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जिसकी चर्चा SC से लेकर राजस्थान तक.. ऐसे में सवाल कितनी सफल है बिहार में नीतीश की शराबबंदी?

बिहार में पूर्ण शराबबंदी को कड़ाई से पालन (Prohibition Of Liquor In Bihar) करने के लिए कानून भी बनाए गए. 6 साल होने को हैं पर कई सवाल मुंह बाए खड़ी है. तो आइये आज हम आपको इस शराबबंदी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं...

Prohibition Of Liquor In Bihar
Prohibition Of Liquor In Bihar
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Published : Mar 9, 2022, 11:03 AM IST

पटना : बिहार में जब से शराबबंदी हुई (Nitish Kumar Prohibition Model) है, इसकी चर्चा खूब होती है. सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि इसकी बात दूसरे राज्यों में भी की जाती है. तभी तो राजस्थान से प्रतिनिधिमंडल पहुंचकर इसके बारे में जानकारी प्राप्त करता है. हालांकि इसको लेकर कई बार प्रश्न भी खड़े होते रहे हैं, कि क्या बिना किसी तैयारी और रणनीति को ध्यान में रखते हुए इसे लागू किया गया. तभी तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार में नीतीश की शराबबंदी कितनी सफल है? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसको कई पहलुओं पर जानने की जरूरत है. तो आइये इसको लेकर विस्तार में बताते हैं.

अप्रैल 2016 से शराबबंदी: दरअसल, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी (Liquor Ban In Bihar) लागू करने का फैसला लिया था. चुनाव में जीत हासिल करने और लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद कुमार ने महिलाओं से किया वादा निभाया और एक अप्रैल 2016 बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम के तहत बिहार में शराबबंदी लागू कर दी गई. 1 अप्रैल 2016 से लागू हुए कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी भी नशीले पदार्थ या शराब का निर्माण वितरण परिवहन संग्रह भंडार खरीद बिक्री या उपभोग नहीं कर सकता है.

महिलाओं ने शराबबंदी को लिया हाथों हाथ : 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने शराबबंदी (Alcohol Ban In Bihar) करने का वादा किया था. उनके इस वादे का असर ये हुआ था कि महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 60 के करीब हो गया था. कई इलाकों में तो 70 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने वोट दिया था. सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में बिहार में शराबंबदी का कानून आया. 1 अप्रैल 2016 को बिहार देश का 5वां ऐसा राज्य बन गया जहां शराब पीने और जमा करने पर प्रतिबंध लग गया.

शराबबंदी के फायदे: सरकार का मानना है कि राज्य में कुल 1 करोड़ 15,00,000 लोगों ने शराब की लत छोड़ी है. सरकार का दावा है कि शराबबंदी से पहले बिहार में सड़क दुर्घटनाएं ज्यादा होती थी और लोग मौत के मुंह में समा जाते थे लेकिन शराबबंदी लागू होने के बाद से बिहार में सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है. शराबबंदी कानून लागू होने से बिहार में लोग अमन-चैन महसूस कर रहे हैं. शराब पीकर लोग जहां सड़कों पर हंगामा नहीं करते, वहीं महिलाओं के लिए माहौल अनुकूल हुआ है और वह देर रात तक सड़कों पर भ्रमण कर सकती हैं.

महिलाओं के खिलाफ अपराध : बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी आने की बात कही जाती है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में जिस साल शराबबंदी लागू हुई थी, उस साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम मामले आए थे लेकिन उसके बाद के सालों में आंकड़ों में इजाफा हुआ. भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों में बिहार का प्रतिशत 2016 में घटकर 4 फीसदी हुआ था लेकिन फिर वह 2019 में बढ़कर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गया. इस हिसाब से भारत में बिहार राज्य महिलाओं के खिलाफ अपराध में आठवें पायदान पर है.

