़ दिया.

'अगले महीने राज्यसभा के लिए होने वाले चुनाव में सबसे अधिक चर्चा आरसीपी सिंह को लेकर ही है. नीतीश कुमार क्या फैसला लेते हैं, इस पर सबकी नजर है. यदि नीतीश कुमार उन्हें पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया तो यह बड़ा पॉलिटिकल मुद्दा बन सकता है. नीतीश कुमार सुलझे हुए नेता हैं. कोई भी ऐसा फैसला नहीं लेंगे जिससे बीजेपी को विरोध का मैसेज जाए. कुशवाहा को लाकर जो एडवांटेज मिला है यदि आरसीपी सिंह को उम्मीदवार नहीं बनाया तो ज्यादा डैमेज कर देंगे. एक तरह से दो फार वाली स्थिति बन जाएगी. जदयू उम्मीदवार नहीं बनाया और यदि बीजेपी ने अपने लाभ के लिए उन्हें उम्मीदवार बना दिया तो नीतीश कुमार के लिए 2024 का चुनाव और मुश्किल भरा होगा और इसलिए नीतीश कुमार कोई भी ऐसा जोखिम नहीं उठाएंगे.'-अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

'सबकी निगाह जदयू के उम्मीदवार पर टिकी है. आरसीपी सिंह रिपीट होंगे या नीतीश कुमार उन्हें नहीं भेजने का जोखिम उठाएंगे. मेरा मानना है आरसीपी सिंह का राज्यसभा जाना तय है. नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह अलग नहीं हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. पिछले तीन दशक से आज जो कुछ आरसीपी सिंह हैं, प्रधान सचिव से लेकर राज्यसभा सदस्य और मंत्री, सब कुछ नीतीश कुमार कारण की बदौलत ही संभव हुआ है. ललन सिंह से मतभेद के कारण उनकी सदस्यता खतरे में है लेकिन नीतीश कुमार आखिर जोखिम क्यों उठाएंगे क्योंकि आरसीपी सिंह जदयू का ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.'-अरुण पांडे, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ.

'उम्मीदवार के चयन के लिए पार्टी में निर्धारित प्रक्रिया है. उसी प्रक्रिया के तहत तय होगी. जब तय हो जाएगा तो सब कुछ सूचना भी दी जाएगी.'- विजय चौधरी, मंत्री, बिहार सरकार और जदयू नेता.

'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस पर फैसला लेंगे. इससे बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है.'-अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता.

यह भी पढ़ें: जदयू में राज्यसभा उम्मीदवारों को लेकर सस्पेंस, आरसीपी सिंह का समाप्त हो रहा है कार्यकाल

यह भी पढ़ें: राज्यसभा चुनाव: मीसा भारती का टिकट पक्का, आरसीपी सिंह पर संशय !

ऐसी ही विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.