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कभी स्टेशन पर भीख मांगने वाली ज्योति आज लड़कियों के लिए बनी प्रेरणास्रोत

पटना की सड़कों पर कभी भीख मांगकर तो कभी कूड़ा-कचरा चुनकर अपना पेट पालने वाली एक लड़की ज्योति आज दूसरों के लिए प्ररेणास्रोत (example of self reliance for girls) बन गयी है. ज्योति आज न सिर्फ शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी है कि बल्कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए और ऊंची उड़ान भरने की तैयारी में है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट.

ज्योति आज लड़कियों के लिए बनी प्रेरणास्रोत
ज्योति आज लड़कियों के लिए बनी प्रेरणास्रोत
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Published : Feb 4, 2022, 11:08 AM IST

पटना: फर्श से अर्श तक पहुंचने की कई कहानियां आपने देखी और सुनी होंगी लेकिन पटना की ज्योति की कहानी उनसे बिल्कुल अलग है. देश में लड़कियों के लिए एक मिसाल है क्योंकि ज्योति ने जब होश संभाला तो वह बेसहारा थी. पटना जंक्शन पर भीख (Begging at Patna Junction) मांगकर गुजारा करती थी. प्लास्टिक के बोतल चुनकर एक वक्त के भोजन का जुगाड़ करती थी लेकिन उसके आत्मविश्वास का ही परिणाम है कि उसने शिक्षा ग्रहण की और अब एक कैफेटेरिया का संचालन (Patna Jyoti became example of self reliance) करती है.

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में ज्योति ने बताया कि शुरुआती दिनों में वह पटना जंक्शन पर रहती थी. 1 साल की उम्र में उसे पटना जंक्शन पर लावारिस छोड़ दिया गया था. वहां दातुन बेचने वाली कारी देवी ने उसे गोद लिया और पाला. ज्योति ने बताया कि उन्हें यह भी नहीं पता कि उनके माता-पिता कौन हैं, उनकी जाति और धर्म क्या है. 2 साल बाद बुजुर्ग महिला कारी देवी का निधन हो गया. उसके बाद ज्योति का जिम्मा बुजुर्ग महिला के भाई राजदेव पासवान ने उठाया. ज्योति उन्हें पापा कहकर पुकारने लगी.

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ज्योति ने बताया कि जब उन्हें होश आया तब वह भीख मांगती थी. कूड़ा, कचरा और प्लास्टिक की बोतले चुनना उनका काम था. कूड़ा-कचरा चुनने के दौरान काफी दूर निकल जाया करती थी. रहने-सोने को फुटपाथ था. बरसात के दिनों में कष्ट बढ़ जाता था. पटना जंक्शन पर कहीं कोने में जगह जहां मिल जाता, वहीं दुबककर रात गुजार लेती थी. इस दौरान कई बार उन्हें काफी तकलीफ होती थी क्योंकि पुलिसकर्मी उन्हें स्टेशन परिसर में देख कर भगा दिया करते थे.

रात में सोने नहीं देते थे. सोने के लिए घर नहीं होने की वजह से ठंड के मौसम में कष्ट काफी होता था. प्लास्टिक और जूट के बोरे के अंदर घुसकर ठंड से बचने के लिए सो जाया करती थी. 10 साल की उम्र तक उनका जीवन इसी प्रकार चलता रहा. ज्योति ने बताया कि जब वह 10 साल की थी तो 1 दिन सर्वे के लिए नीलू जी पहुंचीं जो रेनबो फाउंडेशन से जुड़ी थीं. वह एक सर्वे के तहत पहुंची थी.

उन्होंने उसके साथ कई बच्चियों का सर्वे किया. ज्योति ने बताया कि इस दौरान स्टेशन पर, फुटपाथ किनारे रहने वाले लोगों से उनके बारे में नीलू जी ने पूछताछ शुरू की. जहां लोगों ने उनके बारे में बताया कि वह किस प्रकार लावारिस हालत में मिली थी. इसके बाद सभी ने उनके बारे में जितना कुछ जानते थे, सभी जानकारियां दीं. इसके बाद नीलू जी ने जानकारी दी कि वह एक रेनबो होम संस्था से जुड़ी हुई हैं जहां इसी प्रकार की बच्चियों को रखा जाता है.

देखें रिपोर्ट

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उन्हें 18 वर्ष की आयु तक निशुल्क शिक्षा और रहने खाने की व्यवस्था की जाती है. ज्योति ने बताया कि इसके बाद वह नीलू जी ने राजदेव पासवान को बताया कि इस जगह से वह बेहतर ही होगा. यहां न रहने के लिए घर है ना खाने पीने की व्यवस्था. फुटपाथ किनारे लोग लड़कियों पर फब्तियां भी सकते हैं. ऐसे में रेनबो होम में सुरक्षित रहेगी. राजदेव पासवान ने ज्योति को रेनबो होम के सुपुर्द कर दिया.

