पटना: बिहार सरकार ने हाल ही में एक नीतिगत फैसला लिया है. इसके तहत 50 साल से ऊपर के सरकारी कर्मियों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश जारी किया गया है. इसके तहत वैसे कर्मचारी आएंगे जिनके कार्य से सरकार संतुष्ट नहीं है. सरकार के इस फैसले पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं. विपक्ष ने विरोध जताया है और विशेषज्ञ भी इसे संवेदनहीन फैसला करार दे रहे हैं.
क्या है पूरा मामला
दरअसल बिहार सरकार ने अपने सरकारी सेवकों के काम की समीक्षा के लिए नीति का निर्धारण किया है. सरकार अब अपने 50 साल की उम्र से अधिक के कर्मियों की सत्यनिष्ठा के साथ कार्य दक्षता और उनके आचरणों पर नजर रखेगी. इस दौरान कोई कमी पाए जाने पर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी.
कर्मियों के कार्यक्रमों की समीक्षा
सरकारी कर्मचारियों के क्रियाकलाप पर नजर रखने के लिए सरकार ने विभिन्न स्तर पर अलग-अलग समितियों का गठन भी कर दिया है. हर साल जून और दिसंबर, दो बार कर्मचारियों की समीक्षा होगी. सामान्य प्रशासन विभाग में सरकारी सेवकों में 50 वर्ष से ऊपर के समूह क, ख, ग और अवर्गीकृत सभी समूह के कर्मियों के कार्यक्रमों की समीक्षा होगी.
आरजेडी का तंज
सरकार के इस फैसले पर विपक्ष के नेताओं ने सवाल खड़े किए हैं. आरजेडी के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जब सरकार बड़ी संख्या में रिटायर कर्मियों को फिर से संविदा पर बहाल कर रही है तो फिर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को हटाने का क्या मतलब. एक तरफ लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा, बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार बैठे हैं और दूसरी तरफ जिनके पास नौकरी है सरकार उन्हें हटा रही है.
रालोसपा का सवाल
रालोसपा के मुख्य प्रवक्ता अभिषेक झा ने भी सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं. अभिषेक झा ने कहा कि आखिर इस बात का क्या मतलब कि जिनके पास नौकरी है, उन्हें आप हटा रहे हैं. रिटायर कर्मियों की सेवा ले रहे हैं और युवाओं को रोजगार नहीं दे रहे.
विवादास्पद फैसला
सरकार के इस फैसले पर सवाल उठना लाजिमी है. दरअसल बिहार में कई वर्षों से बड़ी संख्या में ग्रुप सी और डी के पद खाली पड़े हैं. अब तक कर्मचारी चयन आयोग की तरफ से नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है. इसकी वजह से सरकार हर साल बड़ी संख्या में रिटायर कर्मचारियों को नियोजन पर रखकर उनसे काम ले रही है.
बेहद हास्यास्पद फैसला-विशेषज्ञ
वहीं दूसरी तरफ नियमित बहाली नहीं होने से बेरोजगारी बढ़ रही है. इस बारे में आर्थिक सामाजिक विश्लेषक प्रोफेसर अजय कुमार झा ने कहा कि यह बहुत हास्यास्पद है. सरकार का यह फैसला अत्यंत गंभीर सवाल खड़े करता है. सरकार कैसे इस तरह के निर्णय ले सकती है. 60 वर्ष के बदले 50 साल में ही लोगों को जबरन रिटायर कर देने का फैसला लिया गया है, इससे असंतोष की भावना पनपेगी.
कर्मियों के भविष्य पर सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि जो कर्मी नौकरी कर रहे हैं उनके भविष्य पर भी गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे. उनके लिए परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार को नई नियुक्तियां करनी चाहिए और युवाओं को रोजगार देना चाहिए ना की किसी का रोजगार छीन कर रिटायर कर्मियों का नियोजन करना चाहिए.
'फैसला वापस ले सरकार'
बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यालय सचिव मनोज कुमार ने कहा कि इस फैसले से किसी भी विभाग में अधिकारी अपनी मनमानी पर उतर आएंगे. अगर उनके तरीके से कर्मचारी काम नहीं करेंगे तो वह बदले में उनकी नौकरी छीन लेंगे. सरकार का यह निर्णय बहुत गलत है. अनिवार्य सेवानिवृत्ति का ये फैसला सरकार को तुरंत वापस लेना चाहिए.