हर 10 मिनट में एक गिरफ्तारी : एक आंकड़े के मुताबिक राज्य में हर 1 मिनट में कम से कम 3 लीटर शराब की बरामदगी और 10 मिनट में एक की गिरफ्तारी की जाती है. राज्य में शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने के मामले में हजारों लोग जेल के अंदर हैं और लाखों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई जा चुकी है. बिहार के न्यायालय में दो लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. दो महीने पहले हुए शराबकांड के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सख्त निर्देश दिए थे कि जिस इलाके में शराब मिलेगी, उसके थानेदार तुरंत सस्पेंड होंगे. उन्होंने ये भी कहा था कि न शराब आने देंगे और न ही किसी को पीने देंगे.

शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत 2.03 लाख मामले सामने आए हैं. इनमें 3 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से 1.08 लाख मामलों का ट्रायल शुरू हो गया है. 94 हजार 639 मामलों का ट्रायल शुरू होना अब भी बाकी है. रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर तक 1 हजार 636 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है. इनमें से 1 हजार 19 मामलों में आरोपियों को सजा मिल चुकी है. जबकि, 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं.

बिहार में आ रही शराब की खेप : हालांकि, आंकड़े ये भी बताते हैं कि इतनी सख्ती के बाद भी बिहार में शराब पकड़ी गई है. 4 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया था कि 26 नवंबर से 2 जनवरी के बीच बिहार में 13,013 केस दर्ज किए गए हैं. इनमें 2.31 लाख लीटर देसी और 3.55 लाख लीटर विदेशी शराब जब्त की गई है. ये आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी वाले बिहार में अब भी शराब आसानी से पहुंच जा रही है.

बिहार में शराब की खपत महाराष्ट्र से ज्यादा: बिहार में शराबबंदी लागू है, लेकिन यहां शराब की खपत महाराष्ट्र से भी ज्यादा है. महाराष्ट्र में शराबबंदी नहीं है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत होती है. आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 15.5% पुरुष शराब पीते हैं. जबकि, महाराष्ट्र में शराब पीने वाले पुरुषों की तादात 13.9% है. हालांकि, 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों में काफी कमी आई है. 2015-16 के सर्वे के मुताबिक, बिहार में करीब 28 फीसदी पुरुष शराब पीते थे.

NFHS-5 के आंकड़े ये भी बताते हैं बिहार के ग्रामीण और शहरी इलाकों में महाराष्ट्र की तुलना में शराब पीने वालों की संख्या ज्यादा है. बिहार के ग्रामीण इलाकों में 15.8% और शहर में 14% पुरुष शराब पीते हैं. वहीं, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में 14.7% और शहरी इलाकों में 13% पुरुष शराब का सेवन करते हैं.

शराबबंदी के नुकसान: शराबबंदी कानून के कुछ नुकसान भी हुए हैं. शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू नहीं किए जाने की वजह से शराब माफियाओं का एक सिंडिकेट खड़ा हो गया और एक बड़ी संख्या में युवा शराब के अवैध कारोबार में लग गए. पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार बढ़ गया और पुलिसकर्मी अवैध कमाई में जुट गए. बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी निलंबित और बर्खास्त भी हुए. न्यायिक व्यवस्था के लिए शराबबंदी बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई. सरकार ने बगैर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप किए शराबबंदी कानून लागू किया, जिसका नतीजा हुआ कि आज बिहार के अलग-अलग न्यायालय में दो लाख से ज्यादा केस लंबित हैं. लंबित केसों की संख्या को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है.

नुकसान और उसकी भरपाई : जब बिहार में शराबबंदी लागू हुई थी, उस समय सरकार को शराबबंदी की वजह से 4000 करोड़ की क्षति हुई थी. उसके बाद यह आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ता गया. उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि सामाजिक नुकसान इससे भी कहीं बढ़कर है. हम अन्य माध्यमों से घाटे की भरपाई करेंगे. एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर रहे अजय झा के अनुसार यह सही है कि शराबबंदी के कारण सरकार को बड़ा नुकसान हुआ है. लेकिन शराबबंदी नहीं होने से समाज को जो नुकसान हो रहा था नीतीश कुमार ने संभवत: उसी को देखा होगा. जिसके बाद ये निर्णय लिया गया. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार को हर साल 5000 करोड़ से 6000 करोड़ के राजस्व का नुकसान हो रहा है. बिहार में आद्री ने जो अध्ययन करवाया था, उसमें पता चला कि यहां पर्यटकों पर बहुत ज्यादा असर शराबबंदी का नहीं पड़ा है. क्योंकि यहां धार्मिक रूप से अधिकांश पर्यटक आते हैं. अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि साड़ियों की बिक्री 1785 गुना बढ़ गई, पनीर और शहद की बिक्री में 200 से 300 गुना का इजाफा हुआ.

