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मधुमक्खियों के डंक ने निशांत को बनाया करोड़पति.. हर ग्राम की कीमत 8 से 12 हजार

पटना के निशांत ने डंक में राहत खोज निकाला है. एक तरफ मधुमक्खियों के डंक से बंपर कमाई (Bumper earnings from bee stings) कर रहे हैं वहीं, अन्य कई लोगों को रोजगार दिया है. मधुमक्खियों के डंक गठिया रोग को दूर करने में विशेष रूप से प्रभावशाली है. इसके अलावा कई तरह की स्किन डिजीज, अर्थराइटिस को भी दूर करने में इस डंक का क्लिनिकल उपयोग किया जा रहा है.

Bumper earnings from bee stings
Bumper earnings from bee stings
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Published : May 27, 2022, 10:25 PM IST

Updated : May 27, 2022, 11:05 PM IST

पटना: मधुमक्खियों को मनुष्य का दोस्त माना जाता है. इनसे प्राप्त होने वाला शहद अमृत समान माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन मधुमक्खियों के डंक को भी अब अमृत के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. सुनने में यह भले ही थोड़ा अटपटा लगे, लेकिन यह सोलह आने सच है. दरअसल, राजधानी पटना के युवक निशांत (Patna Nishant) ने इन मधुमक्खियों के डंक को कुछ इस तरह से उपयोग (Huge Income From Bee stings) करना शुरू किया है कि अब उसकी चर्चा हो रही है.

ये भी पढ़ें: 'इंटीग्रेटेड फार्मिंग' से सालाना 10 लाख की कमाई कर रहे गोपालगंज के मनीष तिवारी, 20 लोगों को दिया रोजगार

दर्द ही बन गई दवा: दरअसल निशांत ने मधुमक्खियों के डंक का बिजनेस (Bee Sting Business) शुरू किया है. ऐसे करने वाले वह सूबे के सम्भवतः पहले व्यक्ति हैं. इन डंक की खासियत यह है कि इसका इस्तेमाल बीमारियों को दूर करने में किया जा रहा है. निशांत बताते हैं, 'यह डंक गठिया रोग को दूर करने में विशेष रूप से प्रभावशाली है. इसके अलावा कई तरह की स्किन डिजीज, अर्थराइटिस को भी दूर करने में इस डंक का क्लिनिकल उपयोग किया जा रहा है.

यूरोपियन कंट्री में डिमांड: निशांत बताते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है. वस्तुतः आयुर्वेद में इसका जिक्र आता है लेकिन यह अपने देश उस तरीके से प्रचलित नहीं हो पाया, जैसा होना चाहिए. निशांत बताते हैं कि मेडिसिन के रूप में डंक को एकत्र करने का कार्य अपने देश में अभी शुरुआती दौर में है लेकिन यूरोपीय देशों व अमेरिका में यह पहले से ही प्रचलित है. इन डंक की अच्छी खासी कीमत भी है.

मैकेनिकल इंजीनियरिंग हैं निशांत: दरअसल, डंक निकालने में महारत हासिल कर चुके निशांत पेशेवर रूप से ऐसे काम नहीं करते थे. जर्मनी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले निशांत कहते हैं, जब मैं वहां था तो इस कार्य को देखा. वहां के लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी लेकिन मेरे लिए यह एकदम नया था। वह बताते हैं कि जब कोरोना का प्रकोप हुआ तो लॉकडाउन में घर आना पड़ा. ये बात मेरे दिमाग में पहले से थी. फिर मैंने इसे शुरू करने की सोची. इसके लिए मैंने वैसे जगहों पर सम्पर्क करने के कोशिश की, जहां पर मधुमक्खियों का पालन किया जाता है. ऐसे लोगों से मुलाकात की.

'इस डंक को निकालने में जितनी मशक्कत करनी पड़ती है, उतना ही महंगा ये डंक विष बिकता है. पिछले दो साल में एक किलो डंक विष की मार्केटिंग कर एक करोड़ 20 लाख रुपये कमा चुके हैं. इस डंक के बिजनेस के दम पर निशांत पिछले दो साल में साढ़े तीन करोड़ की कंपनी बना चुके हैं. इस डंक विष की कीमत 8 से 12 हजार रुपए प्रति ग्राम है.'-निशांत, मधुमक्खियों के डंक का बिजनेस करने वाले.