ज्योति ने बताया कि रेनबो होम में पहुंचने के बाद उसकी जानकारी एक जगह लिखी गयी. उनके ब्लड ग्रुप की जांच की गयी. हेल्थ एवं हाइजीन पर काम किया गया. इसके बाद रेनबो होम द्वारा उन्हें पढ़ाया लिखाया गया. ज्योति ने बताया कि वह दसवीं पास कर चुकी है और एनआईओएस बोर्ड से आर्ट्स से इंटरमीडिएट कर रही है. इसी वर्ष वह 12वीं की परीक्षा देंगी.

ज्योति ने बताया कि उनका पढ़ाई में मन लगता है और आगे उन्हें ग्रेजुएशन करना है. ज्योति ने बताया कि रेनबो होम में 18 वर्ष तक रखा जाता है. उसके बाद उन लोगों का एक ग्रुप लिविंग चलता है. जिसके तहत जितनी भी बड़ी बच्चियां है, वह एक जगह रहती हैं और पढ़ाई-लिखाई सब साथ चलता है. वह सभी पार्ट टाइम जॉब भी करती हैं. उन लोगों को काम खोजकर दिया जाता है.

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ज्योति ने बताया कि वह 3 महीने का सेलिंग का एक कोर्स किया था. इस वजह से उन्हें काम मिलना आसान हो गया और 1 वर्ष पूर्व उन्हें बोरिंग रोड के सोनी सेंटर में काम दिया गया. काम अच्छा लगा तो उन्हें अच्छे ऑफर मिले और अभी के समय लेमन कैसे नाम की एक कैफे का संचालन कर रही हैं. ज्योति ने बताया कि आगे उनका लक्ष्य है कि कुछ पैसे जमा करें और अच्छी शिक्षा हासिल कर एक अपना कैफे खोलें.

उन्होंने बताया कि रेनबो फाउंडेशन की बिहार प्रमुख विशाखा कुमारी उन लोगों का बेहद ख्याल रखती हैं और वह सभी उन्हें विशाखा ममा कह कर पुकारती हैं. उन्होंने उपेंद्र महारथी संस्थान में मधुबनी पेंटिंग का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है. कभी बेसहारा रही ज्योति आज मेहनत कर अपनी कमाई से किराए के मकान में रहती है. पढ़ाई कर आगे बढ़ने का जुनून है. ज्योति अब समाज में उन लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है जो जीवन की छोटी बड़ी समस्याओं के सामने आने के बाद अपना पढ़ाई छोड़ देती हैं. ज्योति कहती हैं कि हौसला रख कर आगे बढ़ा जाए और शिक्षा को महत्व दिया जाए तो कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है.

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पटना: फर्श से अर्श तक पहुंचने की कई कहानियां आपने देखी और सुनी होंगी लेकिन पटना की ज्योति की कहानी उनसे बिल्कुल अलग है. देश में लड़कियों के लिए एक मिसाल है क्योंकि ज्योति ने जब होश संभाला तो वह बेसहारा थी. पटना जंक्शन पर भीख (Begging at Patna Junction) मांगकर गुजारा करती थी. प्लास्टिक के बोतल चुनकर एक वक्त के भोजन का जुगाड़ करती थी लेकिन उसके आत्मविश्वास का ही परिणाम है कि उसने शिक्षा ग्रहण की और अब एक कैफेटेरिया का संचालन (Patna Jyoti became example of self reliance) करती है.

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में ज्योति ने बताया कि शुरुआती दिनों में वह पटना जंक्शन पर रहती थी. 1 साल की उम्र में उसे पटना जंक्शन पर लावारिस छोड़ दिया गया था. वहां दातुन बेचने वाली कारी देवी ने उसे गोद लिया और पाला. ज्योति ने बताया कि उन्हें यह भी नहीं पता कि उनके माता-पिता कौन हैं, उनकी जाति और धर्म क्या है. 2 साल बाद बुजुर्ग महिला कारी देवी का निधन हो गया. उसके बाद ज्योति का जिम्मा बुजुर्ग महिला के भाई राजदेव पासवान ने उठाया. ज्योति उन्हें पापा कहकर पुकारने लगी.

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ज्योति ने बताया कि जब उन्हें होश आया तब वह भीख मांगती थी. कूड़ा, कचरा और प्लास्टिक की बोतले चुनना उनका काम था. कूड़ा-कचरा चुनने के दौरान काफी दूर निकल जाया करती थी. रहने-सोने को फुटपाथ था. बरसात के दिनों में कष्ट बढ़ जाता था. पटना जंक्शन पर कहीं कोने में जगह जहां मिल जाता, वहीं दुबककर रात गुजार लेती थी. इस दौरान कई बार उन्हें काफी तकलीफ होती थी क्योंकि पुलिसकर्मी उन्हें स्टेशन परिसर में देख कर भगा दिया करते थे.

