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बिहार में बालू खनन पर 'सुप्रीम अनुमति' से सरकार और आम लोगों को राहत

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में खनन पर लगी पूर्ण रोक के एनजीटी के आदेश में संशोधन कर दिया है जिससे राज्य में बालू खनन पर लगी रोक कुछ प्रतिबंधों के साथ समाप्त कर दी गई है. यह बिहार के लोगों के लिए राहत की खबर है. कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और सरकारी व निजी निर्माण गतिविधियों के लिए बालू जरूरी है.

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Published : Nov 12, 2021, 8:51 AM IST

पटना: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बिहार में खनन पर लगी पूर्ण रोक के एनजीटी (NGT) के आदेश में संशोधित कर दिया है. इससे बिहार में बालू खनन पर लगी रोक कुछ प्रतिबंधों के साथ समाप्त कर दी गई है. सुप्रीम कोर्ट से खनन विभाग (Mining Department) के जरिए बालू खनन की गतिविधियां संचालित करने की अनुमति राज्य सरकार और आम लोगों की काफी हद तक राहत की खबर है. रोक से एक ओर जहां राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा था, वहीं, बालू किल्लत से आम को निर्माण कार्यों के लिए काफी अधिक कीमत पर इसकी खरीद करनी पड़ती थी.

ये भी पढ़ें: CM नीतीश का बयान- 'नई पीढ़ी को जानना जरूरी कि कैसे मिली आजादी'

रोक से अवैध खनन की गतिविधियां काफी बढ़ गयी थीं. हालांकि अवैध खनन के खिलाफ सरकार की ओर कार्रवाई की जा रही थी लेकिन इस लगाम पाना काफी मुश्किल साबित हो रहा था. इस मामले की अगली सुनवाई 20 हफ्तों के बाद होगी. न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने यह आदेश बिहार सरकार की अपील पर गुरुवार को दिया. अदालत ने कहा कि खनन पर पूर्ण रोक लगने से अवैध खनन को बढ़ावा मिलता है. इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होता है. जब खनन को बैन किया जाता है इससे अवैध खनन में तेजी आती है. इससे रेत माफियाओं में भी टकराव होता है. क्षेत्र का अपराधीकरण होता है और लोगों की जान भी जाती है. कोर्ट ने भी कहा कि निर्माण कार्यों के लिए रेत की बहुत जरूरत है.

बता दें कि एनजीटी के आदेश से एक जुलाई से शुरू हुई बालू खनन पर पाबंदी 30 सितंबर को समाप्त होने के बाद भी प्रदेश में बालू का खनन शुरू नहीं हो पाया था. जिन आठ जिलों पटना, भोजपुर, गया, सारण, रोहतास, औरंगाबाद, जमुई और लखीसराय में बालू खनन की प्रक्रिया शुरू की गई थी, वहां भी एनजीटी के आदेश से राज्य सरकार ने एकबार फिर रोक लगा दी थी. एनजीटी ने 14 अक्तूबर 2020 को दिए आदेश में कहा था कि राज्य विशेषज्ञ संस्तुति प्राधिकार और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन समिति बालू खनन के लिए जिला सर्वे रिपोर्ट को मंजूरी नहीं देती है तब तक खनन नहीं किया जाएगा. इस आदेश को बिहार सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी.

शीर्ष अदालत ने आदेश में कहा कि बिहार में रेत खनन के लिए सभी जिला सर्वे रिपोर्ट (डीएसआर) ताजा रूप में तैयार की जाएंगी. यह रिपोर्ट एसडीएम, सिंचाई विभाग, प्रदूषण नियंत्रण कमेटी, वन विभाग, भूगर्भ विभाग या माइनिंग अधिकारी की सबडिविजनल कमेटी द्वारा तैयार की जाएंगी. रिपोर्ट छह हफ्ते में तैयार की जाएगी. इस के बाद जिला मजिस्ट्रेट संस्तुति के लिए उन्हें राज्य विशेषज्ञ संस्तुति कमेटी (एसईएसी) के पास भेजेंगे. कमेटी उसकी छह हफ्ते में जांच करेगी. उसके बाद उसे राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकार (एसईआईएए) के पास भेजा जाएगा. ये प्राधिकार जिला सर्वे रिपोर्ट को मंजूरी देने के लिए छह हफ्ते लेगा.

कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि बालू खनन के मुद्दे से निपटते समय पर्यावरण के सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ विकास के संतुलित तरीकों को लागू करना जरूरी है. साथ ही कहा कि इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और सरकारी व निजी निर्माण गतिविधियों के लिए बालू जरूरी है.

ये भी पढ़ें: आजादी को 'भीख' बताने पर मांझी ने लताड़ा, कहा- 'लानत है कंगना पर... अविलंब पद्म श्री वापस लेना चाहिए'

पटना: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बिहार में खनन पर लगी पूर्ण रोक के एनजीटी (NGT) के आदेश में संशोधित कर दिया है. इससे बिहार में बालू खनन पर लगी रोक कुछ प्रतिबंधों के साथ समाप्त कर दी गई है. सुप्रीम कोर्ट से खनन विभाग (Mining Department) के जरिए बालू खनन की गतिविधियां संचालित करने की अनुमति राज्य सरकार और आम लोगों की काफी हद तक राहत की खबर है. रोक से एक ओर जहां राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा था, वहीं, बालू किल्लत से आम को निर्माण कार्यों के लिए काफी अधिक कीमत पर इसकी खरीद करनी पड़ती थी.

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रोक से अवैध खनन की गतिविधियां काफी बढ़ गयी थीं. हालांकि अवैध खनन के खिलाफ सरकार की ओर कार्रवाई की जा रही थी लेकिन इस लगाम पाना काफी मुश्किल साबित हो रहा था. इस मामले की अगली सुनवाई 20 हफ्तों के बाद होगी. न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने यह आदेश बिहार सरकार की अपील पर गुरुवार को दिया. अदालत ने कहा कि खनन पर पूर्ण रोक लगने से अवैध खनन को बढ़ावा मिलता है. इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होता है. जब खनन को बैन किया जाता है इससे अवैध खनन में तेजी आती है. इससे रेत माफियाओं में भी टकराव होता है. क्षेत्र का अपराधीकरण होता है और लोगों की जान भी जाती है. कोर्ट ने भी कहा कि निर्माण कार्यों के लिए रेत की बहुत जरूरत है.

बता दें कि एनजीटी के आदेश से एक जुलाई से शुरू हुई बालू खनन पर पाबंदी 30 सितंबर को समाप्त होने के बाद भी प्रदेश में बालू का खनन शुरू नहीं हो पाया था. जिन आठ जिलों पटना, भोजपुर, गया, सारण, रोहतास, औरंगाबाद, जमुई और लखीसराय में बालू खनन की प्रक्रिया शुरू की गई थी, वहां भी एनजीटी के आदेश से राज्य सरकार ने एकबार फिर रोक लगा दी थी. एनजीटी ने 14 अक्तूबर 2020 को दिए आदेश में कहा था कि राज्य विशेषज्ञ संस्तुति प्राधिकार और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन समिति बालू खनन के लिए जिला सर्वे रिपोर्ट को मंजूरी नहीं देती है तब तक खनन नहीं किया जाएगा. इस आदेश को बिहार सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी.

शीर्ष अदालत ने आदेश में कहा कि बिहार में रेत खनन के लिए सभी जिला सर्वे रिपोर्ट (डीएसआर) ताजा रूप में तैयार की जाएंगी. यह रिपोर्ट एसडीएम, सिंचाई विभाग, प्रदूषण नियंत्रण कमेटी, वन विभाग, भूगर्भ विभाग या माइनिंग अधिकारी की सबडिविजनल कमेटी द्वारा तैयार की जाएंगी. रिपोर्ट छह हफ्ते में तैयार की जाएगी. इस के बाद जिला मजिस्ट्रेट संस्तुति के लिए उन्हें राज्य विशेषज्ञ संस्तुति कमेटी (एसईएसी) के पास भेजेंगे. कमेटी उसकी छह हफ्ते में जांच करेगी. उसके बाद उसे राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकार (एसईआईएए) के पास भेजा जाएगा. ये प्राधिकार जिला सर्वे रिपोर्ट को मंजूरी देने के लिए छह हफ्ते लेगा.

कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि बालू खनन के मुद्दे से निपटते समय पर्यावरण के सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ विकास के संतुलित तरीकों को लागू करना जरूरी है. साथ ही कहा कि इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और सरकारी व निजी निर्माण गतिविधियों के लिए बालू जरूरी है.

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