शराबबंदी कानून में सुधार की गुंजाइश: राजस्थान की टीम बिहार के दौरे पर (Team from Rajasthan met CM Nitish Kumar) है. 5 सदस्य टीम 5 दिनों तक बिहार में रहेगी और अलग-अलग अलग इलाकों का दौरा करेगी. बिहार सरकार के अलग-अलग विभागों के साथ भी टीम बैठक कर शराबबंदी से हुए नुकसान और भरपाई के बारे में जानकारी लेगी. पूजा छाबड़ा के नेतृत्व में टीम ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की. सीएम से मुलाकात के बाद पूजा छाबड़ा ने बताया कि हम बिहार के बाद गुजरात के शराबबंदी मॉडल को भी समझने जाएंगे. उन्होंने कहा कि बिहार का शराबबंदी मॉडल बेहतर है और राजस्थान में इस मॉडल को लागू किया जा सकता है. आपको बता दें कि 2019 में भी टीम बिहार के दौरे पर आई थी. हालांकि इस टीम को इस बारे में विशेष जानकारी नहीं है. यहां से मंथन करने के बाद रिपोर्ट राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सौंपी जाएगी.

जहरीली शराब से मौत: बिहार में शराबबंदी के बावजूद जिस तरह से जहरीली शराब पीने से लोगों की मौतें हो रही है, उसको लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष के साथ-साथ नीतीश कुमार की सहयोगी बीजेपी भी समीक्षा की मांग कर रही है. विपक्ष के कई नेता तो शराबबंदी कानून को वापस लेने की मांग कर चुके हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि बिहार में 2021 में जहरीली शराब के 13 मामले सामने आए, जिनमें कम से कम 66 लोगों की मौत हो गई. नवंबर में गोपालगंज और पश्चिमी चंपारण में जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की मौत हो गई थी. इससे पहले जुलाई में भी पश्चिमी चंपारण जिले में 12 लोगों की मौत हो गई थी.

पटना : बिहार में जब से शराबबंदी हुई (Nitish Kumar Prohibition Model) है, इसकी चर्चा खूब होती है. सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि इसकी बात दूसरे राज्यों में भी की जाती है. तभी तो राजस्थान से प्रतिनिधिमंडल पहुंचकर इसके बारे में जानकारी प्राप्त करता है. हालांकि इसको लेकर कई बार प्रश्न भी खड़े होते रहे हैं, कि क्या बिना किसी तैयारी और रणनीति को ध्यान में रखते हुए इसे लागू किया गया. तभी तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार में नीतीश की शराबबंदी कितनी सफल है? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसको कई पहलुओं पर जानने की जरूरत है. तो आइये इसको लेकर विस्तार में बताते हैं.

अप्रैल 2016 से शराबबंदी: दरअसल, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी (Liquor Ban In Bihar) लागू करने का फैसला लिया था. चुनाव में जीत हासिल करने और लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद कुमार ने महिलाओं से किया वादा निभाया और एक अप्रैल 2016 बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम के तहत बिहार में शराबबंदी लागू कर दी गई. 1 अप्रैल 2016 से लागू हुए कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी भी नशीले पदार्थ या शराब का निर्माण वितरण परिवहन संग्रह भंडार खरीद बिक्री या उपभोग नहीं कर सकता है.

महिलाओं ने शराबबंदी को लिया हाथों हाथ : 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने शराबबंदी (Alcohol Ban In Bihar) करने का वादा किया था. उनके इस वादे का असर ये हुआ था कि महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 60 के करीब हो गया था. कई इलाकों में तो 70 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने वोट दिया था. सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में बिहार में शराबंबदी का कानून आया. 1 अप्रैल 2016 को बिहार देश का 5वां ऐसा राज्य बन गया जहां शराब पीने और जमा करने पर प्रतिबंध लग गया.