रात में सोने नहीं देते थे. सोने के लिए घर नहीं होने की वजह से ठंड के मौसम में कष्ट काफी होता था. प्लास्टिक और जूट के बोरे के अंदर घुसकर ठंड से बचने के लिए सो जाया करती थी. 10 साल की उम्र तक उनका जीवन इसी प्रकार चलता रहा. ज्योति ने बताया कि जब वह 10 साल की थी तो 1 दिन सर्वे के लिए नीलू जी पहुंचीं जो रेनबो फाउंडेशन से जुड़ी थीं. वह एक सर्वे के तहत पहुंची थी.

उन्होंने उसके साथ कई बच्चियों का सर्वे किया. ज्योति ने बताया कि इस दौरान स्टेशन पर, फुटपाथ किनारे रहने वाले लोगों से उनके बारे में नीलू जी ने पूछताछ शुरू की. जहां लोगों ने उनके बारे में बताया कि वह किस प्रकार लावारिस हालत में मिली थी. इसके बाद सभी ने उनके बारे में जितना कुछ जानते थे, सभी जानकारियां दीं. इसके बाद नीलू जी ने जानकारी दी कि वह एक रेनबो होम संस्था से जुड़ी हुई हैं जहां इसी प्रकार की बच्चियों को रखा जाता है.

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उन्हें 18 वर्ष की आयु तक निशुल्क शिक्षा और रहने खाने की व्यवस्था की जाती है. ज्योति ने बताया कि इसके बाद वह नीलू जी ने राजदेव पासवान को बताया कि इस जगह से वह बेहतर ही होगा. यहां न रहने के लिए घर है ना खाने पीने की व्यवस्था. फुटपाथ किनारे लोग लड़कियों पर फब्तियां भी सकते हैं. ऐसे में रेनबो होम में सुरक्षित रहेगी. राजदेव पासवान ने ज्योति को रेनबो होम के सुपुर्द कर दिया.

ज्योति ने बताया कि रेनबो होम में पहुंचने के बाद उसकी जानकारी एक जगह लिखी गयी. उनके ब्लड ग्रुप की जांच की गयी. हेल्थ एवं हाइजीन पर काम किया गया. इसके बाद रेनबो होम द्वारा उन्हें पढ़ाया लिखाया गया. ज्योति ने बताया कि वह दसवीं पास कर चुकी है और एनआईओएस बोर्ड से आर्ट्स से इंटरमीडिएट कर रही है. इसी वर्ष वह 12वीं की परीक्षा देंगी.

ज्योति ने बताया कि उनका पढ़ाई में मन लगता है और आगे उन्हें ग्रेजुएशन करना है. ज्योति ने बताया कि रेनबो होम में 18 वर्ष तक रखा जाता है. उसके बाद उन लोगों का एक ग्रुप लिविंग चलता है. जिसके तहत जितनी भी बड़ी बच्चियां है, वह एक जगह रहती हैं और पढ़ाई-लिखाई सब साथ चलता है. वह सभी पार्ट टाइम जॉब भी करती हैं. उन लोगों को काम खोजकर दिया जाता है.

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ज्योति ने बताया कि वह 3 महीने का सेलिंग का एक कोर्स किया था. इस वजह से उन्हें काम मिलना आसान हो गया और 1 वर्ष पूर्व उन्हें बोरिंग रोड के सोनी सेंटर में काम दिया गया. काम अच्छा लगा तो उन्हें अच्छे ऑफर मिले और अभी के समय लेमन कैसे नाम की एक कैफे का संचालन कर रही हैं. ज्योति ने बताया कि आगे उनका लक्ष्य है कि कुछ पैसे जमा करें और अच्छी शिक्षा हासिल कर एक अपना कैफे खोलें.

उन्होंने बताया कि रेनबो फाउंडेशन की बिहार प्रमुख विशाखा कुमारी उन लोगों का बेहद ख्याल रखती हैं और वह सभी उन्हें विशाखा ममा कह कर पुकारती हैं. उन्होंने उपेंद्र महारथी संस्थान में मधुबनी पेंटिंग का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है. कभी बेसहारा रही ज्योति आज मेहनत कर अपनी कमाई से किराए के मकान में रहती है. पढ़ाई कर आगे बढ़ने का जुनून है. ज्योति अब समाज में उन लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है जो जीवन की छोटी बड़ी समस्याओं के सामने आने के बाद अपना पढ़ाई छोड़ देती हैं. ज्योति कहती हैं कि हौसला रख कर आगे बढ़ा जाए और शिक्षा को महत्व दिया जाए तो कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है.

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