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अगस्त क्रांति विशेष: जरा याद इन्हें भी कर लो...

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Published : Aug 8, 2019, 11:05 PM IST

अगस्त क्रांति के दिन बिहार अपने अमर सपूतों को फिर याद कर रहा है. भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल बिहार के उन्हीं सात शहीद युवाओं की अमर दास्तां पटना के शहीद स्मारक में देखने को मिलती है.

बिहार के सात शहीद

पटना: 8 अगस्त के दिन भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई. अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने प्रस्ताव पारित किया था जिसे भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा गया. इस आंदोलन ने आजादी की लड़ाई को उस मुकाम तक पहुंचाया जिसके कारण 1947 में देश आजाद हुआ. इस लड़ाई में बिहार के वीर सपूतों का भी अहम योगदान रहा. सचिवालय पर तिरंगा फहराने के लिए बिहार के सात युवा छात्र शहीद हो गए थे. अगस्त क्रांति के दिन बिहार अपने अमर सपूतों को फिर याद कर रहा है.

आजादी की कहानी में बिहार का अहम योगदान
देश की आजादी की कहानी में बिहार के वीर सपूतों का नाम भी प्रमुखता से लिया जाएगा. बिहार विधानमंडल के सामने शहीदों का स्मारक आजादी की लड़ाई में बिहार के योगदान का जीता जागता सबूत है. 1942 में 8 अगस्त के दिन ही अगस्त क्रांति की शुरुआत हुई थी. 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा महात्मा गांधी ने बुलंद किया था.

Seven Martyrs of Bihar, अगस्त क्रांति
सात शहीद स्मारक

शीश झुकाते हैं लोग
बिहार के ये 7 नवयुवक भी उससे प्रभवित हुए. इन युवकों में सारन के उमाकांत प्रसाद सिंह, पटना के रामानंद सिंह, भागलपुर के सतीश प्रसाद झा, गया के जगपति कुमार, सिलहट के देवी प्रसाद चौधरी, सारण के राजेंद्र सिंह और पटना के राम गोविंद सिंह शामिल थे. पटना स्थित बिहार सचिवालय पर तिरंगा लहराने जा रहे इन वीर सपूतों को अंग्रेजों ने गोली मार दी. एक के बाद एक इन सातों सपूतों ने दम तोड़ दिया. इन 7 सपूतों की वीर गाथा कहती इनकी प्रतिमाएं आज भी बिहार के लोगों को शहीद स्मारक पर शीश झुकाने को मजबूर कर देती हैं.

  • अगस्त क्रांति दिवस के मौके पर RJD चलायेगी सदस्यता अभियान, 1 करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य@RJD #Patna #Membership #campaign

    https://t.co/CbTx65eLLP

    — ETV Bharat Bihar (@etvbharatbihar) August 8, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अगस्त क्रांति सोची-समझी रणनीति का हिस्सा
वरिष्ठ शिक्षाविद और समाजशास्त्री डी एम दिवाकर बताते हैं कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था. बड़े नेताओं ने ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की जिसमें उनकी गिरफ्तारी के बाद भी दूसरी पंक्ति के नेता और अन्य लोग आंदोलन को जिंदा रखने के लिए मजबूती से खड़े रहे.

Seven Martyrs of Bihar, अगस्त क्रांति
शहीद स्मारक पर उकेरी गई सात शहीदों की कहानी

ब्रिटिश हुकूमत की हिल गई जड़ें
मशहूर शिक्षक और इतिहास के जानकार डॉक्टर एम रहमान कहते हैं कि यह एक ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दी. भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा. इस आंदोलन की घोषणा से बिहार का जनमानस आंदोलन में शामिल हुआ. आंदोलन में अन्य प्रांतों की अपेक्षा बिहार का योगदान अभूतपूर्व और सर्वोपरि रहा.

अमर हो गई दास्तां
भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों हिंदुस्तानी शामिल थे. इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में आकर्षित किया. उन्होंने अपना कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया. उनमें से ही बिहार के सात शहीद युवा भी थे जिनकी अमर दास्तां पटना के शहीद स्मारक में देखने को मिलती है.