शराबबंदी के फायदे: सरकार का मानना है कि राज्य में कुल 1 करोड़ 15,00,000 लोगों ने शराब की लत छोड़ी है. सरकार का दावा है कि शराबबंदी से पहले बिहार में सड़क दुर्घटनाएं ज्यादा होती थी और लोग मौत के मुंह में समा जाते थे लेकिन शराबबंदी लागू होने के बाद से बिहार में सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है. शराबबंदी कानून लागू होने से बिहार में लोग अमन-चैन महसूस कर रहे हैं. शराब पीकर लोग जहां सड़कों पर हंगामा नहीं करते, वहीं महिलाओं के लिए माहौल अनुकूल हुआ है और वह देर रात तक सड़कों पर भ्रमण कर सकती हैं.

महिलाओं के खिलाफ अपराध : बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी आने की बात कही जाती है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में जिस साल शराबबंदी लागू हुई थी, उस साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम मामले आए थे लेकिन उसके बाद के सालों में आंकड़ों में इजाफा हुआ. भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों में बिहार का प्रतिशत 2016 में घटकर 4 फीसदी हुआ था लेकिन फिर वह 2019 में बढ़कर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गया. इस हिसाब से भारत में बिहार राज्य महिलाओं के खिलाफ अपराध में आठवें पायदान पर है.

हर 10 मिनट में एक गिरफ्तारी : एक आंकड़े के मुताबिक राज्य में हर 1 मिनट में कम से कम 3 लीटर शराब की बरामदगी और 10 मिनट में एक की गिरफ्तारी की जाती है. राज्य में शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने के मामले में हजारों लोग जेल के अंदर हैं और लाखों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई जा चुकी है. बिहार के न्यायालय में दो लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. दो महीने पहले हुए शराबकांड के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सख्त निर्देश दिए थे कि जिस इलाके में शराब मिलेगी, उसके थानेदार तुरंत सस्पेंड होंगे. उन्होंने ये भी कहा था कि न शराब आने देंगे और न ही किसी को पीने देंगे.

शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत 2.03 लाख मामले सामने आए हैं. इनमें 3 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से 1.08 लाख मामलों का ट्रायल शुरू हो गया है. 94 हजार 639 मामलों का ट्रायल शुरू होना अब भी बाकी है. रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर तक 1 हजार 636 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है. इनमें से 1 हजार 19 मामलों में आरोपियों को सजा मिल चुकी है. जबकि, 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं.

बिहार में आ रही शराब की खेप : हालांकि, आंकड़े ये भी बताते हैं कि इतनी सख्ती के बाद भी बिहार में शराब पकड़ी गई है. 4 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया था कि 26 नवंबर से 2 जनवरी के बीच बिहार में 13,013 केस दर्ज किए गए हैं. इनमें 2.31 लाख लीटर देसी और 3.55 लाख लीटर विदेशी शराब जब्त की गई है. ये आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी वाले बिहार में अब भी शराब आसानी से पहुंच जा रही है.

बिहार में शराब की खपत महाराष्ट्र से ज्यादा: बिहार में शराबबंदी लागू है, लेकिन यहां शराब की खपत महाराष्ट्र से भी ज्यादा है. महाराष्ट्र में शराबबंदी नहीं है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत होती है. आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 15.5% पुरुष शराब पीते हैं. जबकि, महाराष्ट्र में शराब पीने वाले पुरुषों की तादात 13.9% है. हालांकि, 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों में काफी कमी आई है. 2015-16 के सर्वे के मुताबिक, बिहार में करीब 28 फीसदी पुरुष शराब पीते थे.

NFHS-5 के आंकड़े ये भी बताते हैं बिहार के ग्रामीण और शहरी इलाकों में महाराष्ट्र की तुलना में शराब पीने वालों की संख्या ज्यादा है. बिहार के ग्रामीण इलाकों में 15.8% और शहर में 14% पुरुष शराब पीते हैं. वहीं, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में 14.7% और शहरी इलाकों में 13% पुरुष शराब का सेवन करते हैं.

