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नौकरी नहीं मिली तो खोल ली 'नेशनल तैराक टी-स्टॉल', बदहाली में जी रहा ये बेमिसाल खिलाड़ी

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Published : Dec 1, 2021, 7:54 PM IST

राजधानी पटना में नेशनल लेवल का तैराक (National Level Swimmer in Patna) चाय बेचकर जीने को मजबूर है. तैराकी में कई राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मेडल जीत चुके तैराक गोपाल प्रसाद यादव ने अपनी दुकान का नाम 'नेशनल तैराक टी-स्टॉल' (National Tairak Tea Stall) रखा है. अपनी बदहाली को दिखाने के लिए उन्होंने अपनी इस दुकान पर जीते हुए सभी मेडलों को लटका रखा है. पढ़ें ये रिपोर्ट..

नेशनल लेवल तैराक गोपाल प्रसाद यादव
नेशनल लेवल तैराक गोपाल प्रसाद यादव

पटना: बिहार ही नहीं बल्कि देश में खिलाड़ियों की हालत क्या है, इसकी एक बानगी पटना की सड़कों पर देखने को मिली है. अपनी आजीविका के लिए राष्ट्रीय स्तर के तैराक गोपाल प्रसाद यादव चाय बेचने को मजबूर (Swimmer Forced to sell tea in Patna) हैं. तैराक गोपाल प्रसाद यादव (Swimmer Gopal Prasad Yadav) पटना के ही निवासी हैं, जिन्होंने तैराक बनने का सपना अपने जहन में सजाया था. सपना तो पूरा हुआ, लेकिन तैराकी के इस सपने ने इन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया.

ये भी पढ़ें- एवरेस्ट फतह करना चाहती है 29 राज्यों में साइकिल से घूम चुकी बिहार की ये बेटी, बोली- सरकार करे मदद तो..

नेशनल लेवल तैराक गोपाल प्रसाद यादव (National level swimmer Gopal Prasad Yadav) आज एक छोटी सी दुकान पर लोगों को चाय पिलाते नजर आते हैं. उन्होंने अपनी चाय की दुकान का नाम नेशनल तैराक टी स्टॉल रखा है. इस दुकान पर उन्होंने अपने सारे मेडल को लटकाकर सजा रखा है.

गोपाल प्रसाद यादव ने 1987 में बिहार के लिए पहली बार राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया था. प्रतियोगिता का आयोजन कोलकाता में किया गया था. उसके बाद उन्होंने 1988-89 में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की तैराकी में हिस्सा लिया. इसके बाद 100 मीटर बैक स्ट्रोक बीसीए दानापुर में किया गया था और इस तरह से वो अपनी प्रतिभा की बदौलत कई मेडल और कई लोगों के हाथों से सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं.

देखें रिपोर्ट

ये भी पढ़ें- सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रही नेशनल हॉकी खिलाड़ी, हाथों में स्टिक की जगह पकड़नी पड़ी कड़ाही

दुर्भाग्य की बात तो यह है कि जिस गोपाल ने बिहार का मान सम्मान पूरे भारत में बढ़ाया, जिस मेडल ने इनको हौसला दिया, वही मेडल आज उन्होंने सड़कों पर सजा रखे हैं. इतना ही नहीं मेडल अब पूरी तरह से खराब होते जा रहे हैं. कई मेडल तो खराब हो भी गए हैं. बिहार में खिलाड़ियों को कितनी मान-सम्मान मिलती है, यह बताने के लिए सड़क किनारे सजे ये मेडल ही काफी है. पूरी तस्वीर साफ है कि बिहार में खिलाड़ियों का सम्मान नहीं (No respect for players in Bihar) होता है, जिसका नतीजा है कि मजबूरन इन खिलाड़ियों को सड़कों पर चाय बेचना पड़ रही है.

इस सबके बावजूद गोपाल प्रसाद के चेहरे पर थोड़ी सी भी मायूसी नहीं दिखती है. वह बड़ी प्रेम से चाय बनाते हैं और आने जाने वाले राहगीर उनकी दुकान पर मेडल को देखकर रुकते हैं, पूछते हैं और फिर उनसे उनकी मीठी चाय पीते हैं. चाय पीने के साथ-साथ सरकार के रवैये पर चर्चा भी करते हैं.

ये भी पढ़ें- सामान्य साइकिल से ही नाप दी राज्यस्तरीय चैम्पियनशिप की दूरी, नेशनल की तैयारी के लिए सरकार से मांगी मदद

ऐसे तो नया टोला भिखना पहाड़ी छात्र छात्राओं से भरा हुआ है. कोचिंग संस्था के लिए भिखना पहाड़ी जाना जाता है. आने जाने वाले छात्र वहां पर रुक कर चाय पीते हैं और फिर गोपाल प्रसाद के दुर्दशा पर दो शब्द बयां करके जाते हैं. गोपाल प्रसाद को देख इन छात्र-छात्राओं के हौसले भी टूट जाते हैं, जो छात्र छात्राएं अभी अपने हौसलों की उड़ान भरने के लिए पटना पहुंचे हैं, उनको पटना के तैराक गोपाल प्रसाद की नाकामी को देख ठेस पहुंचता है.