अगस्त क्रांति के दिन बिहार अपने अमर सपूतों को फिर याद कर रहा

पटना: 8 अगस्त के दिन भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई. अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने प्रस्ताव पारित किया था जिसे भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा गया. इस आंदोलन ने आजादी की लड़ाई को उस मुकाम तक पहुंचाया जिसके कारण 1947 में देश आजाद हुआ. इस लड़ाई में बिहार के वीर सपूतों का भी अहम योगदान रहा. सचिवालय पर तिरंगा फहराने के लिए बिहार के सात युवा छात्र शहीद हो गए थे. अगस्त क्रांति के दिन बिहार अपने अमर सपूतों को फिर याद कर रहा है.

आजादी की कहानी में बिहार का अहम योगदान
देश की आजादी की कहानी में बिहार के वीर सपूतों का नाम भी प्रमुखता से लिया जाएगा. बिहार विधानमंडल के सामने शहीदों का स्मारक आजादी की लड़ाई में बिहार के योगदान का जीता जागता सबूत है. 1942 में 8 अगस्त के दिन ही अगस्त क्रांति की शुरुआत हुई थी. 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा महात्मा गांधी ने बुलंद किया था.

Seven Martyrs of Bihar, अगस्त क्रांति
सात शहीद स्मारक

शीश झुकाते हैं लोग
बिहार के ये 7 नवयुवक भी उससे प्रभवित हुए. इन युवकों में सारन के उमाकांत प्रसाद सिंह, पटना के रामानंद सिंह, भागलपुर के सतीश प्रसाद झा, गया के जगपति कुमार, सिलहट के देवी प्रसाद चौधरी, सारण के राजेंद्र सिंह और पटना के राम गोविंद सिंह शामिल थे. पटना स्थित बिहार सचिवालय पर तिरंगा लहराने जा रहे इन वीर सपूतों को अंग्रेजों ने गोली मार दी. एक के बाद एक इन सातों सपूतों ने दम तोड़ दिया. इन 7 सपूतों की वीर गाथा कहती इनकी प्रतिमाएं आज भी बिहार के लोगों को शहीद स्मारक पर शीश झुकाने को मजबूर कर देती हैं.

  • अगस्त क्रांति दिवस के मौके पर RJD चलायेगी सदस्यता अभियान, 1 करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य@RJD #Patna #Membership #campaign

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    — ETV Bharat Bihar (@etvbharatbihar) August 8, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अगस्त क्रांति सोची-समझी रणनीति का हिस्सा
वरिष्ठ शिक्षाविद और समाजशास्त्री डी एम दिवाकर बताते हैं कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था. बड़े नेताओं ने ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की जिसमें उनकी गिरफ्तारी के बाद भी दूसरी पंक्ति के नेता और अन्य लोग आंदोलन को जिंदा रखने के लिए मजबूती से खड़े रहे.

Seven Martyrs of Bihar, अगस्त क्रांति
शहीद स्मारक पर उकेरी गई सात शहीदों की कहानी

ब्रिटिश हुकूमत की हिल गई जड़ें
मशहूर शिक्षक और इतिहास के जानकार डॉक्टर एम रहमान कहते हैं कि यह एक ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दी. भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा. इस आंदोलन की घोषणा से बिहार का जनमानस आंदोलन में शामिल हुआ. आंदोलन में अन्य प्रांतों की अपेक्षा बिहार का योगदान अभूतपूर्व और सर्वोपरि रहा.

अमर हो गई दास्तां
भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों हिंदुस्तानी शामिल थे. इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में आकर्षित किया. उन्होंने अपना कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया. उनमें से ही बिहार के सात शहीद युवा भी थे जिनकी अमर दास्तां पटना के शहीद स्मारक में देखने को मिलती है.