शराबबंदी के नुकसान: शराबबंदी कानून के कुछ नुकसान भी हुए हैं. शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू नहीं किए जाने की वजह से शराब माफियाओं का एक सिंडिकेट खड़ा हो गया और एक बड़ी संख्या में युवा शराब के अवैध कारोबार में लग गए. पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार बढ़ गया और पुलिसकर्मी अवैध कमाई में जुट गए. बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी निलंबित और बर्खास्त भी हुए. न्यायिक व्यवस्था के लिए शराबबंदी बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई. सरकार ने बगैर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप किए शराबबंदी कानून लागू किया, जिसका नतीजा हुआ कि आज बिहार के अलग-अलग न्यायालय में दो लाख से ज्यादा केस लंबित हैं. लंबित केसों की संख्या को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है.

नुकसान और उसकी भरपाई : जब बिहार में शराबबंदी लागू हुई थी, उस समय सरकार को शराबबंदी की वजह से 4000 करोड़ की क्षति हुई थी. उसके बाद यह आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ता गया. उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि सामाजिक नुकसान इससे भी कहीं बढ़कर है. हम अन्य माध्यमों से घाटे की भरपाई करेंगे. एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर रहे अजय झा के अनुसार यह सही है कि शराबबंदी के कारण सरकार को बड़ा नुकसान हुआ है. लेकिन शराबबंदी नहीं होने से समाज को जो नुकसान हो रहा था नीतीश कुमार ने संभवत: उसी को देखा होगा. जिसके बाद ये निर्णय लिया गया. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार को हर साल 5000 करोड़ से 6000 करोड़ के राजस्व का नुकसान हो रहा है. बिहार में आद्री ने जो अध्ययन करवाया था, उसमें पता चला कि यहां पर्यटकों पर बहुत ज्यादा असर शराबबंदी का नहीं पड़ा है. क्योंकि यहां धार्मिक रूप से अधिकांश पर्यटक आते हैं. अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि साड़ियों की बिक्री 1785 गुना बढ़ गई, पनीर और शहद की बिक्री में 200 से 300 गुना का इजाफा हुआ.

शराबबंदी कानून में सुधार की गुंजाइश: राजस्थान की टीम बिहार के दौरे पर (Team from Rajasthan met CM Nitish Kumar) है. 5 सदस्य टीम 5 दिनों तक बिहार में रहेगी और अलग-अलग अलग इलाकों का दौरा करेगी. बिहार सरकार के अलग-अलग विभागों के साथ भी टीम बैठक कर शराबबंदी से हुए नुकसान और भरपाई के बारे में जानकारी लेगी. पूजा छाबड़ा के नेतृत्व में टीम ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की. सीएम से मुलाकात के बाद पूजा छाबड़ा ने बताया कि हम बिहार के बाद गुजरात के शराबबंदी मॉडल को भी समझने जाएंगे. उन्होंने कहा कि बिहार का शराबबंदी मॉडल बेहतर है और राजस्थान में इस मॉडल को लागू किया जा सकता है. आपको बता दें कि 2019 में भी टीम बिहार के दौरे पर आई थी. हालांकि इस टीम को इस बारे में विशेष जानकारी नहीं है. यहां से मंथन करने के बाद रिपोर्ट राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सौंपी जाएगी.

जहरीली शराब से मौत: बिहार में शराबबंदी के बावजूद जिस तरह से जहरीली शराब पीने से लोगों की मौतें हो रही है, उसको लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष के साथ-साथ नीतीश कुमार की सहयोगी बीजेपी भी समीक्षा की मांग कर रही है. विपक्ष के कई नेता तो शराबबंदी कानून को वापस लेने की मांग कर चुके हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि बिहार में 2021 में जहरीली शराब के 13 मामले सामने आए, जिनमें कम से कम 66 लोगों की मौत हो गई. नवंबर में गोपालगंज और पश्चिमी चंपारण में जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की मौत हो गई थी. इससे पहले जुलाई में भी पश्चिमी चंपारण जिले में 12 लोगों की मौत हो गई थी.

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