''ग्राउंड में खिलाड़ी को खेलने के दौरान तो चोट आती है, तो वो ठीक हो जाता है, लेकिन तैराकी में पानी की धार को तोड़ना फिर तैरना बहुत मुश्किल होता है. इस दर्द को समझाने के लिए ही मैंने अपने मेडलों को चाय की दुकान पर सजा रखा है, जिससे कि नौजवान पीढ़ी को पता चल सके कि राष्ट्रीय स्तर का तैराक सड़कों पर चाय बेच रहा है. जिसे देख नौजवान छात्र खेल की दुनिया में अपने कदम को ना रखें, बल्कि मन लगाकर पढ़ाई करें और जॉब हासिल करें.''- गोपाल प्रसाद यादव, राष्ट्रीय तैराक

ये भी पढ़ें- 'बिहार में आर्ट के लिए कुछ भी नहीं है, सरकार को गंभीरता दिखानी चाहिए'

गोपाल प्रसाद ने 1987, 88, 89, 90 में राज्य चैंपियन में बेहतर प्रदर्शन किया. सीनियर राष्ट्रीय तैराकी में भाग लेने वाली बिहार की टीम में भी शामिल हुए थे और इस टीम में भी गोपाल प्रसाद ने बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन वक्त की नाइंसाफी ने गोपाल प्रसाद को सड़कों पर चाय बेचने को मजबूर कर दिया. गोपाल प्रसाद ने बिहार सरकार के मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. स्पोर्ट्स कोटे से भी कई बार उन्होंने अप्लाई किया, लेकिन सरकार ने इनको एक नौकरी देना तक मुनासिब नहीं समझा.

गोपाल प्रसाद ने बताया कि भले ही सरकार ने उनको नौकरी नहीं दी, लेकिन उन्होंने गंगा की साफ-सफाई का जिम्मा भी उठा रखा है. साथ ही निशुल्क कई लोगों को तैराकी का प्रशिक्षण भी दिया है. उन्होंने अपने बेटे को भी तैराकी में माहिर किया है, लेकिन गोपाल प्रसाद अब बेटे को तैराकी में कैरियर बनाने की इजाजत नहीं देते हैं. गोपाल प्रसाद अपने बेटे सनी को प्राइवेट कंपनी में जॉब करवाते हैं, जिससे कि घर की माली हालत में सुधार आ सकें.

जिस गोपाल प्रसाद ने तैराकी में अच्छा प्रदर्शन कर बिहार का मान सम्मान बढ़ाने का काम किया, अपना सब कुछ लगाकर बिहार और देश के लिए मेहनत करता रहा, वह खुद अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है और सरकार से मदद की गुहार लगा रहा है. उन्होंने ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार से मांग करते हुए कहा कि मेरी उम्र तो अब खत्म हो गई है, लेकिन सरकार अगर चाहे तो उन्हें ट्रेनर के रूप में नौकरी दे सकती है, जिससे कि वह बिहार के बच्चों को तैराकी सीखा सकें.

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पटना: बिहार ही नहीं बल्कि देश में खिलाड़ियों की हालत क्या है, इसकी एक बानगी पटना की सड़कों पर देखने को मिली है. अपनी आजीविका के लिए राष्ट्रीय स्तर के तैराक गोपाल प्रसाद यादव चाय बेचने को मजबूर (Swimmer Forced to sell tea in Patna) हैं. तैराक गोपाल प्रसाद यादव (Swimmer Gopal Prasad Yadav) पटना के ही निवासी हैं, जिन्होंने तैराक बनने का सपना अपने जहन में सजाया था. सपना तो पूरा हुआ, लेकिन तैराकी के इस सपने ने इन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया.

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नेशनल लेवल तैराक गोपाल प्रसाद यादव (National level swimmer Gopal Prasad Yadav) आज एक छोटी सी दुकान पर लोगों को चाय पिलाते नजर आते हैं. उन्होंने अपनी चाय की दुकान का नाम नेशनल तैराक टी स्टॉल रखा है. इस दुकान पर उन्होंने अपने सारे मेडल को लटकाकर सजा रखा है.

गोपाल प्रसाद यादव ने 1987 में बिहार के लिए पहली बार राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया था. प्रतियोगिता का आयोजन कोलकाता में किया गया था. उसके बाद उन्होंने 1988-89 में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की तैराकी में हिस्सा लिया. इसके बाद 100 मीटर बैक स्ट्रोक बीसीए दानापुर में किया गया था और इस तरह से वो अपनी प्रतिभा की बदौलत कई मेडल और कई लोगों के हाथों से सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं.

