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सत्ता के 16 साल : कितना बदला बिहार, कितने बदले 'नीतीश' - कितना बदला बिहार

नीतीश सरकार का एक साल पूरा हो गया है. इस दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( CM Nitish Kumar) कुछ बदले-बदले नजर आए. कभी सत्ता के साथ दिखे तो कुछ मुद्दों पर विपक्ष का साथ दिया. कुछ मुद्दों पर विपक्ष ने नीतीश का साथ दिया तो कुछेक पर सदन से लेकर सड़क तक विरोध किया. पढ़ें पूरी खबर...

सत्ता में 16 साल: बदले-बदले नजर आए 'सरकार'
सत्ता में 16 साल: बदले-बदले नजर आए 'सरकार'
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Published : Nov 24, 2021, 11:32 AM IST

पटना: नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में आज 16 साल पूरे हो गए. इसे लेकर जेडीयू (JDU) जनता के सामने अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश करेगी. बता दें कि 16 नवंबर 2020 को नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) बिहार के 7वीं बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने पहली बार साल 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, हालांकि वह बहुमत साबित करने में असफल रहे. जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद सन् 2005 में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद वह दूसरी बार मुख्यमंत्री ( Bihar Chief Minister ) बने.

नीतीश ने सन् 2010 में एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि इन्होंने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सन् 2014 में इस्तीफा दे दिया. एक वर्ष से कम समय में ही सन् 2015 में चौथी बार बिहार की सत्ता में वापस आ गए.

महागठबंधन के साथ कुछ मतभेद होने के बाद उन्होंने 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद एक बार वह फिर एनडीए ( NDA ) में शामिल हो गए. एनडीए में शामिल होने के बाद अगले दिन उन्होंने छठीं बार 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

ये भी पढ़ें- नीतीश सरकार के एक साल: रिपोर्ट कार्ड की जगह शराबबंदी वाले बिहार में 'मौत' पर समीक्षा करेंगे CM

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 ( Bihar Assembly Election 2020 ) में एनडीए को एक बार फिर राज्य में पूर्ण बहुमत मिला, जिसकी वजह से नीतीश कुमार सातवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अब तक वे बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बदलते साल के साथ नीतीश कुमार के तेवर भी बदलते गए. कभी नरम तो कभी गरम दिखे. कभी अपनों से नाराज तो कभी विपक्ष पर बरसते दिखे.

हालांकि सियासी पंडित आज भी कहते हैं कि नीतीश कुमार का पहला कार्यकाल 2005 से 2010 का सबसे अच्छा रहा है. जानकार बताते हैं कि उसके बाद का कार्यकाल देखें तो 2010 से 2015 के बीच उन्होंने बीजेपी ( BJP ) का साथ छोड़ आरजेडी ( RJD ) का दामन थामा और 2015 से 2020 के दौरान आरजेडी का साथ छोड़ बीजेपी के साथ गए. कहने का मतलब साफ है कि इन दोनों कार्यकालों में काम कम और सियासत पर ज्यादा फोकस रहा. यही वजह है नीतीश कुमार जब 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो वे अपने 2020 से 2025 के कार्यकाल को एक नया आयाम देना चाहते हैं.

शायद कोशिश भी वही है, लेकिन नीतीश को पता है कि 2005 वाली अब बात नहीं है. 2005 ने नंबर वन पार्टी के नेता थे और अब तीसरे नंबर की पार्टी के नेता हैं. यही कारण है नीतीश अक्सर कहते रहते हैं 'हम तो मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहते थे, बीजेपी के कहने पर बने हैं'. इस बयान के कई मायने हैं, लोग समझ भी रहे हैं. यही कारण है कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अक्सर नीतीश और उनकी पार्टी जेडीयू पर तंज कसते रहते हैं.

कभी-कभी नीतीश कुमार भी कुछ ऐसा बोल देते हैं विपक्ष को लगता है कि नीतीश बीजेपी से नाराज हैं. पेगासस मामला हो या फिर जातिगत जनगणना का सवाल. कम सीट होने के बावजूद नीतीश ने बीजेपी को आइना तो दिखा ही दिया था. इन दोनों मुद्दे पर नीतीश कुमार के विचार लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी से मेल खा रहे थे. हालांकि केन्द्र की मोदी सरकार अपने फैसले पर अडिग रही.

ये भी पढ़ें- बोले CM नीतीश- शराबबंदी पर है जीरो टॉलरेंस, बैठक में एक-एक चीज की लेंगे रिपोर्ट

इन सब के बीच नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती अपने पुराने फॉर्म में लौटने की है. इसके अलावे उनकी सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उसका सख्ती से पालन कराने की. फिर चाहे वो शराबबंदी का मामला हो या फिर भ्रष्टाचार का. इन मुद्दों पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है.

