पटनाः देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के स्मारकों की दयनीय हालत (Memorial of Rajendra Prasad in pathetic condition) संबंधित याचिका पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. अधिवक्ता विकास कुमार की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए पटना डीएम को राजधानी स्थित बिहार विद्यापीठ की भूमि के संबंध में विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया.
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कोर्ट ने साफ किया कि बिहार विद्यापीठ की चारदीवारी के भीतर की भूमि राष्ट्र की धरोहर है, न कि किसी निजी संपत्ति. कोर्ट ने पटना डीएम को इस भूमि का विस्तृत ब्यौरा देने का निर्देश दिया है. साथ ही यह भी बताने को कहा कि बिहार विद्यापीठ की भूमि पर कितना अतिक्रमण है और इससे संबंधित कितने मामले अदालतों में सुनवाई के लिए लंबित है.
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सिवान के डीएम ने कोर्ट को बताया कि डॉ राजेंद्र प्रसाद के वंशजों ने जीरादेई में स्मारकों के विकास के लिए भूमि दान की है. साथ ही राज्य सरकार ने भी अपनी ओर से भूमि की है. वरीय अधिवक्ता पीके शाही ने बताया कि कोर्ट ने एएसआई के कोलकाता स्थित क्षेत्रीय निर्देश और पटना एएसआई के अधीक्षक को कोर्ट ने जीरादेई जाकर विकास की संभावना पर विचार कर एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.
पटना स्थित बिहार विद्यापीठ के प्रबंध समिति के कामकाज पर कोर्ट ने गहरा असंतोष व्यक्त करते हुए पूछा कि क्यों नहीं इसके प्रबंधन का जिम्मा फिलहाल राज्य सरकार को दे दिया जाए? साथ ही जीरादेई स्थित रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण के लिए रेलवे और राज्य सरकार ने सहमति दे दी. कोर्ट ने इस संबंध में रेलवे को आगे की कार्रवाई के लिए दो सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया. कोर्ट ने पटना स्थित बांसघाट के विकास और सौंदर्यीकरण के संबंध में की जा रही कार्रवाई का ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. इस मामलें पर अगली सुनवाई दो सप्ताह के बाद की जाएगी.
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