देखें विशेष रिपोर्ट
विदेशी मशीन से निकलता है डंक: निशांत बताते हैं, इन डंक को निकालने के लिए विशेष प्रकार के मशीन की जरुरत होती है. मेरे पास मेड इन जर्मनी मशीन है. इस मशीन को मधुमक्खियों के बॉक्स के ऊपर लगा दिया जाता है. निशांत के पास जो मशीन है, उसे 10 बॉक्स के ऊपर लगाया जाता है. इस मशीन पर जब मधुमक्खियां बैठती हैं तब इन मधुमक्खियों को 12 वोल्ट तक बिजली का झटका दिया जाता है. जिससे वह गुस्सा हो जाती हैं और डंक विष छोड़ती हैं. इस प्लेट की मदद से 10 बॉक्स से एक बार में ढाई से तीन ग्राम डंक विष निकाला जाता है. वह कहते हैं पहले जो इंडियन मशीन होती थी तो उसे जब 100 बॉक्स पर लगाया जाता था तो उससे एक झटके के बाद महज दो से तीन ग्राम के करीब डंक विष निकलता था.

डंक में पाया जाने वाला विशेष पदार्थ अलग: निशांत कहते हैं, दरअसल इन डंक में एक विशेष पदार्थ होता है, जिसे एपीटॉक्सिन नामक जहर होता है. यह गठिया रोग के इलाज में काफी कारगर होता है. इसके अलावा इस एपिटोक्सिन का उपयोग स्किन डिजीज व अर्थराइटिस को भी खत्म करने में किया जाता है.

'अपने देश में अभी यह नया प्रोडक्ट है और कुछ लोग अभी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी स्विट्जरलैंड इस पर बहुत ज्यादा रिसर्च कर रहा है. उनके रिसर्च के अनुसार यह बातें सामने आई हैं कि गठिया की बीमारी में यह विशेष रोल अदा कर सकता है. गठिया की बीमारी में यह बहुत ज्यादा फायदेमंद भी है. यह अच्छी बात है. अगर की ओर से ऐसी रिपोर्ट आ जाए कि गठिया के रोग को खत्म करने में इसका इस्तेमाल होता है तो आने वाले वक्त में यह एक बहुत अच्छी दवा साबित हो सकती है.'-डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार, विशेषज्ञ.

मधुमक्खी से बना रहे अन्य उत्पाद: निशांत केवल इतना ही नहीं बल्कि मधुमक्खियों से पराग, परपोलिस, रॉयल जेली व मधुमक्खी मोम भी बना रहे हैं. वह अभी तक करीब 350 मधुमक्खी के किसानों को रोजगार दे चुके हैं. इसके अलावे एक दर्जन से अधिक युवाओं को रोजगार दे रहे हैं. उन्होंने मौसम आधारित शहद तैयार किया है. साथ ही वह मधुमक्खी मोम से कैंडल बना रहे हैं. इस कैंडल्स की जर्मनी में डिमांड है. यह पूरी तरह जैविक कैंडल हैं. इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है और एक साधारण दूसरे कैंडल के मुकाबले छह गुना अधिक समय तक जलता है. इसके अलावा निशांत पराग की मार्केटिंग कर रहे हैं. पराग को सुपर फूड भी कहा जाता है. निशांत अब परपोलिस से टूथपेस्ट, शैम्पू और साबून बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: कोरोना काल में छूटा रोजगार तो बत्तख पालन से बने 'आत्मनिर्भर', अब दूसरों को बना रहे स्वावलंबी

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पटना: मधुमक्खियों को मनुष्य का दोस्त माना जाता है. इनसे प्राप्त होने वाला शहद अमृत समान माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन मधुमक्खियों के डंक को भी अब अमृत के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. सुनने में यह भले ही थोड़ा अटपटा लगे, लेकिन यह सोलह आने सच है. दरअसल, राजधानी पटना के युवक निशांत (Patna Nishant) ने इन मधुमक्खियों के डंक को कुछ इस तरह से उपयोग (Huge Income From Bee stings) करना शुरू किया है कि अब उसकी चर्चा हो रही है.

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दर्द ही बन गई दवा: दरअसल निशांत ने मधुमक्खियों के डंक का बिजनेस (Bee Sting Business) शुरू किया है. ऐसे करने वाले वह सूबे के सम्भवतः पहले व्यक्ति हैं. इन डंक की खासियत यह है कि इसका इस्तेमाल बीमारियों को दूर करने में किया जा रहा है. निशांत बताते हैं, 'यह डंक गठिया रोग को दूर करने में विशेष रूप से प्रभावशाली है. इसके अलावा कई तरह की स्किन डिजीज, अर्थराइटिस को भी दूर करने में इस डंक का क्लिनिकल उपयोग किया जा रहा है.

यूरोपियन कंट्री में डिमांड: निशांत बताते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है. वस्तुतः आयुर्वेद में इसका जिक्र आता है लेकिन यह अपने देश उस तरीके से प्रचलित नहीं हो पाया, जैसा होना चाहिए. निशांत बताते हैं कि मेडिसिन के रूप में डंक को एकत्र करने का कार्य अपने देश में अभी शुरुआती दौर में है लेकिन यूरोपीय देशों व अमेरिका में यह पहले से ही प्रचलित है. इन डंक की अच्छी खासी कीमत भी है.