देखें रिपोर्ट

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दुर्भाग्य की बात तो यह है कि जिस गोपाल ने बिहार का मान सम्मान पूरे भारत में बढ़ाया, जिस मेडल ने इनको हौसला दिया, वही मेडल आज उन्होंने सड़कों पर सजा रखे हैं. इतना ही नहीं मेडल अब पूरी तरह से खराब होते जा रहे हैं. कई मेडल तो खराब हो भी गए हैं. बिहार में खिलाड़ियों को कितनी मान-सम्मान मिलती है, यह बताने के लिए सड़क किनारे सजे ये मेडल ही काफी है. पूरी तस्वीर साफ है कि बिहार में खिलाड़ियों का सम्मान नहीं (No respect for players in Bihar) होता है, जिसका नतीजा है कि मजबूरन इन खिलाड़ियों को सड़कों पर चाय बेचना पड़ रही है.

इस सबके बावजूद गोपाल प्रसाद के चेहरे पर थोड़ी सी भी मायूसी नहीं दिखती है. वह बड़ी प्रेम से चाय बनाते हैं और आने जाने वाले राहगीर उनकी दुकान पर मेडल को देखकर रुकते हैं, पूछते हैं और फिर उनसे उनकी मीठी चाय पीते हैं. चाय पीने के साथ-साथ सरकार के रवैये पर चर्चा भी करते हैं.

ये भी पढ़ें- सामान्य साइकिल से ही नाप दी राज्यस्तरीय चैम्पियनशिप की दूरी, नेशनल की तैयारी के लिए सरकार से मांगी मदद

ऐसे तो नया टोला भिखना पहाड़ी छात्र छात्राओं से भरा हुआ है. कोचिंग संस्था के लिए भिखना पहाड़ी जाना जाता है. आने जाने वाले छात्र वहां पर रुक कर चाय पीते हैं और फिर गोपाल प्रसाद के दुर्दशा पर दो शब्द बयां करके जाते हैं. गोपाल प्रसाद को देख इन छात्र-छात्राओं के हौसले भी टूट जाते हैं, जो छात्र छात्राएं अभी अपने हौसलों की उड़ान भरने के लिए पटना पहुंचे हैं, उनको पटना के तैराक गोपाल प्रसाद की नाकामी को देख ठेस पहुंचता है.

''ग्राउंड में खिलाड़ी को खेलने के दौरान तो चोट आती है, तो वो ठीक हो जाता है, लेकिन तैराकी में पानी की धार को तोड़ना फिर तैरना बहुत मुश्किल होता है. इस दर्द को समझाने के लिए ही मैंने अपने मेडलों को चाय की दुकान पर सजा रखा है, जिससे कि नौजवान पीढ़ी को पता चल सके कि राष्ट्रीय स्तर का तैराक सड़कों पर चाय बेच रहा है. जिसे देख नौजवान छात्र खेल की दुनिया में अपने कदम को ना रखें, बल्कि मन लगाकर पढ़ाई करें और जॉब हासिल करें.''- गोपाल प्रसाद यादव, राष्ट्रीय तैराक

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गोपाल प्रसाद ने 1987, 88, 89, 90 में राज्य चैंपियन में बेहतर प्रदर्शन किया. सीनियर राष्ट्रीय तैराकी में भाग लेने वाली बिहार की टीम में भी शामिल हुए थे और इस टीम में भी गोपाल प्रसाद ने बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन वक्त की नाइंसाफी ने गोपाल प्रसाद को सड़कों पर चाय बेचने को मजबूर कर दिया. गोपाल प्रसाद ने बिहार सरकार के मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. स्पोर्ट्स कोटे से भी कई बार उन्होंने अप्लाई किया, लेकिन सरकार ने इनको एक नौकरी देना तक मुनासिब नहीं समझा.

गोपाल प्रसाद ने बताया कि भले ही सरकार ने उनको नौकरी नहीं दी, लेकिन उन्होंने गंगा की साफ-सफाई का जिम्मा भी उठा रखा है. साथ ही निशुल्क कई लोगों को तैराकी का प्रशिक्षण भी दिया है. उन्होंने अपने बेटे को भी तैराकी में माहिर किया है, लेकिन गोपाल प्रसाद अब बेटे को तैराकी में कैरियर बनाने की इजाजत नहीं देते हैं. गोपाल प्रसाद अपने बेटे सनी को प्राइवेट कंपनी में जॉब करवाते हैं, जिससे कि घर की माली हालत में सुधार आ सकें.

जिस गोपाल प्रसाद ने तैराकी में अच्छा प्रदर्शन कर बिहार का मान सम्मान बढ़ाने का काम किया, अपना सब कुछ लगाकर बिहार और देश के लिए मेहनत करता रहा, वह खुद अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है और सरकार से मदद की गुहार लगा रहा है. उन्होंने ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार से मांग करते हुए कहा कि मेरी उम्र तो अब खत्म हो गई है, लेकिन सरकार अगर चाहे तो उन्हें ट्रेनर के रूप में नौकरी दे सकती है, जिससे कि वह बिहार के बच्चों को तैराकी सीखा सकें.

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