शराबबंदी पर तो नीतीश सरकार पूरी तरह घिर चुकी है. जिस शराबबंदी कानून को साल 2016 में लागू किया गया था. जिसे नीतीश कुमार उनकी पार्टी जेडीयू उपलब्धि बताती है, नौबत अब ये आ गयी है कि नीतीश कुमार को उसी 'उपलब्धि' की समीक्षा करनी पड़ रही है. वो भी उस दिन, जिस दिन नीतीश सरकार का एक साल पूरा हो रहा है.

नीतीश का पहला कार्यकाल ( 2005-2010 ) कानून-व्यवस्था और काम के लिए याद किया जाता है, लेकिन स्थिति आज ये है कि विपक्ष अब उनके काम और कानून-व्यवस्था पर ही सवाल उठा रहा है. कभी नीतीश कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव लगातार कहते रहते हैं कि बिहार में कानून-व्यवस्था नाम को कई चीज ही नहीं है. भ्रष्टाचार तो ऊपर से नीचे तक हो रहा है. तेजस्वी तो ये भी आरोप लगाते हैं कि बिहार में 'गैंग्स ऑफ नीतीश' काम कर रहा है. हालांकि नीतीश विपक्ष के आरोपों को निराधार बताते रहते हैं.

नीतीश कुमार के तर्क के पीछे उनकी पार्टी जेडीयू कहती है कि नीतीश सरकार न तो किसी को फंसाती है, न ही बचाती है. दरअसल, नीतीश कुमार साल 2020-21 में बालू माफियाओं के साथ-साथ बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई की है. आर्थिक अपराध इकाई के द्वारा अवैध कमाई करने वालों पर कार्रवाई की. यही नहीं, अवैध बालू कारोबार में तो उन्होंने अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए 17 अफसरों को सस्पेंड कर दिया, जिसमें 2 आईपीएस अधिकारी भी थे.

ये भी पढ़ें- 'जहर' के कहर पर लगेगी लगाम? मंगलवार को नीतीश की सबसे बड़ी समीक्षा

इन सब के बावजूद विपक्ष सड़क से लेकर सदन तक नीतीश सरकार को किसी न किसी मुद्दे पर घेर ही लेता है. शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध हो या भ्रष्टाचार, इन मुद्दों पर सरकार कई बार बैकफुट आयी है. कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य विभाग की कलई खुल गई थी. विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा कि सरकार मौतों का आंकड़ा छुपा रही है, लेकिन हर बार सरकार कहती रही कि ऐसा कुछ नहीं है. इस बीच एक दिन अचानक आंकड़ों में बदलाव हो जाता है. उस मुद्दे पर बिहार में जमकर सियासत हुई.

वहीं, हाल-फिलहाल की घटनाओं पर नजर डालें तो इस वक्त नीतीश कुमार शराब मुद्दे पर बैकफुट पर हैं. विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि सरकार के संरक्षण में बिहार में शराब बेची जा रही है. विपक्ष का कहना है कि जिस राज्य में शराबबंदी है, उस राज्य में जहरीली शराब पीने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि अभी साल भी पूरा नहीं हुआ है.

इस मुद्दे पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और नीतीश सरकार के सहयोगी पार्टी HAM के प्रमुख जीतन राम मांझी भी सरकार पर हमला बोल चुके हैं. गाहे-बगाहे वे कहते रहते हैं, सरकार को शराबबंदी कानून पर समीक्षा करनी चाहिए. हालांकि नीतीश कुमार कई बार कह चुके हैं कि कानून वापस नहीं होगा. वहीं इस मुद्दे पर बीजेपी में भी एक राय नहीं है. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल भी सवाल उठा चुके हैं.

पक्ष और विपक्ष के बयान के कई मायने हैं. नीतीश कुमार भी जानते हैं कि घर के अंदर और बाहर, दोनों जगह उस स्थिति में नहीं है कि फ्रंट फुट पर सियासत कर सकें. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है नंबर गेम. मौजूदा वक्त में नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पार्टी को बिहार में नए सिरे से खड़ा करने की. क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. अंकगणित ऐसा है कि थोड़ा भी ऊंच-नीच हुई तो सरकार बदल जाएगी. कुल 243 सीटें हैं, बहुमत के लिए 122 चाहिए. एनडीए में बीजेपी के 74, जेडीयू के 45, हम और वीआईपी ने 4-4 विधायक हैं. एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन प्राप्त है.