मैकेनिकल इंजीनियरिंग हैं निशांत: दरअसल, डंक निकालने में महारत हासिल कर चुके निशांत पेशेवर रूप से ऐसे काम नहीं करते थे. जर्मनी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले निशांत कहते हैं, जब मैं वहां था तो इस कार्य को देखा. वहां के लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी लेकिन मेरे लिए यह एकदम नया था। वह बताते हैं कि जब कोरोना का प्रकोप हुआ तो लॉकडाउन में घर आना पड़ा. ये बात मेरे दिमाग में पहले से थी. फिर मैंने इसे शुरू करने की सोची. इसके लिए मैंने वैसे जगहों पर सम्पर्क करने के कोशिश की, जहां पर मधुमक्खियों का पालन किया जाता है. ऐसे लोगों से मुलाकात की.

'इस डंक को निकालने में जितनी मशक्कत करनी पड़ती है, उतना ही महंगा ये डंक विष बिकता है. पिछले दो साल में एक किलो डंक विष की मार्केटिंग कर एक करोड़ 20 लाख रुपये कमा चुके हैं. इस डंक के बिजनेस के दम पर निशांत पिछले दो साल में साढ़े तीन करोड़ की कंपनी बना चुके हैं. इस डंक विष की कीमत 8 से 12 हजार रुपए प्रति ग्राम है.'-निशांत, मधुमक्खियों के डंक का बिजनेस करने वाले.

देखें विशेष रिपोर्ट
विदेशी मशीन से निकलता है डंक: निशांत बताते हैं, इन डंक को निकालने के लिए विशेष प्रकार के मशीन की जरुरत होती है. मेरे पास मेड इन जर्मनी मशीन है. इस मशीन को मधुमक्खियों के बॉक्स के ऊपर लगा दिया जाता है. निशांत के पास जो मशीन है, उसे 10 बॉक्स के ऊपर लगाया जाता है. इस मशीन पर जब मधुमक्खियां बैठती हैं तब इन मधुमक्खियों को 12 वोल्ट तक बिजली का झटका दिया जाता है. जिससे वह गुस्सा हो जाती हैं और डंक विष छोड़ती हैं. इस प्लेट की मदद से 10 बॉक्स से एक बार में ढाई से तीन ग्राम डंक विष निकाला जाता है. वह कहते हैं पहले जो इंडियन मशीन होती थी तो उसे जब 100 बॉक्स पर लगाया जाता था तो उससे एक झटके के बाद महज दो से तीन ग्राम के करीब डंक विष निकलता था.

डंक में पाया जाने वाला विशेष पदार्थ अलग: निशांत कहते हैं, दरअसल इन डंक में एक विशेष पदार्थ होता है, जिसे एपीटॉक्सिन नामक जहर होता है. यह गठिया रोग के इलाज में काफी कारगर होता है. इसके अलावा इस एपिटोक्सिन का उपयोग स्किन डिजीज व अर्थराइटिस को भी खत्म करने में किया जाता है.

'अपने देश में अभी यह नया प्रोडक्ट है और कुछ लोग अभी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी स्विट्जरलैंड इस पर बहुत ज्यादा रिसर्च कर रहा है. उनके रिसर्च के अनुसार यह बातें सामने आई हैं कि गठिया की बीमारी में यह विशेष रोल अदा कर सकता है. गठिया की बीमारी में यह बहुत ज्यादा फायदेमंद भी है. यह अच्छी बात है. अगर की ओर से ऐसी रिपोर्ट आ जाए कि गठिया के रोग को खत्म करने में इसका इस्तेमाल होता है तो आने वाले वक्त में यह एक बहुत अच्छी दवा साबित हो सकती है.'-डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार, विशेषज्ञ.

मधुमक्खी से बना रहे अन्य उत्पाद: निशांत केवल इतना ही नहीं बल्कि मधुमक्खियों से पराग, परपोलिस, रॉयल जेली व मधुमक्खी मोम भी बना रहे हैं. वह अभी तक करीब 350 मधुमक्खी के किसानों को रोजगार दे चुके हैं. इसके अलावे एक दर्जन से अधिक युवाओं को रोजगार दे रहे हैं. उन्होंने मौसम आधारित शहद तैयार किया है. साथ ही वह मधुमक्खी मोम से कैंडल बना रहे हैं. इस कैंडल्स की जर्मनी में डिमांड है. यह पूरी तरह जैविक कैंडल हैं. इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है और एक साधारण दूसरे कैंडल के मुकाबले छह गुना अधिक समय तक जलता है. इसके अलावा निशांत पराग की मार्केटिंग कर रहे हैं. पराग को सुपर फूड भी कहा जाता है. निशांत अब परपोलिस से टूथपेस्ट, शैम्पू और साबून बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

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Last Updated : May 27, 2022, 11:05 PM IST
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