पटना: गरीब मरीजों को बेहतरीन इलाज की सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Scheme) जैसी महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत की. जिसके तहत आयुष्मान कार्ड धारक मरीजों का साल में 5 लाख तक का इलाज निशुल्क होना है. लेकिन प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच (PMCH) में आयुष्मान योजना का सही क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है. इलाज में उनका हजारों रुपए खर्च हो रहे हैं.
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पीएमसीएच के हथवा वार्ड में वैशाली के शंकर महतो पिछले 5 दिनों से एडमिट हैं. मगर आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद अस्पताल से इस कार्ड का लाभ नहीं दिया जा रहा है. परिजनों को उनके लिए दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ रही है. अब तक 12 हजार रुपए से अधिक का खर्च शंकर महतो का हो चुका है. उनके परिजन आयुष्मान कार्ड लेकर पीएमसीएच में लगातार भटक रहे हैं. मगर उन्हें इस कार्ड का लाभ नहीं दिया जा रहा है.
'पिता को डायबिटीज है. कुछ दिनों पहले उनके दाएं तरफ पैरालिसिस का अटैक आ गया. पिता बोलने में असक्षम हो गए. ऐसे में उन्हें इलाज के लिए पीएमसीएच लेकर आए. आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद पीएमसीएच में इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. अस्पताल में डॉक्टरों ने जो दवा लिखी, वह अस्पताल में नहीं मिली. इलाज के लिए कर्ज लेकर बाहर से दवाइयां खरीद रहे हैं.' -रितेश कुमार, शंकर महतो के पुत्र
'आयुष्मान कार्ड लेकर जब डॉक्टरों को दिखाई तो बताया गया कि इस कार्ड को आयुष्मान कार्ड के काउंटर पर दिखाना होगा. जब इस कार्ड को लेकर वहां गई तो लगातार तीन दिन दौड़ाया गया. लेकिन काम नहीं हुआ. बताया गया कि जो आयुष्मान कार्ड का डाटा अपलोड करते हैं, वह कर्मचारी अभी उपलब्ध नहीं है. डॉक्टरों ने जो जांच लिखा है, वह भी अस्पताल में नहीं हुई. रुपए खर्च कर बाहर से जांच करानी पड़ रही है. इसके अलावा जो जांच पीएमसीएच में भी हुए हैं उनके लिए भी खर्च करने पड़े हैं.' -शांति देवी, शंकर महतो की पत्नी
शांति देवी ने बताया कि अस्पताल में 2 एमएल के सिरिंज के अलावा कुछ उपलब्ध नहीं हो रहा है. 5ml और 10ml काशी रेंज भी बाहर से खरीदना पड़ रहा है. इसके अलावा पानी चढ़ाने के लिए भी पानी का बोतल बाहर से खरीदना पड़ रहा है.
शांति देवी ने एक झोला दवा निकाल कर दिखाया कि सभी दवाइयां उन्हें बाहर से खरीदनी पड़ रही है. इलाज में काफी खर्च हो रहा है. उनके पति की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें किसी तरह पैसे की व्यवस्था कर दवाइयां खरीदनी पड़ रही है. जांच भी बाहर से कराना पड़ रहा है.
इस मसले पर जब हमने अस्पताल के अधिकारियों से बात की तो उनका कहना है कि इस मसले पर वह कुछ भी नहीं बोलेंगे. सब कुछ जानकारी देने के लिए अधीक्षक ही अधिकृत हैं. जब हमने अधीक्षक से इस मसले पर संपर्क करने की कोशिश की तो अधीक्षक कार्यालय से नदारद दिखे. उन्होंने कॉल भी उठाना मुनासिब ना समझा.
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