अगस्त क्रांति के दिन बिहार अपने अमर सपूतों को फिर याद कर रहा
Intro:8 अगस्त यानी वो दिन जब भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। मुंबई के गवालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने प्रस्ताव पारित किया था जिसे भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा गया। इस आंदोलन ने आजादी की लड़ाई को उस मुकाम तक पहुंचाया जिसके कारण 1947 में देश आजाद हो गया। इस लड़ाई में बिहार के वीर सपूतों का भी अहम योगदान था। पटना से अमित वर्मा की एक खास रिपोर्ट


Body:देश की आजादी की कहानी जब भी कहीं जाएगी उसमें बिहार के वीर सपूतों का नाम भी प्रमुखता से लिया जाएगा बिहार विधानमंडल के सामने शहीदों का यह स्मारक आजादी की लड़ाई में बिहार के योगदान का जीता जागता सबूत है।
1942 में 8 अगस्त के दिन है अगस्त क्रांति अभियान की शुरुआत हुई थी भारत छोड़ो आंदोलन का नारा गांधी जी ने बुलंद किया था और देशवासियों को कहा था, यही वक्त है करो या मरो। आंदोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में शामिल तमाम बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए । उसके बाद मोर्चा संभाला तमाम दूसरी पंक्ति के नेताओं ने और आम लोगों ने। उन लोगों में बिहार के यह सात नवयुवक शामिल थे। ये सात युवक जिनमें सारन के उमाकांत प्रसाद सिंह, पटना के रामानंद सिंह, भागलपुर के सतीश प्रसाद झा, गया के जगपति कुमार, सिलहट के देवी प्रसाद चौधरी, सारण के राजेंद्र सिंह और पटना के राम गोविंद सिंह शामिल थे। पटना स्थित बिहार सचिवालय पर तिरंगा लहराने जा रहे इन वीर सपूतों को अंग्रेजों ने गोली मार दी। एक के बाद एक इन सातों सपूतों ने दम तोड़ दिया। इन 7 सपूतों की वीर गाथा कहती इनकी प्रतिमाएं आज भी बिहार के लोगों को शहीद स्मारक पर शीश झुकाने को मजबूर कर देती हैं।
इस बारे में वरिष्ठ शिक्षाविद और समाजशास्त्री डी एम दिवाकर बताते हैं कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, जिसमें बड़े नेताओं ने ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की कि उनकी गिरफ्तारी होने के बाद भी दूसरी पंक्ति के नेता और अन्य लोग आंदोलन को जिंदा रखने के लिए मजबूती से खड़े रहे।
मशहूर शिक्षक और इतिहास के जानकार डॉक्टर एम रहमान कहते हैं कि यह एक ऐसा आंदोलन था जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दी। भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस आंदोलन की घोषणा से बिहार का जनमानस आंदोलन में शामिल हुआ। आंदोलन में अन्य प्रांतों की अपेक्षा बिहार का योगदान अभूतपूर्व और सर्वोपरि रहा।
डॉक्टर रहमान हैं कि 31 जुलाई 1942 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार करने के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी ने तैयार रहने को कहा। लेकिन अपने प्रिय नेता की गिरफ्तारी की खबर सुनकर अनेक लोग सदाकत आश्रम में एकत्र हो गए। अंग्रेजों भारत छोड़ो, गांधी जी की जय, राजेंद्र बाबू की जय का नारा लगाते हुए यह लोग बांकीपुर जेल तक गए। लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। 8 अगस्त 1942 की शाम को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नाम दिया गया। गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन देशभर के युवा कार्यकर्ता हड़ताल और तोड़फोड़ की कार्रवाई के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। अंग्रेजों ने सख्त रवैया अपनाया फिर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।
भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों हिंदुस्तानी शामिल थे। इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज को छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया और उनमें से ही वह सात युवा भी थे जिनकी अमर दास्तां पटना के शहीद स्मारक में देखने को मिलती है।


Conclusion:डॉक्टर डीएम दिवाकर समाजशास्त्री
डॉक्टर एम रहमान इतिहास के जानकार
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