ये भी पढ़ें- नीतीश सरकार का एक साल... पास या फेल? सुन लीजिए मंत्री जी का जवाब

महागठबंधन में आरजेडी के 75, कांग्रेस के 19 लेफ्ट की तीन पार्टियों के 16 विधायक हैं. इनका कुल जोड़ 110 होता है. 5 विधायक एएमआईएम के हैं. यानी विपक्ष का नंबर 115 है. यही वजह है कि जोड़ तोड़ की बातें बिहार की राजनीतिक हवा में हर वक्त तैरती रहती है. हालांकि उप चुनाव के बाद आरजेडी और कांग्रेस के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं.

इसके बावजूद नीतीश कुमार चाहते हैं कि 2020 से 2025 के कार्यकाल को मिसाल बनाया जाए. यही कारण है बदले परिवेश में भी मुख्यमंत्री बहुत कुछ बदलने की चाहत रखते हैं. और समय-समय पर उसकी बानगी दिख भी जाती है.

पटना: नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में आज 16 साल पूरे हो गए. इसे लेकर जेडीयू (JDU) जनता के सामने अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश करेगी. बता दें कि 16 नवंबर 2020 को नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) बिहार के 7वीं बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने पहली बार साल 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, हालांकि वह बहुमत साबित करने में असफल रहे. जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद सन् 2005 में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद वह दूसरी बार मुख्यमंत्री ( Bihar Chief Minister ) बने.

नीतीश ने सन् 2010 में एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि इन्होंने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सन् 2014 में इस्तीफा दे दिया. एक वर्ष से कम समय में ही सन् 2015 में चौथी बार बिहार की सत्ता में वापस आ गए.

महागठबंधन के साथ कुछ मतभेद होने के बाद उन्होंने 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद एक बार वह फिर एनडीए ( NDA ) में शामिल हो गए. एनडीए में शामिल होने के बाद अगले दिन उन्होंने छठीं बार 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 ( Bihar Assembly Election 2020 ) में एनडीए को एक बार फिर राज्य में पूर्ण बहुमत मिला, जिसकी वजह से नीतीश कुमार सातवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अब तक वे बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बदलते साल के साथ नीतीश कुमार के तेवर भी बदलते गए. कभी नरम तो कभी गरम दिखे. कभी अपनों से नाराज तो कभी विपक्ष पर बरसते दिखे.

हालांकि सियासी पंडित आज भी कहते हैं कि नीतीश कुमार का पहला कार्यकाल 2005 से 2010 का सबसे अच्छा रहा है. जानकार बताते हैं कि उसके बाद का कार्यकाल देखें तो 2010 से 2015 के बीच उन्होंने बीजेपी ( BJP ) का साथ छोड़ आरजेडी ( RJD ) का दामन थामा और 2015 से 2020 के दौरान आरजेडी का साथ छोड़ बीजेपी के साथ गए. कहने का मतलब साफ है कि इन दोनों कार्यकालों में काम कम और सियासत पर ज्यादा फोकस रहा. यही वजह है नीतीश कुमार जब 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो वे अपने 2020 से 2025 के कार्यकाल को एक नया आयाम देना चाहते हैं.

शायद कोशिश भी वही है, लेकिन नीतीश को पता है कि 2005 वाली अब बात नहीं है. 2005 ने नंबर वन पार्टी के नेता थे और अब तीसरे नंबर की पार्टी के नेता हैं. यही कारण है नीतीश अक्सर कहते रहते हैं 'हम तो मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहते थे, बीजेपी के कहने पर बने हैं'. इस बयान के कई मायने हैं, लोग समझ भी रहे हैं. यही कारण है कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अक्सर नीतीश और उनकी पार्टी जेडीयू पर तंज कसते रहते हैं.

कभी-कभी नीतीश कुमार भी कुछ ऐसा बोल देते हैं विपक्ष को लगता है कि नीतीश बीजेपी से नाराज हैं. पेगासस मामला हो या फिर जातिगत जनगणना का सवाल. कम सीट होने के बावजूद नीतीश ने बीजेपी को आइना तो दिखा ही दिया था. इन दोनों मुद्दे पर नीतीश कुमार के विचार लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी से मेल खा रहे थे. हालांकि केन्द्र की मोदी सरकार अपने फैसले पर अडिग रही.

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इन सब के बीच नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती अपने पुराने फॉर्म में लौटने की है. इसके अलावे उनकी सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उसका सख्ती से पालन कराने की. फिर चाहे वो शराबबंदी का मामला हो या फिर भ्रष्टाचार का. इन मुद्दों पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है.

शराबबंदी पर तो नीतीश सरकार पूरी तरह घिर चुकी है. जिस शराबबंदी कानून को साल 2016 में लागू किया गया था. जिसे नीतीश कुमार उनकी पार्टी जेडीयू उपलब्धि बताती है, नौबत अब ये आ गयी है कि नीतीश कुमार को उसी 'उपलब्धि' की समीक्षा करनी पड़ रही है. वो भी उस दिन, जिस दिन नीतीश सरकार का एक साल पूरा हो रहा है.

नीतीश का पहला कार्यकाल ( 2005-2010 ) कानून-व्यवस्था और काम के लिए याद किया जाता है, लेकिन स्थिति आज ये है कि विपक्ष अब उनके काम और कानून-व्यवस्था पर ही सवाल उठा रहा है. कभी नीतीश कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव लगातार कहते रहते हैं कि बिहार में कानून-व्यवस्था नाम को कई चीज ही नहीं है. भ्रष्टाचार तो ऊपर से नीचे तक हो रहा है. तेजस्वी तो ये भी आरोप लगाते हैं कि बिहार में 'गैंग्स ऑफ नीतीश' काम कर रहा है. हालांकि नीतीश विपक्ष के आरोपों को निराधार बताते रहते हैं.

नीतीश कुमार के तर्क के पीछे उनकी पार्टी जेडीयू कहती है कि नीतीश सरकार न तो किसी को फंसाती है, न ही बचाती है. दरअसल, नीतीश कुमार साल 2020-21 में बालू माफियाओं के साथ-साथ बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई की है. आर्थिक अपराध इकाई के द्वारा अवैध कमाई करने वालों पर कार्रवाई की. यही नहीं, अवैध बालू कारोबार में तो उन्होंने अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए 17 अफसरों को सस्पेंड कर दिया, जिसमें 2 आईपीएस अधिकारी भी थे.

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इन सब के बावजूद विपक्ष सड़क से लेकर सदन तक नीतीश सरकार को किसी न किसी मुद्दे पर घेर ही लेता है. शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध हो या भ्रष्टाचार, इन मुद्दों पर सरकार कई बार बैकफुट आयी है. कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य विभाग की कलई खुल गई थी. विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा कि सरकार मौतों का आंकड़ा छुपा रही है, लेकिन हर बार सरकार कहती रही कि ऐसा कुछ नहीं है. इस बीच एक दिन अचानक आंकड़ों में बदलाव हो जाता है. उस मुद्दे पर बिहार में जमकर सियासत हुई.

वहीं, हाल-फिलहाल की घटनाओं पर नजर डालें तो इस वक्त नीतीश कुमार शराब मुद्दे पर बैकफुट पर हैं. विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि सरकार के संरक्षण में बिहार में शराब बेची जा रही है. विपक्ष का कहना है कि जिस राज्य में शराबबंदी है, उस राज्य में जहरीली शराब पीने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि अभी साल भी पूरा नहीं हुआ है.

इस मुद्दे पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और नीतीश सरकार के सहयोगी पार्टी HAM के प्रमुख जीतन राम मांझी भी सरकार पर हमला बोल चुके हैं. गाहे-बगाहे वे कहते रहते हैं, सरकार को शराबबंदी कानून पर समीक्षा करनी चाहिए. हालांकि नीतीश कुमार कई बार कह चुके हैं कि कानून वापस नहीं होगा. वहीं इस मुद्दे पर बीजेपी में भी एक राय नहीं है. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल भी सवाल उठा चुके हैं.

पक्ष और विपक्ष के बयान के कई मायने हैं. नीतीश कुमार भी जानते हैं कि घर के अंदर और बाहर, दोनों जगह उस स्थिति में नहीं है कि फ्रंट फुट पर सियासत कर सकें. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है नंबर गेम. मौजूदा वक्त में नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पार्टी को बिहार में नए सिरे से खड़ा करने की. क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. अंकगणित ऐसा है कि थोड़ा भी ऊंच-नीच हुई तो सरकार बदल जाएगी. कुल 243 सीटें हैं, बहुमत के लिए 122 चाहिए. एनडीए में बीजेपी के 74, जेडीयू के 45, हम और वीआईपी ने 4-4 विधायक हैं. एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन प्राप्त है.

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महागठबंधन में आरजेडी के 75, कांग्रेस के 19 लेफ्ट की तीन पार्टियों के 16 विधायक हैं. इनका कुल जोड़ 110 होता है. 5 विधायक एएमआईएम के हैं. यानी विपक्ष का नंबर 115 है. यही वजह है कि जोड़ तोड़ की बातें बिहार की राजनीतिक हवा में हर वक्त तैरती रहती है. हालांकि उप चुनाव के बाद आरजेडी और कांग्रेस के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं.

इसके बावजूद नीतीश कुमार चाहते हैं कि 2020 से 2025 के कार्यकाल को मिसाल बनाया जाए. यही कारण है बदले परिवेश में भी मुख्यमंत्री बहुत कुछ बदलने की चाहत रखते हैं. और समय-समय पर उसकी बानगी दिख भी जाती है.

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